सोमवार, मार्च 04, 2024

हिन्दी विषय पर 10 MCQ

**1. हिन्दी भाषा का उद्भव किस भाषा से हुआ माना जाता है?** a) संस्कृत b) प्राकृत c) पालि d) अपभ्रंश **2. हिन्दी भाषा को राजभाषा का दर्जा कब मिला?** a) 1947 b) 1950 c) 1955 d) 1960 **3. हिन्दी साहित्य का सबसे प्रसिद्ध काल कौन सा है?** a) भक्ति काल b) रीतिकाल c) आधुनिक काल d) समकालीन काल **4. हिन्दी भाषा का प्रथम व्याकरण किसने लिखा?** a) पंडित सुधाकर द्विवेदी b) पंडित भारतेन्दु हरिश्चंद्र c) पंडित जयशंकर प्रसाद d) पंडित रामधारी सिंह दिनकर **5. "दिल्ली" शब्द का अर्थ क्या है?** a) ढीली मिट्टी b) लाल मिट्टी c) काली मिट्टी d) धूल भरी मिट्टी **6. "अक्षर" शब्द का अर्थ क्या है?** a) जो कभी मिटता नहीं b) जो हमेशा रहता है c) जो कभी नहीं बदलता d) जो हमेशा स्थिर रहता है **7. "कविता" का अर्थ क्या है?** a) कल्पना की उड़ान b) विचारों की अभिव्यक्ति c) भावनाओं का प्रवाह d) शब्दों का समूह **8. "उपन्यास" का अर्थ क्या है?** a) नई कहानी b) रोमांचक कहानी c) कल्पित कहानी d) लंबी कहानी **9. "नाटक" का अर्थ क्या है?** a) अभिनय b) संवाद c) कहानी d) प्रदर्शन **10. "निबंध" का अर्थ क्या है?** a) विचारों का प्रवाह b) भावनाओं का प्रवाह c) शब्दों का समूह d) विषय का वर्णन **उत्तर:** 1. d) अपभ्रंश 2. b) 1950 3. a) भक्ति काल 4. a) पंडित सुधाकर द्विवेदी 5. a) ढीली मिट्टी 6. a) जो कभी मिटता नहीं 7. c) भावनाओं का प्रवाह 8. d) लंबी कहानी 9. d) प्रदर्शन 10. d) विषय का वर्णन

रविवार, फ़रवरी 04, 2024

कहानी और नाटक में अंतर

 

1. **माध्यम**: कहानी आमतौर पर लिखित शब्दों में प्रस्तुत की जाती है, जबकि नाटक मंचीय प्रस्तुति के लिए लिखा जाता है।

2. **प्रस्तुति**: कहानियाँ पाठकों की कल्पना पर निर्भर करती हैं, वहीं नाटक सीधे दर्शकों के सामने अभिनय और संवाद के माध्यम से प्रस्तुत होते हैं।

3. **संवाद और वर्णन**: कहानियों में वर्णनात्मक भाषा प्रमुख होती है, जबकि नाटकों में संवाद और शारीरिक अभिव्यक्तियाँ मुख्य होती हैं।

4. **संरचना**: नाटकों में दृश्य और अंक होते हैं, जबकि कहानियों में अधिक लचीली संरचना होती है।

5. **अंतरक्रियात्मकता**: नाटक दर्शकों के साथ सीधी अंतरक्रियात्मकता प्रदान करते हैं, वहीं कहानियाँ इस तरह की तत्काल प्रतिक्रिया की पेशकश नहीं करतीं।


या


कहानी और नाटक में अंतर 

1. **माध्यम**: कहानी आमतौर पर लिखित शब्दों में प्रस्तुत की जाती है, जबकि नाटक मंचीय प्रस्तुति के लिए लिखा जाता है।

2. **प्रस्तुति**: कहानियाँ पाठकों की कल्पना पर निर्भर करती हैं, वहीं नाटक सीधे दर्शकों के सामने अभिनय और संवाद के माध्यम से प्रस्तुत होते हैं।

3. **संवाद और वर्णन**: कहानियों में वर्णनात्मक भाषा प्रमुख होती है, जबकि नाटकों में संवाद और शारीरिक अभिव्यक्तियाँ मुख्य होती हैं।

4. **संरचना**: नाटकों में दृश्य और अंक होते हैं, जबकि कहानियों में अधिक लचीली संरचना होती है।

5. **अंतरक्रियात्मकता**: नाटक दर्शकों के साथ सीधी अंतरक्रियात्मकता प्रदान करते हैं, वहीं कहानियाँ इस तरह की तत्काल प्रतिक्रिया की पेशकश नहीं करतीं।

या

कहानी और नाटक के बीच के अंतर:


1. **प्रस्तुति**: कहानियाँ पढ़ी जाती हैं, नाटक मंचित होते हैं।

2. **अभिव्यक्ति**: कहानियाँ वर्णनात्मक होती हैं, नाटक संवाद और अभिनय पर निर्भर करते हैं।

3. **पात्र विकास**: कहानियों में पात्रों के आंतरिक विचार विस्तार से बताए जाते हैं, नाटक में यह मुख्य रूप से संवादों के माध्यम से होता है।

4. **दर्शक/पाठक**: कहानियाँ पाठकों को कल्पना करने का आमंत्रण देती हैं, नाटक दर्शकों के सामने लाइव प्रदर्शन प्रस्तुत करते हैं।

5. **दृश्य प्रस्तुतिकरण**: नाटक में दृश्य प्रभाव, मंच सज्जा, और लाइटिंग महत्वपूर्ण होते हैं; कहानियाँ इन पर निर्भर नहीं करतीं।

कहानी के नाटकीय रूपांतरण के लिए अधिक महत्वपूर्ण  पांच बिंदु l


1. **पात्र विकास और संवाद:** मूल कहानी के पात्रों को गहराई से विकसित करें, उनकी आंतरिक भावनाओं और प्रेरणाओं को संवाद के माध्यम से उजागर करें। संवाद ऐसे होने चाहिए जो पात्रों की विशिष्टता को प्रकट करें और कहानी को आगे बढ़ाएं।


2. **संरचना और दृश्य:** कहानी की संरचना को दृश्यों में विभाजित करें, प्रत्येक दृश्य को एक विशेष उद्देश्य या मोड़ के साथ डिजाइन करें। यह संरचना नाटक को दृश्यात्मक और गतिशील बनाने में मदद करेगी।


3. **भावनात्मक प्रभाव:** नाटक के माध्यम से दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़ने के लिए, चरित्रों की भावनाओं और आंतरिक संघर्षों को प्रमुखता से उजागर करें। यह तत्व दर्शकों की सहानुभूति और रुचि को आकर्षित करता है।


4. **मंचन और प्रोडक्शन डिजाइन:** नाटक की सेटिंग, पोशाक, प्रकाश व्यवस्था, और साउंड डिजाइन पर विचार करें जो कहानी के मूड और थीम को बढ़ाते हैं। ये तत्व कहानी को जीवंत बनाने और दृश्य प्रभाव पैदा करने में महत्वपूर्ण हैं।


5. **दर्शकों की संलग्नता:** नाटक में ऐसे तत्व शामिल करें जो दर्शकों को संलग्न करें, जैसे कि इंटरएक्टिव दृश्य, दर्शकों से बातचीत

कहानी से नाटक बनाने में आने वाली मुख्य समस्याएँ इस प्रकार हैं:


1. **अनुकूलन की चुनौतियाँ**: कहानी के मूल तत्वों को नाटकीय संदर्भ में ढालना।

2. **संवाद निर्माण**: कहानी के वर्णनात्मक हिस्सों को प्रभावी संवादों में बदलना।

3. **पात्रों की गहराई**: पात्रों के आंतरिक विचारों और भावनाओं को मंच पर प्रस्तुत करना।

4. **समय और स्थान की सीमाएँ**: मंच पर समय और स्थान की सीमितता के साथ कहानी को प्रस्तुत करनाहोता है 

5. **दर्शकों की प्रतिक्रिया**: लाइव प्रदर्शन के दौरान दर्शकों की प्रतिक्रिया का सही अनुमान लगाना होता है 

6. **तकनीकी चुनौतियाँ**: मंच पर विशेष प्रभावों और दृश्य संयोजन के साथ काम करना।



रेडियो नाटक लिखते समय ध्यान में रखने योग्य मुख्य बिंदु:

1**पत्रों की संख्या और समय** रेडियो नाटक में 5 से 6 पात्र हो उससे अधिक नहीं l इसका समय 15 से 30 मिनट हो 


2. **संवाद केंद्रित लेखन**: चूंकि दृश्य तत्व अनुपस्थित होते हैं, संवादों के माध्यम से कहानी को विस्तार से और भावनात्मक गहराई के साथ प्रस्तुत करना आवश्यक है।


3. **ध्वनि प्रभावों का चतुराई से उपयोग**: वातावरण निर्माण, घटनाओं की गति, और भावनात्मक अनुभवों को बढ़ाने के लिए ध्वनि प्रभावों का प्रयोग करें।


4. **संगीत का सावधानीपूर्वक चयन**: संगीत के माध्यम से मूड सेट करें और नाटक के विभिन्न भागों में भावनात्मक प्रभाव डालें।


5 **पात्र विकास पर जोर**: पात्रों के व्यक्तित्व और उनके बीच की बातचीत को गहराई से उजागर करें, ताकि श्रोता उनसे जुड़ सकें।


6 **श्रोताओं की कल्पना का संवर्धन**: भाषा और ध्वनि के माध्यम से ऐसे विवरण प्रदान करें जो श्रोताओं की कल्पना को सक्रिय करते हैं और उन्हें कहानी में गहराई से डूबने देते हैं।


7 **भावनात्मक गहराई और तनाव का निर्माण**: ध्वनि और संवादों के इस्तेमाल से नाटकीय तनाव और भावनात्मक गहराई को बढ़ाएं, जिससे श्रोता नाटक के प्रति और अधिक संलग्न हों।


इन बिंदुओं का ध्यान रखकर, एक रेडियो नाटक लेखक एक ऐसी कहानी बुन सकता है जो श्रोताओं को आकर्षित करे और उन्हें नाटक के अंत तक बांधे रखे।


बुधवार, दिसंबर 13, 2023

शिरीष के फूल - हजारी प्रसाद द्विवेदी

 
जहाँ बैठके यह लेख लिख रहा हूँ उसके आगे-पीछे, दायें-बायें, शिरीष के अनेक पेड़ हैं। जेठ की जलती धूप में, जबकि धरित्री निर्घूम अग्निकुण्ड बनी हुई थी, शिरीष नीचे से ऊपर तक फूलों से लद गया था। कम फूल इस प्रकार की गर्मी में फूल सकने की हिम्मत करते हैं। कर्णिकार और आरग्वध (अमलतास) की बात मैं भूल नहीं रहा हूँ। वे भी आसपास बहुत हैं। लेकिन शिरीष के साथ आरग्वध की तुलना नहीं की जा सकती। वह पन्द्रह-बीस दिन के लिए फूलता है, वसन्त ऋतु के पलाश की भाँति।
कबीरदास को इस तरह पन्द्रह दिन के लिए लहक उठना पसन्द नहीं था। यह भी क्या कि दस दिन फूले और फिर खंखड़-के-खंखड़- ‘दिन दस फूला फूलिके खंखड़ भया पलास’! ऐसे दुमदारों से तो लँडूरे भले। फूल है शिरीष। वसन्त के आगमन के साथ लहक उठता है, आषाढ़ तक तो निश्चित रूप से मस्त बना रहता है। मन रम गया तो भरे भादों में भी निर्घात फूलता रहता है। जब उमस से प्राण उबलता रहता है और लू से हृदय सूखता रहता है, एकमात्र शिरीष कालजयी अवधूत की भाँति जीवन की अजेयता का मन्त्रप्रचार करता रहता है। यद्यपि कवियों की भाँति हर फूल-पत्ते को देखकर मुग्ध होने लायक हृदय विधाता ने नहीं दिया है, पर नितान्त ठूँठ भी नहीं हूँ। शिरीष के पुष्प मेरे मानस में थोड़ा हिल्लोल जरूर पैदा करते हैं।

शिरीष के वृक्ष बड़े और छायादार होते हैं। पुराने भारत का रईस, जिन मंगल-जनक वृक्षों को अपनी वृक्ष-वाटिका की चहारदीवारी के पास लगाया करता था, उनमें एक शिरीष भी है (वृहत्संहिता,५५१३) अशोक, अरिष्ट, पुन्नाग और शिरीष के छायादार और घनमसृण हरीतिमा से परिवेष्टित वृक्ष-वाटिका जरूर बड़ी मनोहर दिखती होगी। वात्स्यायन ने ‘कामसूत्र’ में बताया है कि वाटिका के सघन छायादार वृक्षों की छाया में ही झूला (प्रेंखा दोला) लगाया जाना चाहिए। यद्यपि पुराने कवि बकुल के पेड़ में ऐसी दोलाओं को लगा देखना चाहते थे, पर शिरीष भी क्या बुरा है! डाल इसकी अपेक्षाकृत कमजोर जरूर होती है, पर उसमें झूलनेवालियों का वजन भी तो बहुत ज्यादा नहीं होता। कवियों की यही तो बुरी आदत है कि वजन का एकदम खयाल नहीं करते। मैं तुन्दिल नरपतियों की बात नहीं कह रहा हूँ, वे चाहें तो लोहे का पेड़ बनवा लें !
शिरीष का फूल संस्कृत-साहित्य में बहुत कोमल माना गया है। मेरा अनुमान है कि कालिदास ने यह बात शुरू-शुरू में प्रचारित की होगी। उनका इस पुष्प पर कुछ पक्षपात था (मेरा भी है)। कह गये हैं, शिरीष पुष्प केवल भौंरों के पदों का कोमल दबाव सहन कर सकता है, पक्षियों का बिल्कुल नहीं- ‘पदं सहेत भ्रमरस्य पेलवं शिरीष पुष्पं न पुनः पतत्रिणाम्।’ अब मैं इतने बड़े कवि की बात का विरोध कैसे करूँ? सिर्फ विरोध करने की हिम्मत न होती तो भी कुछ कम बुरा नहीं था, यहाँ तो इच्छा भी नहीं है। खैर, मैं दूसरी बात कह रहा था। शिरीष के फूलों की कोमलता देखकर परवर्ती कवियों ने समझा कि उसका सब-कुछ कोमल है ! यह भूल है। इसके फल इतने मजबूत होते हैं कि नये फूलों के निकल आने पर भी स्थान नहीं छोड़ते। जब तक नये फल-पत्ते मिलकर धकियाकर उन्हें बाहर नहीं कर देते तब तक वे डटे रहते हैं। वसन्त के आगमन के समय जब सारी वनस्थली पुष्प-पत्रसे मर्मरित होती रहती है, शिरीष के पुराने फल बुरी तरह खड़खड़ाते रहते हैं। मुझे इनको देखकर उन नेताओं की बात याद आती है, जो किसी प्रकार जमाने का रुख नहीं पहचानते और जब तक नयी पौध के लोग उन्हें धक्का मारकर निकाल नहीं देते तब तक जमे रहते हैं।
मैं सोचता हूँ कि पुराने की यह अधिकार-लिप्सा क्यों नहीं समय रहते सावधान हो जाती? जरा और मृत्यु, ये दोनों ही जगत् के अतिपरिचित और अति प्रामाणिक सत्य हैं। तुलसीदास ने अफसोस के साथ इनकी सच्चाई पर मुहर लगायी थी- ‘धरा को प्रमान यही तुलसी जो फरा सो झरा, जो बरा सो बुताना!’ मैं शिरीष के फलों को देखकर कहता हूँ कि क्यों नहीं फलते ही समझ लेते बाबा कि झड़ना निश्चित है! सुनता कौन है? महाकालदेवता सपासप कोड़े चला रहे हैं, जीर्ण और दुर्बल झड़ रहे हैं, जिनमें प्राणकण थोड़ा भी ऊर्ध्वमुखी है, वे टिक जाते हैं। दुरन्त प्राणधारा और सर्वव्यापक कालाग्नि का संघर्ष निरन्तर चल रहा है। मूर्ख समझते हैं कि जहाँ बने हैं वहीं देर तक बने रहें तो कालदेवता की आँख बचा जायेंगे। भोले हैं वे। हिलते-डुलते रहो, स्थान बदलते रहो, आगे की ओर मुँह किये रहो तो कोड़े की मार से बच भी सकते हो। जमे कि मरे!
एक-एक बार मुझे मालूम होता है कि यह शिरीष एक अद्भुत अवधूत है। दुःख हो या सुख, वह हार नहीं मानता। न ऊधो का लेना, न माधो का देना। जब धरती और आसमान जलते रहते हैं, तब भी यह हिजरत न-जाने कहाँ से अपना रस खींचते रहते हैं। मौज में आठों याम मस्त रहते हैं। एक वनस्पतिशास्त्री ने मुझे बताया है कि यह उस श्रेणी का पेड़ है जो वायुमण्डल से अपना रस खींचता है। जरूर खींचता होगा। नहीं तो भयंकर लू के समय इतने कोमल तन्तुजाल और ऐसे सुकुमार केसर को कैसे उगा सकता था? अवधूतों के मुँह से ही संसार की सबसे सरस रचनाएँ निकली हैं। कबीर बहुत-कुछ इस शिरीष के समान ही थे, मस्त और बेपरवा, पर सरस और मादक।
कालिदास वजन ठीक रख सकते थे, क्योंकि वे अनासक्त योगी की स्थिर प्रज्ञता और विदग्ध-प्रेमी का हृदय पा चुके थे। कवि होने से क्या होता है? मैं भी छन्द बना लेता हूँ, तुक जोड़ लेता हूँ और कालिदास भी छन्द बना लेते थे- तुक भी जोड़ ही सकते होंगे- इसलिए हम दोनों एक श्रेणी के नहीं हो जाते। पुराने सहृदय ने किसी ऐसे ही दसवेदार को फटकारते हुए कहा था-‘वयमपि कवयः कवयः कवयस्ते कालिदससाद्या!’ मैं तो मुग्ध और विस्मय-विमूढ़ होकर कालिदास के एक-एक श्लोक को देखकर हैरान हो जाता हूँ। अब इस शिरीष के फूल का ही एक उदाहरण लीजिए। शकुन्तला बहुत सुन्दर थी। सुन्दर क्या होने से कोई हो जाता है? देखना चाहिए कि कितने सुन्दर हृदय से वह सौन्दर्य डुबकी लगाकर निकला है। शकुन्तला कालिदास के हृदय से निकली थी। विधाता की ओर से कोई कार्पण्य नहीं था, कवि की ओर से भी नहीं। राजा दुष्यन्त भी अच्छे-भले प्रेमी थे। उन्होंने शकुन्तला का एक चित्र बनाया था, लेकिन रह-रहकर उनका मन खीझ उठता था। उहूँ, कहीं-न-कहीं कुछ छूट गया है। बड़ी देर के बाद उन्हें समझ में आया कि शकुन्तला के कानों में वे उस शिरीष पुष्प को देना भूल गये हैं, जिसके केसर गण्डस्थल तक लटके हुए थे, और रह गया है शरच्चन्द्र की किरणों के समान कोमल और शुभ्र मृणाल का हार।
कालिदास ने श्लोक न लिख दिया होता तो मैं समझता कि वे भी बस और कवियों की भाँति कवि थे, सौन्दर्य पर मुग्ध, दुख से अभिभूत, सुख से गद्गद! पर कालिदास सौन्दर्य के बाह्य आवरण को भेदकर उसके भीतर तक पहुँच सकते थे, दुख हो कि सुख, वे अपना भाव-रस उस अनासक्त कृषीवल की भाँति खींच लेते थे जो निर्दलित ईक्षुदण्ड से रस निकाल लेता है। कालिदास महान् थे, क्योंकि वे अनासक्त रह सके थे। कुछ इसी श्रेणी की अनासक्ति आधुनिक हिन्दी कवि सुमित्रानन्दन पन्त में है। कविवर रवीन्द्रनाथ में यह अनासक्ति थी। एक जगह उन्होंने लिखा है- ‘राजोद्यान का सिंहद्वार कितना ही अभ्रभेदी क्यों न हो, उसकी शिल्पकला कितनी ही सुन्दर क्यों न हो, वह चाह नहीं कहता कि हममें आकर ही सारा रास्ता समाप्त हो गया। असल गन्तव्य स्थान उसे अतिक्रम करने के बाद ही है, यही बताना उसका कर्तव्य है।’ फूल हो या पेड़, वह अपने-आपमें समाप्त नहीं हैं। वह किसी अन्य वस्तु को दिखाने के लिए उठी हुई अँगुली है। वह इशारा है।
 
शिरीष तरु सचमुच पक्के अवधूत की भाँति मेरे मन में ऐसी तरंगें जगा देता है जो ऊपर की ओर उठती रहती हैं। इस चिलकती धूप में इतना सरस वह कैसे बना रहता है? क्या ये बाह्य परिवर्तन- धूप, वर्षा, आँधी, लू- अपने-आपमें सत्य नहीं हैं? हमारे देश के ऊपर से जो यह मार-काट, अग्निदाह, लूट-पाट, खून-खच्चर का बवण्डर बह गया है, उसके भीतर भी क्या स्थिर रहा जा सकता है ? शिरीष रह सका है। अपने देश का एक बूढ़ा रह सका था। क्यों मेरा मन पूछता है कि ऐसा क्यों सम्भव हुआ? क्योंकि शिरीष भी अवधूत है। शिरीष वायुमण्डल से रस खींचकर इतना कोमल और इतना कठोर है। गाँधी भी वायुमण्डल से रस खींचकर इतना कोमल और इतना कठोर हो सका था। मैं जब-जब शिरीष की ओर देखता हूँ तब तब हूक उठती- हाय, वह अवधूत आज कहाँ है!
x
कालिदास भी जरूर अनासक्त योगी रहे होंगे। शिरीष के फूल फक्कड़ाना मस्ती से ही उपज सकते हैं और ‘मेघदूत’ का काव्य उसी प्रकार के अनासक्त अनाविल उन्मुक्त हृदय में उमड़ सकता है। जो कवि अनासक्त नहीं रह सका, जो फक्कड़ नहीं बन सका, जो किये-कराये का लेखा-जोखा मिलाने में उलझ गया, वह भी क्या कवि है? कहते हैं कर्णाट-राज की प्रिया विज्जिका देवी ने गर्वपूर्वक कहा था कि एक कवि ब्रह्मा थे, दूसरे वाल्मीकि और तीसरे व्यास। एक ने वेदों को दिया, दूसरे ने रामायण को और तीसरे ने महाभारत को। इनके अतिरिक्त और कोई यदि कवि होने का दावा करें तो मैं कर्णाट-राज की प्यारी रानी उनके सिर पर अपना बायाँ चरण रखती हूँ- "तेषां मूर्ध्नि ददामि वामचरणं कर्णाट-राजप्रिया!" मैं जानता हूँ कि इस उपालम्भ से दुनिया का कोई कवि हारा नहीं है, पर इसका मतलब यह नहीं कि कोई लजाये नहीं तो उसे डाँटा भी न जाय। मैं कहता हूँ कि कवि बनना है मेरे दोस्तो, तो फक्कड़ बनो। शिरीष की मस्ती की ओर देखो। लेकिन अनुभव ने मुझे बताया है कि कोई किसी की सुनता नहीं। मरने दो!
 

रविवार, दिसंबर 10, 2023

भारतीय भाषा उत्सव के बारे में कुछ तथ्य

भारतीय भाषा उत्सव के  बारे में कुछ तथ्य

भारत सरकारप्रसिद्ध तमिल कवि और स्वतंत्रता सेनानी महाकवि चिन्नास्वामी सुब्रमण्यम भारती के जन्मदिन (11 दिसंबर) को भारतीय भाषा दिवस के रूप में मना रही है। 28 सितंबर, 2023 को शुरू हुआ भारतीय भाषा उत्सव 75 दिनों तक चला  और 11 दिसंबर, 2023 को समाप्त हो गया । इस दौरान स्कूलों और उच्च शिक्षा संस्थानों में भारतीय भाषाओं से संबंधित विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गएँ ।

  • हमारे देश की समृद्धि  उसकी  सांस्कृतिक, जातीय एवं भाषाई विविधता से परीलक्षित होती है l हमारी संस्कृति  हमें सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से समृद्ध बनती हैl  भाषा संगम एक भारत श्रेष्ठ भारत की पहल के तहत स्कूल में युवा शिक्षार्थियों की बीच भाषण को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार के द्वारा शुरू  की गयी एक पहल है l इसके अंतर्गत 22 भारतीय भाषाओं के दैनिक उपयोग में आने वाले बुनियादी वाक्य के सीखने के लिए प्रयास किया जाता है |इसके पीछे सरकार की मंशा यह है कि लोग अपनी मातृभाषा के अलावा अन्य भारतीय भाषाओं की बुनियादी बातचीत संबंधी कौशल हासिल करें l 22 भारतीय भाषाओं को सीखने के लिए भाषा संगम मोबाइल एप सरकार ने लांच किया हैl
  •  इस वर्ष का कार्यक्रम तमिल  भाषा के महाकवि सुब्रमण्यम भारती के याद में मनाया जा रहा है भारती जी का जुड़ाव एट्टय पुरम राज  घराने  करने से रहा है l इनका जन्म 11 दिसंबर 1882 को एक तमिल परिवार में हुआ था |11 वर्ष की अवस्था से ही कवि सम्मेलनों में जाने लगेl 11 वर्ष की अल्प आयु  में इनका विवाह कर दिया गया   तथा  बहुत ही कम आयु में भारत की सांस्कृतिक राजधानी वाराणसी में अपनी बुआ के पास आ गए जहां उनका परिचय अध्यात्म और राष्ट्रवाद से हुआ काशी में उनका संपर्क भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा निर्मित हरिश्चंद्र मंडल से रहा वहां उनका संपर्क श्रीमती एनी बेसेंट से भी हुआ |

   भारतीय जी   का आजादी के आंदोलन में विशेष योगदान रहा शासन के विरुद्ध स्वराज सभा के आयोजन के लिए भारतीय जी को कई बार  जेल जाना पड़ा कलकत्ता में बम बनाना पिस्टल चलाना और गोरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण लिया गरम दल के नेता लोकमान्य तिलक के संपर्क में भी रहे l 1917 में हुए गांधी जी के संपर्क में आए और 1920 में असहयोग आंदोलन में सहभागी हुए l  बंकिमचन्द्र चटर्जी के वंदे मातरम का इन्होंने तमिल भाषा में पद्यअनुवाद किया आगे चलकर के तमिलनाडु के घर-घर में यह  गूंज उठा l

 आजादी के आंदोलन में भाग लेने के कारण इन्हें अंग्रेज सरकार ने जेल में बंद कर दिया था जहां इनका स्वास्थ्य खराब होने लगा 11 सितंबर 1921 को इनका निधन हो गया |

  हम देखते हैं कि यह न केवल कवि और लेखक थे बल्कि महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे

________________________________________________________________


o    भाषा संगम: के बारे में कुछ तथ्य

·         यह 22 भारतीय भाषाओं (आठवीं अनुसूची की भाषाएँ) के दैनिक उपयोग में आने वाले बुनियादी वाक्य सिखाने के लिये एक भारत श्रेष्ठ भारत के तहत शिक्षा मंत्रालय की एक पहल है।

·         इसे राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) द्वारा विकसित किया गया है।

·         इसके पीछे यह विचार है कि लोगों को अपनी मातृभाषा के अलावा किसी अन्य भारतीय भाषा में बुनियादी बातचीत संबंधी कौशल हासिल करना चाहिये।

o    यह दीक्षाई-पाठशाला और 22 पुस्तिकाओं के माध्यम से उपलब्ध है।

o    शुरू की गई अन्य पहलों में भाषा संगम मोबाइल एप और एक भारत श्रेष्ठ भारत (EBSB) क्विज़ एप शामिल हैं।

 

 

 

 


गुरुवार, नवंबर 09, 2023

टेलीविजन अख़बार ,रेडियों और इन्टरनेट पत्रकारिता में अंतर -


टेलीविजन--  देखने और सुनने के लिए 

                   टीवी पर घटनाओं की तस्वीर देखकर उसकी  जीवन्तता  का एहसास होता है

अख़बार -   अख़बार पढ़ने के लिए |

                अखबार में समाचार पढ़ कर उसके बारें में सोच सकते है  |

                अख़बार में  समाचार पढ़ने के बाद  रुक कर सोचने  में एक अलग तरह की संतुष्टि मिलती है|

                 प्रिंट मीडिया ने यूरोप के पुनर्जागरण रेनेसा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई


 रेडियों -  रेडियों केवल सुनने के लिए |

               रेडियो पर खबरें सुनते हुए आप जितना उन्मुक्त होते हैं उतना उतना किसी अन्य माध्यम में संभव में संभव नहीं है |

             रेडियो एक रेखीय माध्यम है अर्थात लिनियर माध्यम है


न्टरनेट -  देखने ,पढ़ने और सुनने के लिए |

                 इंटरनेट अंतर क्रियात्मक इंटर एक्टिविटी और सूचनाओं का विशाल भंडार   

 रेडियो टेलीविजन,अख़बार और  इन्टरनेट पत्रकारिता सभी की  लेखन  की शैली  उल्टा पिरामिड शैली है l|

 

हिन्दी विषय पर 10 MCQ

**1. हिन्दी भाषा का उद्भव किस भाषा से हुआ माना जाता है?** a) संस्कृत b) प्राकृत c) पालि d) अपभ्रंश **2. हिन्दी भाषा को राजभाषा का दर्जा कब...