द्विवेदी युग के प्रवर्तक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म १५ मई १८६४ में रायबरेली जिले के दौलतपुर ग्राम में हुआ था | पिता ईस्ट इण्डिया कम्पनी की एक पलटन में थे | इनके बचपन का नाम महावीर सहाय था जो मास्टर की गलती से महावीर प्रसाद हो गया |
इन्होने तार बर्की का काम सीख कर जी आई .पी रेलवे में नौकरी कर ली| पर १९०४ में अग्रेंज अधिकारी के व्यवहार से छुब्ध हो कर नौकरी छोड़ दी| उसके पहले ही १९०३ में सरस्वती के सम्पादन का कार्य भर सभाल लिया था | इस के पहले सरस्वती का सम्पादन १९०० में श्याम सुन्दर दास राधा कृष्ण दास ,जगन्नाथदास, कार्तिक प्रसाद और किशोरी लाल गोश्वामी कर रहे थे |उसके बाद १९०१ में श्यामसुन्दर अकेले रह गये जो १९०३ तक रहे |
द्विवेदी जी की साहित्य यात्रा ---
महिम्न स्तोत्रम का अनुवाद गनात्मक छन्दों में खडी बोली के टीका के साथ किया है |वैराग्यशतक -का विनय विनोद , श्रृंगार शतक का स्नेह माला के रूप में ,गीत गोविन्द का बिहार बाटिका,कालिदास के ऋतु संहार का ऋतुतरंगिणी और हर्बट स्पेंसर के एजुकेशन का अनुवाद शिक्षा (१९०६) नाम से किया |जाँन स्टूअर्ट मिल के आन लिबर्टी का अनुवाद - स्वाधीनता नाम से किया था | इस के अतरिक्त मेघदूत , कुमार संभव, रघुवंश और किरातार्जुनियम का भी अनुवाद किया था |
द्विवेदी जी १९०३ से १९१० के आरम्भ तक सरस्वती का सम्पादन किया ,उसके बाद १९११ से १९१८ तक पुन: सरस्वती का सम्पादन किया, फिर मात्र १९२० में एक वर्ष के लिए सरस्वती का सम्पादन किया और १९२१ में श्री पदुम लाला पुन्ना लाला बख्शी को सम्पादन का कार्य भार दे कर स्थायी रूप से -सरस्वती के कार्य भार से मुक्ति लेली | १९१० में और १९१८ से १९२० तक पं. देवी प्रसाद शुक्ल सरस्वती के सम्पादक रहे |
नैषधचरितचर्चा , समालोचना समुच्चय ,विक्रमांकदेव चरित चर्चा, लेखांजलि, हिंदी कालिदास की समालोचना, साहित्य सीकर, कालिदास की निरंकुशता, वनिता -विलास ,सुकवि- कीर्तन, कालिदास और उनकी कविता कोविद कीर्तन ,सम्पतिशात्र, नाट्यशास्त्र ,रस ज्ञरंजन. सहितायलाप, आलोचनांजलि,संचयन ,संकलन कवि और पंडित ,विचार विमर्श |
१९०० में "हे कविते "शीर्षक से सरस्वती में प्रकाशित कविता में ब्रजभाषा के चिरप्रयोग पर द्विवेदी जी ने छोभ प्रगट किया |
आचार्य द्विवेदी के प्रयास से खडी बोली कविता की भाषा बनी|द्विवेदी जी भाषा की शुद्धि तथा वर्तनी की एक रूपता के प्रबल समर्थक थे | | इनकी प्रेरणा से खड़ी बोली हिंदी में लिखने वालो की एक लम्बी कतार लग गयी| जिनमे प्रमुख रूप से मैथिली शरण गुप्त.गोपालशरण सिंह,गया प्रसाद शुक्ल सनेही और लोचन प्रसाद पाण्डेय थे |इनके अलावा अयोध्या सिंह उपाध्याय "हरिऔध" ,नाथू राम शर्मा शंकरऔर राय देवी प्रसाद पूर्ण थे जो पहले ब्रज भाषा में लिखते थे पर द्विवेदी जी कि प्रेरणा से अब खड़ी बोली में लिखने लगे | केवल सत्य नारायण कवि रत्न और जगन्नाथ दास ही ब्रज भाषा में लिखते थे|
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