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सोमवार, अक्टूबर 17, 2011

महाकवि 'निराला'


कल १५ अक्टूबर को महाकवि 'निराला' की पचासवीं पुण्यतिथि थी। अन्य जगहों पर रस्म-अदायगी हुई, लेकिन 'प्रयाग गौरव' एवं 'विश्व ब्राह्मण सभा' के मंच पर रस्म-अदायगी तक न होने से अत्यधिक पीड़ा हुई। प्रयाग गौरव इलाहाबादियों का और विश्व ब्राह्मण सभा दुनिया भर के ब्राह्मणों का मंच है। मैं स्वयं इन दोनों मंचों से जुड़ा हूँ। यह पोस्ट भी कल ही तैयार थी, लेकिन देख रहा था कि कोई पहल करता है कि नहीं? आज भी अभी तक सोचता रहा की 'देखने' का ठीका क्या मैंने ही ले रखा है, हो सकता है और भी लोग 'देख' रहे हों और कोई 'निराला' प्रेमी प्रकट हो जाय। किन्तु ऐसा नहीं हुआ। हाँ, प्रयाग गौरव के सम्मानित सदस्य भाई चरण लाल जी की काव्य-श्रद्धांजलि अवश्य इसका अपवाद है। भाई चरण लाल जी को साधुवाद। क्या यह हमारी संवेदनशून्यता नहीं है? क्या दोनों मंचों से जुड़े लोग यह नहीं समझते कि ऐसी विभूतियों को यदि हम ही भुला देंगे, तो आगे की पीढ़ी इनके विचारों एवं महापुरुषत्व के आस-पास तक फाटक पायेगी? यह मेरी वेदना है, इस पर विचार करें और यह अवश्य बताएं की क्या मेरी सोच गलत है? महाकवि को मेरी सादर एवं विनम्र श्रद्धांजलि !

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' (२१ फरवरी १८९९ - १५ अक्तूबर १९६१) हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। अपने समकालीन अन्य कवियों से अलग उन्होंने कविता में कल्पना का सहारा बहुत कम लिया है और यथार्थ को प्रमुखता से चित्रित किया है। वे हिन्दी में मुक्तछंद के प्रवर्तक भी माने जाते हैं। निराला का मुख्य अर्थ होता है अनोखा। प्रयोग के अनुसार इसके भिन्न अर्थ हो सकते हैं। लेकिन यह अर्थ पं. सूर्यकांत त्रिपाठी पर एकदम फिट बैठता है।

निराला जी का जन्म बंगाल की रियासत महिषादल (जिला मेदिनीपुर) में माघ शुक्ल एकादशी संवत १९५५ तदनुसार २१ फरवरी सन १८९९ में हुआ था। उनकी कहानी संग्रह लिली में उनकी जन्मतिथि २१ फरवरी १८९९ अंकित की गई है। वसंत पंचमी पर उनका जन्मदिन मनाने की परंपरा १९३० में प्रारंभ हुई। उनका जन्म रविवार को हुआ था इसलिए सुर्जकुमार कहलाए। उनके पिता पंण्डित रामसहाय तिवारी उन्नाव (बैसवाड़ा) के रहने वाले थे और महिषादल में सिपाही की नौकरी करते थे। वे मूल रूप से उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले का गढ़कोला नामक गाँव के निवासी थे। निराला की शिक्षा हाई स्कूल तक हुई। बाद में हिन्दी संस्कृत और बांग्ला का स्वतंत्र अध्ययन किया। पिता की छोटी सी नौकरी की असुविधाओं और मान-अपमान का परिचय निराला को आरम्भ में ही प्राप्त हुआ। उन्होंने दलित-शोषित किसान के साथ हमदर्दी का संस्कार अपने अबोध मन से ही अर्जित किया।

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' की पहली नियुक्ति महिषादल राज्य में ही हुई। उन्होंने १९१८ से १९२२ तक यह नौकरी की। उसके बाद संपादन, स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य की ओर प्रवृत्त हुए। १९२२ से १९२३ के दौरान कोलकाता से प्रकाशित समन्वय का संपादन किया, १९२३ के अगस्त से मतवाला के संपादक मंडल में कार्य किया। इसके बाद लखनऊ में गंगा पुस्तक माला कार्यालय में उनकी नियुक्ति हुई जहाँ वे संस्था की मासिक पत्रिका सुधा से १९३५ के मध्य तक संबद्ध रहे। १९३५ से १९४० तक का कुछ समय उन्होंने लखनऊ में भी बिताया। इसके बाद १९४२ से मृत्यु पर्यन्त इलाहाबाद में रह कर स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य किया। उनकी पहली कविता जन्मभूमि प्रभा नामक मासिक पत्र में जून १९२० में, पहला कविता संग्रह १९२३ में अनामिका नाम से, तथा पहला निबंध बंग भाषा का उच्चारण अक्तूबर १९२० में मासिक पत्रिका सरस्वती में प्रकाशित हुआ। वे जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ हिन्दी साहित्य में छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। उन्होंने कहानियाँ उपन्यास और निबंध भी लिखे हैं किन्तु उनकी ख्याति विशेष रुप से कविता के कारण ही है।

तीन वर्ष की आयु में माता का और बीस वर्ष का होते-होते पिता का देहांत हो गया। अपने बच्चों के अलावा संयुक्त परिवार का भी बोझ निराला पर पड़ा। पहले महायुद्ध के बाद जो महामारी फैली उसमें न सिर्फ पत्नी मनोहरा देवी का, बल्कि चाचा, भाई और भाभी का भी देहांत हो गया। शेष कुनबे का बोझ उठाने में महिषादल की नौकरी अपर्याप्त थी। इसके बाद का उनका सारा जीवन आर्थिक-अनर्थ और संघर्ष में बीता। निराला के जीवन की सबसे विशेष बात यह है कि कठिन-से-कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने सिद्धांत त्यागकर समझौते का रास्ता नहीं अपनाया, संघर्ष का साहस नहीं गंवाया। जीवन का उत्तरार्द्ध इलाहाबाद में बीता। वहीं दारागंज मुहल्ले में स्थित रायसाहब की विशाल कोठी के ठीक पीछे बने एक कमरे में १५ अक्तूबर १९६१ को उन्होंने अपनी इहलीला समाप्त की।


निराला की कृतियाँ -- काव्यसंग्रह - अनामिका, परिमल, गीतिका, द्वितीय अनामिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, बेला, नये पत्ते, अर्चना, आराधना, गीत कुंज, सांध्य काकली, अपरा। उपन्यास- अप्सरा, अलका, प्रभावती, निरुपमा, कुल्ली भाट, बिल्लेसुर बकरिहा। कहानी संग्रह- लिली, चतुरी चमार, सुकुल की बीवी, सखी, देवी। निबंध- रवीन्द्र कविता कानन, प्रबंध पद्म, प्रबंध प्रतिमा, चाबुक, चयन, संग्रह। पुराण कथा- महाभारत। अनुवाद - आनंद मठ, विष वृक्ष, कृष्णकांत का वसीयतनामा, कपालकुंडला, दुर्गेश नन्दिनी, राज सिंह, राजरानी, देवी चौधरानी, युगलांगुल्य, चन्द्रशेखर, रजनी, श्री रामकृष्ण वचनामृत, भरत में विवेकानंद तथा राजयोग का बांग्ला से हिन्दी में अनुवाद।

                                                                                                     http://www.facebook.com/n/?groups%2Fallahabadpride%2F&id=213683078697528&mid=504ddcbG5af35b87b297G99233aG96&bcode=HOFP4yDU&n_m=ramanand198044%40yahoo.com( मिथिलेश व्दिवेदी अन्ना)

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