गुरुवार, सितंबर 10, 2020

तेरी खूबसूरती का फ़साना

(यह कविता उस दौर में लिखी गयी थी जब मैं स्नातक में था | )


है कली कली के होठों  पर ,तेरी खूबसूरती  का फ़साना  |
 मेरी  जिन्दगी  का सब कुछ, तेरी सिर्फ़ मुस्कान में ||

ये खुली खुली  जुल्फे,  सावन कि घटा जैसी|
ये झुकी झुकी निगाहें, सितम गिराये बिजली जैसी ||
तेरे थिरकते कदमों  मे बसंती बहार का खजाना|

है कली कली के होठों  पर ,तेरी खूबसूरती  का फ़साना  ||
तेरा मस्ती -शरारत. भरी नजरें जैसे  जामे साकी  के|
मेरा दिल रो रहा है तू जा मेरी  जिन्दगी से  संभल के||
तेरे गम में  रो लूँगा  क्योंकि खुशी बर्दाश्त. नही करता जमाना |
है कली कली के होठों  पर ,तेरी खूबसूरती  का फ़साना  ||


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