फेल पास होना जिन्दगी के एकही है सिक्केके दो पहलू है,इसके लिए जिन्दगी कोई खत्म करले कितना दुखदायी है। अगर एक बार फेल होजाये तो जीवन खत्म नहीं होता जीवन अमूल्य है ,पर पता नहीं क्या होता जारहा है हमारे आने वाली पीढी को जरा सा दबाव बर्दाश्त नहीं कर पाती है।जब ११ वी फेल होने पर हमारे बच्चे इतना घातक कदम उठा सकते है तो वो जीवन का वह समय कैस बर्दाश्त कर सकेगे जब जीवन के इम्तिहान मे उन्हें अनेक प्रकार की परेशानी आयेगी ।जब १पद के लिए एक लाख फार्म पडेगा, उन्हें बाहर करेने के लिए उन्हींके मित्र तैयार मिलेगॆ।
पर इसके लिए केवल बच्चे जिम्मेदार नहीं है उसके लिए हम सब अर्थात् अध्यापक, माँ बाप और समाज. जिम्मेदार है ।जो हम बच्चों को यह नहीं बता सकते है कि बेटा फेल पास होना जिन्दगी के पहलू है भगवान कृष्ण को भी रणछोड कहाँ जाता है क्योंकि आवश्यकता पडने पर उन्होंने युद्ध का मैदान छोड दिया था। अर्थात् अगर किसी समय कुछ परेशानी आयेतो भागना नहीं चाहिए वरन रणनीति के अनुसार कदम उठाये ।
पर होता यह है कि समाज उससे मजा लेता है हतोत्साहित करता है और उसे मरने के लिए बाध्य करता है। जबकि उस बच्चे का जीवन अनमोल है उसे समझाना चाहिए. उसका हौसला बढाना चाहिए । उसके लिए हमारी शिक्षा व्यवस्था जिम्मेदार है जो बच्चें के मन मे फेल होने का डर १० तक खत्म कर देती है और उसे एकाएक ११ वी मे उसका सामना करना पडता है।८ तक किसी को फेल करना नहीं ।९ वी और १० वी CCA के कारण पास होना ही है ।११ वी ने सीधे बच्चे को इस स्थित का सामना करना पडता है जो उसके लिए एक झटके से कम नहीं होता उस में खोड में घाज का काम करता है जब बच्चे की क्षमता को न देखकर स्कूल एवं माँ बाप उसे साइंस ही पढाना चाहते है।सब माँ बाप उसे डाक्टर इंजीनियर बनाना चाहते है पर उन्हें समझना चाहिए सचिन तो डाक्टर नही है पर उसका बहुत नाम है,
कलाम पायलट का टेस्ट नही पास कर पाये उनका हर भारतीय भगवान की तरह पूजा करता है।
उस पर हमारी शासन प्रणाली ने अध्यापक को अध्यापक कम क्लर्क बना दिया है ।उसे पढाने के अलावा सारें काम करायें जाते है ।हर जनगणना के काम मे, पोलियो पिलाने मे,अध्यापक को डिपुटेशन के काम मे, स्कोर्ट मे ,माह मे एक बार कोई न कोई डाटा इकट्ठा करने का कार्य करवाया जाता है। अध्यापक. पढाने न पाये इसका पूरा इंतजाम किया जाता है, अध्यापक. की लाखॊ पोस्ट खाली है पर उसे भरा नहीं जाता।
आज का पूरा दिन बेहद सदमे से भरा था,सबसे पहले उस बच्चे के साथ बेहद हृदय विदारक घटना घटी उसके घर जाने पर उसके माँ से मिलने के बाद मैं अपने आंसूओंको नहीं रोक पाया क्योंकि माँ बाप पर बच्चे को कुछ होजाने के बाद क्या बीतती है इसका अनुभव मै जानता हूं । मुझे याद है केन्द्रीय विद्यालय सगठंन के लिए. उसकी फोटो लेने के लिए मैं अपने मोबाइल. से फोटो ले रहा था विद्यालय के छत पर फोटो लिया पर अच्छी नहीं आयी तो नीचे बरामदा में उसके बाद लिया। मैं उसे पढाता नहीं था पर हर बच्चे से मै थोडा जुडाव करता था ।
पर आज जो विद्यालय मे जो घटा उसके बाद मन पूरी तरह से शिक्षक पेशे टूट गया ।अब लगता भगवान. ने कोइ दंड देने के लिये ही अध्यापक बनाया है, इससें अच्छा को अन्य कार्य कर लो पान बेच लो पर अध्यापक न बनो क्योंकि जिन बच्चों के अध्यापक अपना सब कुछ. लुटाने को तैयार रहता है । जिन बच्चों के लिए. पेशावर मे एक टीचर ने आतंकवादियों की गोली तक खाई, वहीं बच्चे और उनके घर वाले अध्यापक को कभी सम्मान नहीं देते ।आज से दोमाह. पहले १०वी के छात्रों ने मार पीट कर लिया था तो वे बाहरी बच्चे स्कूल के बच्चों को मारने आये थे सारे बेवकूफ अध्यापक उनकों बचाने का जुगाड़. कर रहें थे ,किस प्रकार मेरे बच्चो की रक्षा हो ।यानी अध्यापक. अपना सब कुछ देने को तैयार है उन्हें पर वे लोग अध्यापक को अपना कब दुश्मन मान लें पता नहीं । इस लिए लोग कहते है ज्यादा इमोशनल न हॊ वह सही ।पर अध्यापक का पेशा ही इतना घटिया है कि बच्चे ही हमारे लियें केन्द्र रहते है अगर किसी बच्चे को मार दो सारा दिन अफसोस रहता है मन दुखी रहता है। पर यह गलत है अब अध्यापक को प्रेटिकल होना पडेगा इसे एक व्यवसाय की तरह देखें और व्यवहार. करे । पर अन्त मे आचार्य चाणक्य के शब्दों मे इतना ही कहना चाहूंगा जो समाज, राष्ट्र, एवं बालक. शिक्षक. की इज्जत नहीं करता उसकी रक्षा परमात्मा भी नहीं कर सकता ।
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