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रविवार, मई 03, 2015

कुंआ का विवाह


एक बार महाराज कृष्णदेव राय और तेनालीराम में किसी बात को लेकर कहासुनी हो गई और तेनालीराम रूठकर कहीं चले गए। शुरू शुरू में तो महाराज ने गुस्से में कोई ध्यान नहीं दिया, मगर जब आठ-दस दिन गुजर गए तो महाराज को बड़ा अजीब सा लगने लगा। उनका मन उदास हो गया। उन्हें कुछ चिंता भी हुई। उन्होंने तुरंत सेवकों को उनकी खोज में भेजा। सेवकों ने आसपास का पूरा क्षेत्र छान मारा, मगर तेनालीराम का कहीं पता न चला। महाराज सोचने लगे कि क्या करें? अचानक उनके दिमाग में एक उपाय सुझा।

उन्होंने आसपास और दूर-दराज के सभी गांवों में ऐलान करवा दिया कि महाराज अपने राजकीय कुएं का विवाह रचा रहे हैं। इसलिए गांव के सभी मुखिया अपने-अपने गांव के कुअों को लेकर राजधानी पहुंचे, जो भी मुखिया आज्ञा का पालन नहीं करेगा, उसे दंड स्वरूप बीस हजार स्वर्ण मुद्राएं जुर्माना देनी होंगी। यह ऐलान सुनकर सभी हैरान रह गए। भला कुएं भी कहीं लाए ले जाए जा सकते हैं। कैसा पागलपन है। कहीं महाराज के दिमाग में कोई खराबी तो नहीं आ गई। जिस गांव में तेनालीराम वेष बदलकर रह रहा था, वहां भी यह घोषणा की गई। उस गांव का मुखिया भी काफी परेशान हुआ।

तेनालीराम इस बात को सुनकर समझ गए कि उसे खोजनेे लिए ही महाराज ने यह चाल चली है। उसने मुखिया को बुलाकर कहा- मुखिया जी, आप बिल्कुल चिंता न करें, आपने मुझे अपने गांव में रहने को जगह दी है। इस उपकार का बदला मैं जरूर चुकाऊंगा। मैं आपको एक तरकीब बताता हूं। आप आसपास के गांवों के मुखियाओं को एकत्रित करके राजधानी की ओर प्रस्थान करें। मुखिया ने आस-पास के गांवों के चार-पांच मुखिया एकत्रित किए और सभी राजधानी की ओर चल दिए। तेनालीराम उनके साथ ही था। राजधानी के बाहर पहुंचकर वे एक जगह रूक गए। उनमें से एक को तेनालीराम ने मुखिया का संदेश लेकर राजदरबार भेजा। वह व्यक्ति दरबार में पहुंचा और तेनालीराम के कहे अनुसार बोला- महाराज हमारे गांव के कुएं विवाह में शामिल होने के लिए राजधानी के बाहर डेरा डाले हुए हैं।

आप कृपा करके राजकीय कुएं को उनकी अगवानी के लिए भेजें। महाराज उसकी बात सुनते ही समझ गए कि यह तेनालीराम की सूझबूझ है। उन्होंने तुरंत पूछा- सच-सच बताओ कि तुम्हे ये युक्ति किसने बताई है? वह बोला महाराज कुछ दिन पहले हमारे गांव में एक परदेसी आकर ठहरा है, उसी ने हमें ये तरकीब बताई है। कहां है वह? राजा ने पूछा। मुखिया जी के साथ राजधानी के बाहर ही ठहरा हुआ है। महाराज स्वयं रथ पर चढ़कर राजधानी से बाहर गए और बड़ी धूमधाम से तेनालीराम को दरबार में वापस लाए। फिर गांव वालों को भी पुरस्कार देकर विदा किया।

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