पेज

गुरुवार, मार्च 29, 2018

शंकर देव असम के महान समाज सुधारक , भगवत् भक्त

जब जब देश और समाज में मानवता का पतन हुआ है ,समाज में धर्मविरोधी ताकतों का बोलबाला हुआ  तब तब ईश्वरीय कृपा से इनका दमन करने और धर्म की स्थापना करने के लिए इस देश की धरती पर अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया है | इसी में एक महान वैष्णव संत और समाज सुधारक  थे श्रीमत  शंकर देव | जिनका  जन्म १४४९ ई. में असम नगाँव जिले के अलिपुखरी गाँव में हुवा था|  भूंजा वंश के शिरोमणि कुसुम्बर इनके पिता और  सत्यसंध्या उनकी माता थी | इनके जन्म के कुछ समय बाद ही इनकी माता का देहांत हो गया , युवा होने पर इनका विवाह सूर्य वती से हुवा , पर वह भी एक कन्या को जन्म दे कर स्वर्ग सिधार गयी ,इसके बाद श्रीमंत शंकर देव संसार से विरक्त होकर भारत के सभी तीर्थो की यात्रा पर निकल गये, जहाँ इनकी मुलाकात रूप गोस्वामी और सनातन गोस्वामी से हुई | जिनके प्रभाव से कृष्ण भक्ति की ओर मुड़े |

  श्रीमंत शंकर देव ने  असमिया साहित्य को नवीन जीवन तो दिया ही ,साथ ही असम की जनता में वैष्णव धर्म का प्रचार कर असम को अभिन्न अमिट भारत के साथ  एकता के सूत्र में बाधा | वैष्णव धर्म  हिन्दू धर्म की एक शाखा है इस में विष्णु भगवान के अवतारों की पूजा की जाती है इस शाखा में भगवान की मूर्ति की तो पूजा की जाती है पर नाम संकीर्तन को अधिक महत्त्व दिया जाता है | क्योंकि वैष्णव धर्म के अनुसार  भगवान से बड़ा उनका नाम होता है , मूर्ति पूजा को धर्म शास्त्र में कठिन माना गया है इसलिए भगवान के नाम को  अधिक महत्त्व दिया गया है |श्रीमंत शंकर देव ने देखा की असम में व्यापक कर्मकांड का बोला बाला था चारो ओर धर्म के नाम पर अत्याचार हो रहा था | वैष्णव धर्म के नाम सिधांत को अपना कर असम में श्री कृष्ण के नाम का प्रचार प्रसार किया |

 शंकर देव की भक्ति साधना  के मूल आधार थे भगवान श्री कृष्ण | शंकर देव ने जिस धर्म का प्रचार प्रसार किया उसे आज कल  महापुरुषीया  धर्म कहते है श्री मंत शंकर देव ने अपने समय में ऐतिहासिक नवजागरण का कार्य किया तथा उस समय हिन्दुओं की और सीमांत की आदिवासी जातियों उपजातियों की अध्यात्मिक भावनाओं को रक सूत्र में गुथा | उन्होंने धर्म संस्कार केसाथ समाज-संस्कार भी दिया |

  जहाँ कीर्तन ईश्वर को पाने का एक सशक्त माध्यम रहा है  वही इसके द्वारा समाज को सन्देश भी दिया जाता है |इसी कारण भारत के हर प्रान्त में भक्ति आंदोलनों में कीर्तन का अपना एक अलग महत्त्व रहा है  जैसे महाराष्ट्र में हरी कथा कहने वाले कथाकरी कहलाते है |तमिलनाडु में कथाकालक्षेपम” कहलाती है असम में बरगीत कहलाती है |असम के बरगीत गायकों 15 वीं शताब्दी  से लगातार सैकड़ों वर्षों तक कीर्तन की ऐसी धूम मचाई की इनकी तुलना अष्टछाप के कवियों से या बंगाल के बाऊलों” से की जा सकती है |असम के समाज में धर्म और कला के क्षेत्र में बरगीत का स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है आपकी भाषा ब्रजबुली है |

श्रीमत  शंकर देव जी एक महान भक्त के साथ साथ महान साहित्य कार भी थे उन्होंने सैकड़ो ग्रंथों की रचना की थी जिसमे प्रमुख इस प्रकार है भागवत पुराण—प्रथम , द्वितीय ,अष्टम ,दशम ,एकादश और द्वादश स्कंध , रामायण उत्तर कांड ,रुकमनी हरण(काव्य ) गुणमाला ,बरगीत ,बलिछलन, कालिदमन(नाटक )  केलिगोपाल , पारिजात हरण आदि 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें