अजंता की सरंचना और उसकी भव्यता अपने आप में कल्पना से परे है । हमारे पूर्वज कितने आगे थे कि पहाड़ का सिना चीर कर उसमें प्राण डाल दिया। अंजता एक एक पत्थर अपने भव्यता एवं सृजनात्मक का बेजोड़ नमूना है । हर पत्थर पर कहानी है एक सरगम है । जीवन की तान है । जीवन के सारे अध्याय इन में लिखे है ।
अजंता की गुफाएं वाघोरा नदी की जलधारा के समीप 76 मीटर की उंचाई पर घोड़े के नाल की तरह चट्टानों को खोद कर बनाई गयी है इस स्थान पर बौद्ध भिक्षु वर्षा ऋतु में आकर रहते थे। । इस मे कुल तीस गुफाएं जो ई. पूर्व द्वितीय शताब्दी से लेकर आठवीं शताब्दी तक चलता रहा । जिन में गुफा क्रमांक 10 सबसे पुरानी है, जो द्वितीय ईसा पूर्व की है । सबसे नवीनतम गुफा संख्या 26 है जिसमें राष्ट्रकूट अभिलेख है ।
चीनी यात्री ह्युयेन त्सांग ने भारत भ्रमण ( 7वीं ) में किया था । उसने अपने ग्रंथ में अजंता के बारे में विस्तार से लिखा है ।
अजंता गुफा की खोज एक अंग्रेज अधिकारी ने शिकार खेलते वक्त की थी । उसने सबसे पहले गुफा संख्या 10 देखी थी । जिसका मेहराब काफ़ी बड़ा है ।
यह गुफा औरंगाबाद बाद से 107 किलोमीटर दूर भुसावल से 75 किलोमीटर दूर एक दम विरान जगह पर स्थित है । इस जगह को देख कर लग नहीं सकता है कि एक भव्य विश्व प्रसिद्ध को स्थान भी होगी । चारो तरफ विरान सा छोटी छोटी झाड़ियों का मैदान है । औरंगाबाद और भुसावल हाईवे से 6 किलोमीटर दूर स्थित है । गुफा तक जाने के लिए सरकार के द्वारा बस चलती है । आगे का रास्ता पैदल चलना पड़ता है । गुफा में जाने से पहले पानी और कुछ फल अवश्य साथ ले ले । गुफाओं 3से 4घंटे लग सकते है ।
गुफा के लिए जहाँ पर बस मिलती है वहाँ पर बहुत सारी दुकाने है पर इस दुकानों बहुत सुन्दर और आकर्षक सजावटी वस्तुएँ मिल जाती जै ।पर सावधानी से क्योंकि तीन गुना तक अधिक दाम बोले जाते है ।
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