गजल शेरों का समूह है। शेर दो पंक्तियों से मिल कर बनते है । जिन्हें मिसरा कहते है । पहली पंक्ति के मिसरे को मिसर -ए -ऊला एवं दूसरी पंक्ति मिसर-ए- सानी
मतला - गजल का पहला शेर, इसके दोनो मिसरो में काफिया ( तुक) होता है ।अगर गजल के दूसरे शेर के दोनों पंक्तियों में भी काफिया हो तो हुस्ने - मल्ला या - ए- सानी है ।
क़ाफिया - वह शब्द जो मतले के दोनो पंक्तियों में आये एवं अन्य शेर की दूसरी पंक्ति में आये ।
रदीफ - काफिया के बाद जो शब्द आया उसे रदीफ कहते है।रदीफ न होने पर गैर- रदीफ. गजल कहते है ।
मकता - गजल का आखिरी शेर जिसमें लेखक नाम(तखल्तुस) आये । न आने पर आखिरी शेर कहता है
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