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मंगलवार, नवंबर 05, 2019

रस - स्थायी भाव , संचारी भाव,विभाव


जब हम किसी साहित्य का अध्ययन करते है तो जो हमें अनुभूति होती है उसे ही रस कहते है दूसरे शब्दों में कहें तो कविता कहानी ,उपन्यास या साहित्य की किसी अन्य विधा से जिस आनंद की अनुभूति होती है वह रस है | रस काव्य की आत्मा है| रस के संबंध भरत मुनि की पारिभाषा सबसे पहले मान्य हुई थी , भरत मुनि रस के प्रवर्तक आचार्य है | भरत मुनि ने अपने ग्रंथ नाट्यशास्त्र में रस की वृहद् व्याखा की है |
विभाव अनुभाव एवं व्यभिचारी भावों के संयोग से रस की अभिव्यक्ति होती है |
किसी भी रस का आधार भाव है भाव शुन्य व्यक्ति के हृदय में रस उत्पन्न ही नही होता है | भाव मन के विकार है| ये दो प्रकार के होते है – स्थायी भा  व ,संचारी भाव
स्थायी भाव – सहृदय सामाजिक के हृदय में वासना के रूप में स्थित भाव स्थायी भाव है | अथार्त स्थायी भाव प्रत्येक मानव के मन में सुप्तावस्था में विराजमान  ही रहते है  तथा अनुकूल परिस्थिति पाते ही जाग्रत हो जाते है और रस के रूप में परिणित हो जाते है | इनकी संख्या के विषय में  विद्वानों के मध्य मत भेद है ,परन्तु इतना निश्चित है कि प्रत्येक रस का एक स्थायी भाव है |
स्थायी भाव
रस
रति
श्रृंगार
हास
हास्य
शोक
 करुण
उत्साह
वीर
क्रोध
रोद्र
भय
भयानक
जुगुप्सा ( घृणा )
वीभत्स
विस्मय
अद्भुत
वैराग्य
शांत
ईश्वर के प्रति प्रेम
भक्ति
बच्चे के प्रति प्रेम
वात्सल्य

विभाव – रस की उत्तपति के कारण को विभाव कहते है |विभाव दो प्रकार के होते है |
आलंबन विभाव ,उद्दीपन विभाव
आलंबन विभाव -- जिस के कारण स्थायी भाव की उत्तपति होती है उसे आलंबन विभाव कहते है जैसे नाटक में नायक , नायिका आदि |  आलंबन विभाव के दो भेद हो ते है |--आश्रय आलंबन एवं विषय आलंबन
वन में सीता के द्वारा राम को और उनसे प्रेम करना इस सीता आश्रय है और राम विषय आलंबन है |
उद्दीपन विभाव – उत्पन्न हुए स्थायी भाव को तीव्र करने वाली परिस्थिति को उद्दीपन विभाव कहते है | जैसे चंद्रा, कोकिल कुंजन और एकांत स्थल पर नायिका से मिलाना ,  हास्योत्पादक चेष्टाएँ इत्यादि |
अनुभाव – विभाव के पश्चात उत्पन्न भाव को अनुभाव कहते है | अथार्त कारण के पश्चात कार्य का उत्पन्न होना |अनुभाव के चार प्रकार है |
वाचिक अनुभाव ,कायिक अनुभाव ,आहार्य अनुभाव ,सात्विक अनुभाव
 वाचिक अनुभाव—वचनों में कठोरता कोमलता ,आदि का प्रदर्शन करना |जैसे जोर से चिल्लना , दुखी होकर बोलना , उत्साह में बोलना |
कायिक अनुभाव—शारीरिक चेष्टायों को कायिक अनुभाव कहते है | शर्मना ,हाथ मलना ,नजरें झुका लेना
आहार्य – वस्त्रों के द्वारा भावों को प्रकट करना
सात्त्विक – जो विचार शारीर की स्वाभाविक क्रिया हो | 
संचारी भाव- जो भाव मन कुछ समय तक रहकर चले जाते है संचारी है |अथार्त जो भाव संचरण करते रहे |इनकी संख्या 33मानी गयी है |



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