करूण रस – जब किसी प्रिय व्यक्ति का वियोग या
उसके मरणसे शोक उत्पन्न होता है तो करुण रस उत्पन्न होता है |इसका स्थायी भाव शोक
है |
फिर
पीटकर सिर और छाती अश्रु बरसाती हुई
कुकरी सदृश सकरूण गिरा दैन्य से दरसाती हुई ||
बहुविध विलाप प्रताप वह करने लगी उस शोक में |
निज प्रिय-वियोग समान दुःख होता न कोई
लोक में |
हाय राम कैसे झेले हम अपनी लज्जा अपना शोक |
गया हमारे ही हाथों से अपना राष्ट्र
पिता परलोक ||
धोखा न दो भैया मुझे,इस भांति आकर के यहाँ
मझधार में मुझको बहाकर तात जाते हो कहाँ ?
सीता गई तुम भी चले मैं भी न जीऊंगा यहाँ
सुग्रीव बोले साथ में सब जायेंगे बानर
वहाँ ?
सुदामा की दीन दशा देखकर श्रीकृष्ण का व्याकुल
होना—
पायं बेहाल बिवाइन सों भये,कंटक-जाल लगे पुनि जोये
|
हाय| महादुख पाये सखा!तुम आये इतै न कितने दिन
खोये |
देखि सुदामा की दीन दसा,करूण करिकै करूणानिधि
रोये |
अभी तो
मुकुट बंधा था माथ
हुए कल ही हल्दी के हाथ
खुले भी न थे लाज के बोल
खिले थे चुम्बन शून्य कपोल
हाय रुक गया यहीं संसार
बना सिंदूर अनल अंगार
वातहत लतिका वह सुकुमार
पड़ी है छिन्नाधार!
हुए कल ही हल्दी के हाथ
खुले भी न थे लाज के बोल
खिले थे चुम्बन शून्य कपोल
हाय रुक गया यहीं संसार
बना सिंदूर अनल अंगार
वातहत लतिका वह सुकुमार
पड़ी है छिन्नाधार!
दुःख ही जीवन की कथा रही
क्या कहूँ, आज जो नहीं कहीं
रही खरकती हाय शूल-सी, पीड़ा उर में दशरथ के
ग्लानि, त्रास, वेदना - विमण्डित, शाप कथा वे कह न सके
क्या कहूँ, आज जो नहीं कहीं
रही खरकती हाय शूल-सी, पीड़ा उर में दशरथ के
ग्लानि, त्रास, वेदना - विमण्डित, शाप कथा वे कह न सके
मणि खोये
भुजंग-सी जननी,
फन-सा पटक रही थी शीश,
अन्धी आज बनाकर मुझको,
क्या न्याय किया तुमने जगदीश ?
फन-सा पटक रही थी शीश,
अन्धी आज बनाकर मुझको,
क्या न्याय किया तुमने जगदीश ?
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