प्रश्न १- कालजयी अवधूत किसे कहाँ गया है और क्यों ?
या 2016.2013.
लेखक ने शिरीष को अद्भुत अवधूत क्यों कहा है ? 2010.2015
लेखक को शिरीष के फूल में कालजयी अवधूत (संन्यासी) के
समान दिखने वाली समानताएँ:
- काल के प्रभाव से परे: शिरीष प्रचंड गर्मी में भी
फलता-फूलता है, यह दर्शाता है कि वह काल
के प्रभाव से परे है।
- विषय-वासनाओं से विरक्त: कठिन परिस्थितियों में भी
शिरीष का अविचल रहना उसकी विषय-वासनाओं से विरक्ति को दर्शाता है।
- अडिग और स्थिर: प्रचंड गर्मी और उमस में
भी अविचल रहकर शिरीष एक संन्यासी की तरह अडिग और स्थिर प्रतीत होता है।
- कठिनाइयों से लड़ने की
प्रेरणा: शिरीष का कठिन
परिस्थितियों में भी खिलना हमें मुसीबतों से कभी न हारने की प्रेरणा देता है।
ठीक वैसे ही जैसे एक संन्यासी सुख-दूख
में सम भाव रख कर केवल अपने ज्ञान और तप से दूसरों को प्रेरित
करता है|
संक्षेप में, शिरीष का फूल लेखक को एक कालजयी संन्यासी की याद
दिलाता है जो काल, विषय-वासनाओं
और कठिनाइयों से परे है और अपने अस्तित्व से दूसरों को प्रेरित करता है।
प्रश्न 2-शिरीष ,अवधूत और गाँधी एक दूसरे के सामान
कैसे थे ?
- बाह्य परिवर्तनों में
स्थिरता: शिरीष का पेड़ बाहरी
उथल-पुथल में भी स्थिर और पुष्पित-पल्लवित रहता है, ठीक
उसी तरह जैसे महात्मा गांधी हिंसा और अराजकता के बीच भी अडिग रहे। शिरीष और
गांधी जी दोनों ही अपने-आप में मस्त,
बाहरी प्रभावों से अप्रभावित
रहने वाले अवधूत हैं।
- कोमलता और कठोरता का
मिश्रण: शिरीष का पेड़ कोमल फूल से लदा रहता है इतना कठोर
होता है कि भयानक लू उमस में यह वातावरण से रस खीच
लेता है यह गांधी जी के व्यक्तित्व की कोमलता और
कठोरता के मिश्रण की याद दिलाता है।
सारांश: शिरीष
के पेड़ की बाहरी परिवर्तनों में स्थिरता, कोमलता और कठोरता का अनूठा मिश्रण तथा अवधूत
प्रवृत्ति लेखक को महात्मा गांधी की याद दिलाती है, जिन्होंने भी अपने जीवन में इन्हीं गुणों का प्रदर्शन
किया था।
प्रश्न -3 जारीप्रसाद द्विवेदी के द्वारा नेताओं और कुछ पुराने व्यक्तियों की
अधिकार सीमा पर किए गए व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए। All India 2017
इस निबंध में नेताओं
और कुछ पुराने व्यक्तियों की अधिकार लिप्सा पर गहरा व्यंग्य किया है। लेखक कहते
है कि जिस तरह शिरीष के पुराने फल नवीन
पुष्प आने पर बने रहते उसी
प्रकार नेता सत्ता
के शीर्ष पर बने रहना चाहते हैं, भले ही उनका समय बीत चुका हो और वे समाज के लिए अब उपयोगी नहीं रहे। पर वे अपनी युवा पीढ़ी के लिए पद
का त्याग नहीं करते है | जब तक कोई धक्का मार कर बाहर न कर दे |
वे कहते है इन्हें जानना चाहियें कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है ,नेताओं और बुजुर्गों को यह समझना चाहिए कि जब
उनका समय बीत जाए, तो
उन्हें नए और सक्षम लोगों को आगे आने देना चाहिए। वरना धक्के मार कर बाहर कर दियें जायेगे |
प्रश्न 4. शिरीष
की पुरानी फलियों के माध्यम से लेखक ने किस कटु यथार्थ का संकेत किया है? टिप्पणी कीजिए। २०१६
शिरीष की पुरानी फलियों के माध्यम से लेखक ने जीवन
के अपरिहार्य परिवर्तन और पुराने के स्थान पर नए के आगमन के कटु यथार्थ की ओर
संकेत किया है।
पुरानी
फलिया बुजुर्ग नेताओं की प्रतीक है जिन्हें पता होना चाहिए की परिवर्तन एक ऐसी कटु यथार्थ है जिसे स्वीकार करना कठिन होता है पर यह
अनिवार्य है | अत: उन्हें अपने अतीत के गौरव और उपलब्धियों से चिपके नहीं रहना चाहिए वरन समय के साथ परिवर्तन स्वीकार करना चाहिए । जो
लोग नए विचारों और बदलावों को अपनाने में असमर्थ होते हैं, वे
समाज में अप्रासंगिक हो जाते हैं।
लेखक
कहता है महाकाल देवता लगातार कोड़े चला
रहे है अत: आगे की ओर मुख कर बढ़ते रहों रूको नहीं
| क्योंकि 'चरैवेति-चरैवेति संसार का नियम है |
सार:
शिरीष की पुरानी फलियाँ हमें याद दिलाती हैं कि जीवन
में परिवर्तन निरंतर होता रहता है और हमें इसके साथ सामंजस्य बिठाना सीखना चाहिए।
अतीत की उपलब्धियों पर अटके रहने के बजाय हमें वर्तमान में जीना चाहिए और भविष्य
के लिए तैयार रहना चाहिए।
प्रश्न 5 - हाय
वह अवधूत कहाँ है ?लेखक ने यहाँ किसे स्मरण किया है ?
हाय !वह
अवधूत कहाँ है ? निबंध के अंतिम पंक्ति है इस पंक्ति के माध्यम से लेखक कहता है कि
महात्मा गाँधी शिरीष के फूल की भाति थे |
लेखक के अनुसार प्राचीन भारत में आत्मबल को सर्वोच्च
माना जाता था। एक मजबूत आत्मा वाला व्यक्ति हर कष्ट से परे होता है, सुख-दुःख
से निर्लिप्त रहता है। आत्मबल से इंद्रियों और मन पर नियंत्रण होता है, व्यक्ति
महात्मा बनता है। आज के युग में देह-बल का बोलबाला है, जो
सभ्यता के पतन का कारण है। सच्ची सभ्यता आत्मबल से ही फलती-फूलती है। देह-बल शत्रु
को गुलाम बनाता है, जबकि
आत्मबल आंतरिक शत्रुओं पर विजय दिलाकर शांति और समाज कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता
है।
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