वे
दुनिया के
सबसे
जाने-माने
साइंटिस्ट
हैं। लेकिन
उनकी साइंस की
तरह स्टीफन
हॉकिंग (69) की
जिंदगी की
कहानी भी
हैरान कर देने
वाली है। जब वे
21 बरस के थे, तब
पता चला कि एक
भयानक बीमारी
एएलएस
(एम्योट्रॉपिक
लेटरल
सलेरोसिस या
लाउ गेहरिग्स
डिसीस) उन पर
हमला बोल चुकी
है। आम तौर पर
यह बीमारी
पांच साल में
जान ले लेती
है, लेकिन
हॉकिंग इसे
मात देकर आगे
बढ़ते गए।
उनका शरीर
लगभग पूरी तरह
लकवाग्रस्त
है। अपनी आवाज
की जगह वे एक
मशीन का
इस्तेमाल
करते हैं।
शब्द उनके
वीलचेयर पर
लगे कंप्यूटर
के स्क्रीन पर
आते-जाते हैं।
चेहरे की एक
मसल से वे अपने
चश्मे पर लगे
सेंसर के जरिए
कंप्यूटर को
निर्देश देते
हैं। उस तरह
धीरे-धीरे
वाक्य बनते
हैं और तब वे
मशीनी आवाज के
जरिए अपने
हैरतअंगेज
विचार दुनिया
के सामने पेश
करते हैं। हम
सबके लिए उनका
एक ही मेसेज
है- अपनी
शारीरिक
कमजोरी को
अपने मन पर
हावी मत होने
दो।
एक दिन
स्पेस में
जाऊंगा
मैं
सुबह जल्दी उठ
जाता हूं और
अपने ऑफिस
जाता हूं।
ई-मेल के जरिए
सारी दुनिया
के रिसर्चरों
से बात करता
हूं। हालांकि
मुझे मदद की
जरूरत होती है,
लेकिन मैं
कोशिश करता
हूं कि अपनी
कमजोरी से ऊपर
उठूं और
जिंदगी को
जितना हो सके,
जिऊं। मैंने
अंटार्कटिका
से जीरो
ग्रेविटी तक
पूरी दुनिया
घूमी है। शायद
एक दिन स्पेस
में भी जाऊं।
खुद पर तरस
कभी नहीं
शायद मुझे
वैसी मोटर
न्यूरॉन
डिजीज नहीं थी,
जिससे लोग कुछ
ही बरसों में
मर जाते हैं।
इस बात से भी
मदद मिली कि
मेरा खयाल रखा
गया और मेरे
पास एक काम था।
इस बीमारी ने
मुझे सिखाया
कि मैं अपना
काम करता जाऊं
और खुद पर तरस
न खाऊं,
क्योंकि
मुझसे बुरी
दशा में भी कई
लोग हैं। आज
मैं बीमार हूं
लेकिन पहले से
ज्यादा खुश
हूं। मैं
खुशकिस्मत था
कि
थ्योरिटिकल
फिजिक्स में
काम कर रहा था।
यह उन थोड़े से
कामों में है
जहां शारीरिक
कमी से ज्यादा
फर्क नहीं
पड़ता।
कमजोरी आड़े
नहीं
मेरी
तरह
के
दूसरे
लोगों
से
मैं
यही
कहूंगा
कि
उन
कामों
पर
खुद
को
टिकाओ
,
जिनमें
तुम्हारी
कमजोरी
आड़े
नहीं
आती।
जहां
यह
आड़े
आती
है
,
उन
बातों
को
लेकर
कोई
पछतावा
मत
करो।
अपने
मन
से
कभी
विकलांग
मत
बनो।
इंसान
कभी
नहीं
हारता
मैं
कई
बार
जापान
गया
हूं
और
वहां
जो
हुआ
है
,
उसे
लेकर
मुझे
गहरा
दुख
है।
एक
प्रजाति
के
तौर
पर
हम
इंसान
कई
मुसीबतों
और
कुदरती
हमलों
को
झेल
चुके
हैं।
मैं
जानता
हूं
कि
इंसान
का
हौसला
ऐसी
बुरी
बातों
को
झेल
जाने
की
काबिलियत
रखता
है।
मेरी
खुशियां
जैसा
कि
कुछ
साइंटिस्ट
मानते
हैं
,
अगर
समय
में
आगे
या
पीछे
जाना
(
टाइम
ट्रेवल
)
मुमकिन
हो
और
मुझे
किसी
एक
समय
में
लौटने
का
मौका
मिले
तो
मैं
1967
में
लौटना
चाहूंगा
,
जब
मेरे
पहले
बच्चे
रॉबर्ट
का
जन्म
हुआ
था।
मेरे
तीन
बच्चों
ने
मेरी
जिंदगी
में
खुशियां
भर
दी
हैं।
(
एनबी
टी)
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