श्रृंगार
रस –प्रेम पूर्वक वर्णन श्रृंगार रस के अंतर्गत आता है | श्रृंगार का स्थायी भाव
रति होता है |इसके दो भेद है संयोग श्रृंगार और वियोग श्रृंगार | इसे रस राज कहते हैं |
संयोग
श्रृंगार रस – जब नायक और नायिका का मिलन
होता है अर्थात् जब प्रेमी और प्रेमिका का साथ हो |
1. बतरस लालच लाल की ,मुरली धरी लुकाय
|
सौंह करैं भौहँनि हंसे, दैन कहैं नटी जाय |
2. देखन मिस मृग- बिहंग तरू, फिरति
बहोरि-बहोरि |
निरिख-निरिख रघुवीर-छवि ,बढ़ी प्रीति न थोरि||
3. नहीं पराग नहिं मधुर मधु,नहिं
विकास इहि काल |
अली कली ही सों बिध्यों, आगें कौन हवाल ||
4.
राम के रूप
निहारति जानकी कंकन के नग की परछाहीं ।
याती सबै सुधि भूलि गई, कर टेकि रही पल टारत नाहीं ।
याती सबै सुधि भूलि गई, कर टेकि रही पल टारत नाहीं ।
5 कहत नटत रीझत खिझत, मिलत खिलत लजियात
भरे भौन में करत है, नैननु ही सौ बात
वियोग
श्रृंगार -- जब नायक और नायिका का दूर
होते है अर्थात् जब प्रेमी और
प्रेमिका का साथ न हो |
1. अति मलीन वृषभानु-कुमारी
अध मुख रहित ,उरघ नहिं चितवति ,ज्यों गथ हारे थकित जुआरी |
2 छुटे चिकुर ,बदन कुम्हिलानों
त्यों
नलिनी हिमकर की मारी ||
3.
उधो, मन न भए दस बीस।
एक हुतो सो गयौ स्याम संग, को अवराधै ईस॥
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