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शुक्रवार, मई 01, 2020

Bhayanak Ras/भयानक रस


Bhayanak Ras/भयानक रस 

इस में भयोत्पादक विषयों का वर्णन होता है |इसका स्थाई भाव भय है |किसी भयानक दृश्य को देखने के कारण  उपन्न भय जब अपनी परिपक्वावस्था को प्राप्त करता है यो उसे भयानक रस कहते है |

एक ओर अजगरहिं लखि,एक ओर मृगराय|
विकल बटोही बीच ही,परयो मूरछा खाय ||

बालधी विसाल,विकराल,ज्वाला-जाल मानौ ,लंक लीलिबों को काल रसना पसारी है |
कैंधों व्योम बिध्यिका भरे हैं भूरि धूमकेतु,वीर रस वीर तरवारि सी उधारी |


समस्त सर्पों संग श्याम ज्यों कढ़े
       कलिन्द की नन्दिनी की सुअंक से
खड़े किनारे जितने मनुष्य थे
   सभी महाशंकित भीत हो उठे ||हुए कईमूर्च्छित घोर त्रास से
कई भगे मेदिनि में गिरे कई |
हुई यशोदा अति ही प्रकम्पिता ब्रजेश भी व्यस्त समस्त हो गये||


  चली आ रही फेन उगलती,फन फैलाए व्यालों सी
अखिल यौवन के रंग उभार हड्डियों के हिलाते कंकाल
कचो के चिकने काले ,व्याल,केचुल कांस,सिबार


Bhayanak Ras/भयानक रस 


लपट कराल जवाल-जाल-माल दहूँ दिसि ,
धूम अकुलाने,पहिचानै कौन काहि रे ||
पानी को ललात,बिललात,जरे गात,
परे पाइमालतू भ्रात,तू निबाहि रे||
प्रिया तू पराहि नाथ नाथ तू पराहि बाप.बाप तू पराहि पूत पूत पराहि रे
तुलसी बिलोकि गोल ब्याकुल बिहालक है
लेहि दससीस अब बीस चख   चाहि रे |

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