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शुक्रवार, मई 01, 2020

वीभत्स रस


घृणा उत्पन्न करने वाले अमांगलिक,अश्लील दृश्यों को देख कर दृश्यों के प्रति जुगुप्सा का  भाव परिपुष्ट हो कर वीभत्स रस उत्पन्न करता है |

सिर पर बैठ्यो काग आँख दोउ खात निकारत |
खीचत जिभहिं स्यार अतिहि आनन्द उर धारत ||
गीध जांघि को खोदि-खोदि कै मांस उघारत |
स्वान अंगुरिन काटी-काटी कै खात  विदारत ||


ओझरी की झोरी काँधे,आंतनि की सेल्ही बांधें,
मुंड के कमण्डलु,खपर किये कोरि कै
जोगिनी झुदुंग झुण्ड-झुण्ड बनी तापसी सी
 तीर-तीर बैठी सो समर सरि खोरि कै||
सोनित सो सानि सानि गूदा खात सतुआ से
प्रेत एक पियत बहोरि घोरि-घोरि कै |
तुलसी बैताल भूत साथ लिए भूतनाथ
  हेरि हेरि हँसत है हाथ- हार जोरि कै |


आँखे निकाल उड़ जाते,क्षण भर उड़ क्र आ जाते |
शव जीभ खीचकर कौवे,चुभला-चुभला कर खाते|
भोजन में श्वान लगे मुरदे थे भू पर लेटे |
खा मांस चाट लेते थे,चटनी सम बहते बेटे |




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