श्लेष
का अर्थ है चिपकना |
अत: जहाँ एक शब्द के एक से अधिक अर्थ
निकलें,वहाँ श्लेष अलंकार होता है |
चरण धरत चिंता करत,चितवत चारहूँ ओर |
सुबरन को खोजत फिरत,कवि,व्यभिचारी
चोर |
जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति
सोय |
बारे उजियारो करै, बढ़े अंधेरो होय
||
§चिरजीवौ
जोरी जुरे, क्यों न सनेह गंभीर |
को घटि या वृषभानुजा,वे हलधर के वीर |
को घटि या वृषभानुजा,वे हलधर के वीर |
§मधुबन
की छाती को देखो |
§सूखी
कितनी इसकी कलियाँ |
§मेरी
भव-बाधा हरौ राधा नागरि सोय |
जा
तन की झाई परै स्यामु हरित दुति होय ||
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें