अल्फाज़ो की दुनिया मे,
बेज़ुबान हम कहाँ!
रगो की चाहत तो रखु,
पर फिर भी रागिन हम कहाँ!
खुशी खोजे हर नहीं,
पर नसे जो हो,
वही मिला!
जीवन के हर मोड़ पर,
चाहतो का अजीब एक मेला लगता है,
मंजिल के पीछे भागे हर कोई,
पर ये मंजिल किसे मिली,
उन लोगों ने हम कहाँ!
तो फिर उठा लू,
दिन भी बनाते हैं,
पर जब के रगीन कागज पर हम कहाँ!
https://youtu.be/zZm45kznglY
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