घृणा उत्पन्न करने
वाले अमांगलिक,अश्लील दृश्यों को देख कर दृश्यों के प्रति जुगुप्सा का भाव परिपुष्ट हो कर वीभत्स रस उत्पन्न करता है
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सिर पर बैठ्यो काग आँख दोउ खात निकारत |
खीचत जिभहिं स्यार अतिहि आनन्द
उर धारत ||
गीध जांघि को खोदि-खोदि कै
मांस उघारत |
स्वान
अंगुरिन काटी-काटी कै खात विदारत ||
ओझरी की झोरी काँधे,आंतनि की
सेल्ही बांधें,
मुंड के कमण्डलु,खपर किये कोरि
कै
जोगिनी झुदुंग झुण्ड-झुण्ड बनी
तापसी सी
तीर-तीर बैठी सो समर सरि खोरि कै||
सोनित सो सानि सानि गूदा खात
सतुआ से
प्रेत एक पियत बहोरि घोरि-घोरि
कै |
तुलसी बैताल भूत साथ लिए
भूतनाथ
हेरि हेरि हँसत है हाथ- हार जोरि कै |
आँखे निकाल उड़ जाते,क्षण भर उड़
क्र आ जाते |
शव जीभ खीचकर कौवे,चुभला-चुभला
कर खाते|
भोजन में श्वान लगे मुरदे थे
भू पर लेटे |
खा
मांस चाट लेते थे,चटनी सम बहते बेटे |
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