सोमवार, मई 04, 2020

अनुप्रास अलंकार


जब किसी पद में वर्णों की आवृति बार-बार  होती है तो वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है ||


 स्वर का सम्मेलन  जहाँ,चाहे होय न होय |


व्यजंन की समता मिले,अनुप्रास है सोय |


तरनि तनूजा तट तमाल तरूवर बहु छाए |
सो सुख सुजस सुलभ मोहिं स्वामी

मृद मंद मंद-मंथर-लघु- तरणी-हंसिनी-सी सुन्दर,

तिर रही खोल पाली के पर |
पुलक प्रकट करती है धरती
हरित तृणों की नोकों से
मानो झीम रहे हैं तरू भी
मंद पवन के झोंकों से 

चारू चंद्र की चंचल किरणें खेल रही है जल-थल में |

निपट निरंकुस निठुर निसंकू |
जेहि ससि कीन्ह सरुज सकलंकू
कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सु नि |


कहत लखन सन राम ह्रदय गुनि ||




कोई टिप्पणी नहीं:

कैसे करें कहानी का नाट्यरूपंरण

कहानी और नाटक में समानता (प्रतिदर्श प्रश्न पत्र 2024-25) कथानक और घटनाक्रम: दोनों ही में एक केंद्रीय कहानी होती है जो विभिन्न घटनाओं से जुड...