अलंकार का
शाब्दिक अर्थ है आभूषण गहना
जिस प्रकार से मनुष्य आभूषण या अच्छे कपडे पहन कर सुन्दर लगता है | उसी प्रकार से काव्य में अलंकार के प्रयोग से
काव्य की शोभा बढ़ती है |
अलंकरोति इति अलकार: शोभा बढ़ाने वाले
पदार्थ को अलंकार कहते है |
आचार्य केशव अलंकार को काव्य का अनिवार्य गुण बताया है |केशव कहते है
´ जदपि सुजाति सुलच्छनी,सुबरन सरस सुवृत || भूषण बिनु न बिराजई,कविता बनिता मित ||
अर्थात सभी गुणों सेयुक्त होने पर भी कविता ,स्त्री और मित्र बिना आभूषण के शोभा नहीं पाते है |
अलंकार तीन प्रकार के होते है शब्दालंकार और अर्थालंकार उभया अलंकार
शब्दालंकार शब्द के आश्रित अलंकार को शब्दालंकार कहते है |जब काव्य में शब्दों के कारण चमत्कार आ जाता है तो वहाँ शब्दालंकार होता है |
शब्दालंकार के अंतर्गत आने वाले अलंकार— अनुप्रास,यमक ,श्लेष,वक्रोक्ति पुनरूक्ति पुनरूक्तवदाभास, विप्सा
अर्थालंकार—जबी काव्य में अर्थगत चमत्कार की प्रधानता होती है तब अर्थालंकार होता है |इस अलंकर अगर शब्द के पर्यायवाची को रख दे तब भी अलंकार सौन्दर्य खंडित नहीं होता है
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उपमा ,उत्प्रेक्षा, रूपक ,प्रतीक, उदहारण, निदर्शना,दीपक, अतिशयोक्ति,अलौकिक, भ्रान्तिमान,संदेह,उल्लेख, स्मरण
जो अलंकार समान रूप से शब्दालंकार और अर्थालंकार पर आश्रित हो |संकर और संसृष्टि
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