सोमवार, मई 04, 2020

अलंकार

अलंकार का शाब्दिक  अर्थ है आभूषण गहना जिस प्रकार से मनुष्य आभूषण या अच्छे कपडे पहन कर सुन्दर लगता है |    उसी प्रकार से काव्य में अलंकार के प्रयोग से काव्य की शोभा  बढ़ती है | अलंकरोति  इति अलकार: शोभा बढ़ाने वाले पदार्थ को अलंकार कहते है |
आचार्य केशव अलंकार को काव्य का अनिवार्य गुण बताया है |केशव कहते है
´  जदपि सुजाति सुलच्छनी,सुबरन सरस सुवृत ||  भूषण बिनु न बिराजई,कविता बनिता मित ||
अर्थात सभी गुणों सेयुक्त होने पर भी कविता ,स्त्री और मित्र बिना आभूषण के शोभा नहीं पाते है |
अलंकार तीन  प्रकार के होते है शब्दालंकार और  अर्थालंकार उभया अलंकार   


शब्दालंकार शब्द के आश्रित अलंकार को शब्दालंकार  कहते है |जब काव्य में शब्दों  के कारण चमत्कार आ जाता है तो वहाँ  शब्दालंकार होता है | 
शब्दालंकार के अंतर्गत आने वाले अलंकार—  अनुप्रास,यमक ,श्लेष,वक्रोक्ति पुनरूक्ति  पुनरूक्तवदाभास, विप्सा
अर्थालंकार—जबी  काव्य में अर्थगत चमत्कार की प्रधानता होती है तब अर्थालंकार  होता है |इस अलंकर अगर शब्द के  पर्यायवाची  को रख दे तब भी अलंकार सौन्दर्य  खंडित नहीं होता है 
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उपमा ,उत्प्रेक्षा, रूपक ,प्रतीक, उदहारण,  निदर्शना,दीपक, अतिशयोक्ति,अलौकिक, भ्रान्तिमान,संदेह,उल्लेख, स्मरण


जो अलंकार समान रूप से शब्दालंकार और  अर्थालंकार पर आश्रित हो |संकर और संसृष्टि



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