टॉकहोम।। अंडाणु में ही क्रोमोज़ोम की गड़बड़ी का पता लगाने में सक्षम एक टेस्ट (आईवीएफ)प्रजनन के क्षेत्र में अत्यंत मददगार हो सकता है और इसकी मदद से उम्रदराज महिलाओं को मां बनने का सुख मिल सकता है।
रहों का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि सूरज और सोलर सिस्टम के ग्रहों का निर्माण अब तक की धारणाओं से अलग तरीके से हुआ होगा। कैलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी के नेतृत्व में वैज्ञानिकों के एक दल ने सूरज और ग्रहों में ऑक्सिजन और नाइट्रोजन के मामले में उनके अलग होने का खुलासा किया है। हमारे सौरमंडल में ये दोनों गैसें प्रचुर मात्रा में हैं।
नासा के 2004 जीनेसीस मिशन से मिले नमूनों का विश्लेषण करने वाले वैज्ञानिकों के मुताबिक, यह अंतर बहुत कम है, लेकिन इससे यह जानने में मदद मिल सकती है कि हमारा सौरमंडल कैसे बना था। रिसर्चर केविन मैककीगन के मुताबिक हमने पाया कि पृथ्वी, चंद्रमा और मंगल ग्रह व उल्कापिंड जैसे क्षुद्रगहों के नमूनों में ऑक्सिजन सूर्य की तुलना में कम मात्रा में है। मतलब यह है कि उस पदार्थ से नहीं बने, जिससे सूरज बना है। पर यह कैसे और क्यों हुआ, इस बात का पता लगना अभी बाकी है।
गौरतलब है कि पृथ्वी पर हवा ऑक्सिजन के तीन एटम के मेल से बनी है। इनमें मौजूद न्यूट्रॉन की संख्या के आधार पर इनके बीच अंतर किया जाता है। सौरमंडल में करीब 100 पर्सेंट ऑक्सिजन परमाणु O-16 से बने हैं पर O-17 और O-18 नाम के ऑक्सिजन आइसोटोप बहुत कम मात्रा में उपलब्ध हैं। नमूनों के अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि सूरज में O-16 की मौजूदगी का पर्सेंट पृथ्वी या बाकी ग्रहों की तुलना में थोड़ा अधिक है। बाकी आइसोटोप का पर्सेंट थोड़ा कम है।
नाइट्रोजन तत्व के मामले में सूरज और ग्रहों के बीच अंतर होने का पता चला है। ऑक्सिजन की तरह नाइट्रोजन का भी एक आइसोटोप है, जिसका नाम एन..1 14 है। इससे सौरमंडल में करीब 100 फीसदी परमाणु का निर्माण होता है, लेकिन एन 15 बहुत कम मात्रा में है।
इन नमूनों का अध्ययन करने वाले दल ने पाया कि पृथ्वी की तुलना में सूरज और बृहस्पति में मौजूद नाइट्रोजन एन-14 से कुछ अधिक हैं, लेकिन एन-15 से कुछ कम हैं। सूरज और बृहस्पति दोनों ही में नाइट्रोजन की समान मात्रा प्रतीत होती है। अध्ययन के मुताबिक, जहां तक ऑक्सिजन की बात है, पृथ्वी और बाकी सोलर सिस्टम नाइट्रोजन के मामले में बहुत अलग है।
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पीटीआई ॥ लंदन : वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि धरती पर मौजूद महासागर खात्मे की ओर हैं। जरूरत से ज्यादा फिशिंग और क्लाइमेट चेंज के कारण हालात खराब होते जा रहे हैं। यहां तक कि पूरा का पूरा इको सिस्टम ही तबाह हो सकता है।
मरीन एक्सपर्ट्स के एक इंटरनैशनल पैनल की शुरुआती रिपोर्ट बताती है कि दुनिया के महासागर तेजी से बर्बाद हो रहे हैं। मछलियों की तादाद घट रही है, जिससे खाने की चीजों के दाम और बढ़ने का खतरा है। इससे दुनिया के कुछ इलाकों में भुखमरी तक की नौबत आ सकती है।
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वैज्ञानिकों ने एक नया टीका विकसित करने का दावा किया है, जो शरीर की प्रतिरोधी क्षमता को उत्तेजित करके कैंसर के ट्यूमर को मिटा सकता है। इस टीके को विकसित करने वाले कैंसर रिसर्च यूके और लीड्स यूनिवर्सिटी की जॉइंट टीम के मुताबिक, भले ही इससे कैंसर का पूरी तरह इलाज न हो पाए, मगर यह इस असाध्य बीमारी का असर सीमित करने में सक्षम है।
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भारतीय मूल के एक रिसर्चर ने दावा किया है कि उसने एक ऐसा तरीका खोजा है जिसकी मदद से सूखा पड़ने के छह महीने पहले ही पता चल जाएगा। ऑस्ट्रेलिया की विक्टोरिया यूनिवर्सिटी के शिशुतोष बरुआ के मुताबिक, इसके तहत पानी और जलवायु से जुड़े बदलाव नापकर किसी इलाके में नमी का आकलन किया जाता है। इसके बाद पिछली परिस्थितियों के आधार पर भविष्य में पड़ने वाले सूखे का अनुमान लगाया जाता है।
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चीन के वैज्ञानिकों ने अनुवांशिक रूप से संवर्धित ( जिनेटिकली मॉडिफाइड ) 200 गायों का एक ऐसा समूह तैयार करने का दावा किया है, जिनका दूध इंसानों के दूध से मिलता-जुलता होगा। सरकारी अखबार 'चाइना डेली' के मुताबिक इन गायों के दूध से बनीं खाने-पीने की वस्तुएं अगले दो सालों में चीन के बाजारों में ब्रिकी के लिए पेश कर दी जाएंगी।
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लंदन : वैज्ञानिकों ने एक ऐसे ब्लैक होल का पता लगाया है, जो इतना बड़ा है कि हमारे पूरे सोलर सिस्टम को निगल सकता है। एम87 नाम के इस ब्लैक होल का भार 6.8 अरब सूर्यों के बराबर है। यह इस तरह की खोजी गई अब तक की सबसे विशालकाय संरचना है।
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सिस्टेमेटिक बायोलॉजी' जर्नल में छपी एक खबर में फील्ड संग्रहालय के रॉबर्ट मार्टिन के हवाले से कहा गया है - अपने सर्वाधिक करीबी प्राइमेट चिंपैंजी से मानव का विकास होने संबंधी नए अनुमान से वैज्ञानिकों को मानव विकास के इतिहास के बारे में समझने में ज्यादा मदद मिल सकती है। रिसर्च टीम का नेतृत्व मार्टिन ने ही किया है। इसके लिए उन्होंने गणितज्ञों, मानव विज्ञानियों, आणविक जीवविज्ञानियों के साथ मिल कर विभिन्न प्रजातियों के फॉसिल रिकॉर्ड में बताए गए अनुवांशिकी आंकड़ों और उनके विकास का अध्ययन किया ताकि व्यापक तस्वीर सामने आ सके।
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फीनिक्स को मंगल पानी मिल गया है। पृथ्वी के बाद मंगल ऐसा पहला ग्रह जहां जीवन के लिए जरूरी यह अहम चीज मिली है। इससे पहले पिछले महीने फीनिक्स को बर्फ जैसा सफेद टुकड़ा दिखाई दिया था। इस ताजा खुलासे के बाद पिछले 100 सालों से मंगल पर पानी होने की अटकलें अब सही साबित हो गई हैं।
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हमारा शरीर अपने भीतर मौजूद टूटे-फूटे सेल्स को अपने-आप हटाता रहता है। इसे एपोप्टॉसिस या प्रोग्राम्ड सेल डेथ कहते हैं। इस तरह से कैंसर और ऑटो इम्यून रोगों से शरीर की रक्षा होती है। इस पूरी प्रक्रिया को हमारे शरीर में मौजूद बीसीएल-2 जीन्स नियंत्रित करते हैं।
ऑस्ट्रेलिया के वॉल्टर ऐंड एलिजा हॉल इंस्टिट्यूट की एक टीम ने तीन बीसीएल-2 जीन्स की पहचान की है। ये हैं - puma, noxa और bim। यही वे तीन जीन हैं जो कैंसर की दवाएं लेने के बाद कैंसर से ग्रस्त सेल्स को बताते हैं कि वे अपने आपको नष्ट कर लें। इस टीम की हेड लीना हैप्पो का कहना है, हमने रिसर्च में पाया कि एक बार दवाओं के असर से कैंसरग्रस्त कोशिकाओं का डीएनए क्षतिग्रस्त होने के बाद ये तीनों जीन्स उन्हें आदेश देते हैं कि वे एक तरह से स्यूसाइड कर लें। पर कभी-कभी ऐसा होता है कि ये जीन्स सही मात्रा में मौजूद न हों या फिर गायब हों तो कैंसर के खिलाफ काम करने वाली दवाएं कारगर साबित नहीं होतीं। इस तरह कैंसर सेल्स बच जाते हैं और ट्यूमर बढ़ते रहते हैं।
विंडो इंटरनेट : फेसबुक का एशिया का पहला सेंटर भारत में
दलती दुनिया में भारत और चीन के बीच कड़े मुकाबले की बदलती तस्वीर की इससे अच्छी मिसाल और क्या हो सकती है। ठीक उस वक्त जब चीन में गूगल अपना शटर डाउन करने की तैयारी कर रहा है, सोशल नेटवर्किंग की सबसे बड़ी कंपनी फेसबुक भारत में दस्तक दे रही है। फेसबुक ने ऐलान किया है कि वह जल्द ही भारत में अपना दफ्तर खोलेगी और हैदराबाद में उसका ऑपरेशन सेंटर शुरू किया जाएगा। एशिया के किसी भी मुल्क में यह फेसबुक का पहला सेंटर होगा। फेसबुक ने चीन में गुंजाइश तलाशी तो थीं, लेकिन वहां जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई।
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देश के फार्मासूटिकल इतिहास में बुधवार एक अहम दिन साबित हुआ, जब मुंबई में स्वाइन फ्लू का नाक से लिया जाने वाला देसी टीका लॉन्च किया गया। इस टीके को विकसित करने वाली पुणे की कंपनी का कहना है कि नैसोवैक नाम के इस टीके की 0.5 मि.ली. की एक बूंद एक से दो साल तक व्यक्ति की एच1 एन 1 वायरस से रक्षा करेगी।
हालांकि दर्दरहित यह टीका उन तबकों के मामले में बेकार साबित हो जाता है जिनके एच1एन1 से संक्रमित होने का सबसे ज्यादा खतरा रहता है। ये तबके हैं - गर्भवती महिलाएं, छोटे बच्चे और ऐसे लोग जिनकी प्रतिरोध क्षमता कम है। सेरम इंस्टीस्यूट ऑफ इंडिया के एग्जेक्यूटिव डायरेक्टर (ऑपरेशंस)ऐडर सी पूनावाला ने बताया, 'यह टीका लेने में आसान है और तीन साल से ऊपर के बच्चों और बड़े-बूढ़ों के लिए खास तौर पर उपयोगी है।'
JANTA KA MANCH JANTA KE LIYE यहाँ आप साहित्य सामान्य ज्ञान एवं समसामयिक घटनाओं पर आलेख प्राप्त कर सकते है । यहाँ पर आप कक्षा 9,10,11 एवं 12 के हिन्दी विषय के बहुविकल्पी पर अभ्यास कर सकते है | हिन्दी विषय से TGT,PGT की तैयारी में विशेष रूप से उपयोगी |
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सोमवार, जुलाई 11, 2011
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