संविधान के अनुच्छेद 19 के अंतर्गत प्राप्त बोलने
के अधिकार में सूचना का अधिकार अंतर्निहित है । इस बात को सर्वोच्च न्यायालय ने
अनेको बार अपने निर्णयों से सिद्ध किया है। उसके अलावा अनेको जनआंदोलों के द्वारा
बेहतर लोकतंत्र के लिए सूचना के अधिकार की माँग जनता के द्वारा की जाती रही
है। इन सब प्रयासों से बाध्य होकर सरकार को जन सूचना अधिकार अधिनियम 2005 लाया जिसे दोनों सदनों की मंजूरी
के बाद 15 जून 2005 को राष्ट्रपति महोदय ने भी अपनी मंजूरी दे दी इस तरह 12 अक्टूबर
2005 को यह कानून देश भर में लागू हो गया |इसी अधिनियम के तहत केंद्रीय सूचना आयोग
एवं राज्य सूचना आयोगों का गठन किया गया | सूचना आयोग का गठन शासकीय राजपत्र
अधिसूचना के माध्यम से की गयी थी,इस कारण यह एक उच्च प्राधिकार युक्त निकाय है न
की संवैधानिक निकाय | यह कार्मिक मंत्रालय के अंतर्गत आता है |
सुचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त सहित 11 आयुक्त होते
है ,जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली एक समिति की सिफारिश पर की जाती है | इस समिति में
प्रधानमंत्री के अलावा लोकसभा में विपक्ष का नेता और प्रधानमंत्री द्वारा मनोनीत
एक कैबिनेट मंत्री |
मुख्य सूचना आयुक्त एवं अन्य सूचना आयुक्त बनने के लिए
योग्यता मुख्यतः यह है कि-
वह सार्वजनिक
जीवन का पर्याप्त अनुभव रखता हो तथा उसे विधि,विज्ञान सामाजिक जीवन का अनुभव हो वह
संसद एवं किसी राज्य विधानमंडल का सदस्य न हो|
उसे किसी भी राजनैतिक दल से जुड़ा नहीं होना चाहियें |
कार्यकाल - मुख्य सूचना आयुक्त एवं अन्य सूचना आयुक्त का
कार्यकाल 25 जुलाई 2019 से पहले 5 वर्ष
एवं 65 वर्ष की आयु जो पहले हो थी परन्तु 25 जुलाई 2019 ( सूचना अधिकार संसोधन अधिनियम 2019) के बाद कार्यकाल निर्धारण
का अधिकार केंद्र सरकार को दे दिया गया
जिसका कुछ लोगो के द्वारा विरोध किया जा रहा है
पहले वेतन और भत्ते मुख्य निर्वाचन आयुक्त के समान मुख्य सुचना
आयुक्त के थे एवं अन्य आयुक्तों के भत्ते अन्य
निर्वाचन आयुक्तों के समान ही थे | परन्तु सूचना अधिकार संसोधन अधिनियम 2019 के
द्वारा अब इसका निर्धारण केन्द्र सरकार को करना है |
(सूचना अधिकार
संसोधन अधिनियम 2019 का विपक्षी दलों एवं कुछ सामाजिक कार्यकता विरोध कर
रहे है कि सरकार सूचना आयोग को कमजोर कर रही है जबकि सरकार का कहना है कि वह केवल वेतन भत्ते एवं
कार्यकाल में संशोधन कर रही है जिसके कारण इसकी स्वायत्ता कम नहीं होगी |)
कार्य --- अगर लोक प्राधिकारी के द्वारा अधोलिखित
कार्यवाही की गयी होतो उस मामले को केंद्रीय सूचना आयोग के संज्ञान में लाया जाता
है |--
1 सूचना देने से मना कर दिया गया हो या गलत जानकारी दी
गयी हो
2 जानकारी निर्धारित समय में प्राप्त न हुई हो
3 अगर किसी को लगता है कि सूचना के एवज में मांगी गयी फीस
मनमाने ढंग से मांगी गयी है अर्थात प्रार्थना कर्ता को हतोत्साहित करने के लिए किया हो |
शक्तियां-- जाँच
के समय आयोग को दीवानी न्यायालय की शक्तियां प्राप्त है किसी भी लोक प्राधिकारी को
आयोग में बुलाना ,दस्तावेज़ प्रस्तुत करने के लिए आदेश देना एवं उसकी जाँच करना |
किसी न्यायालय या कार्यालय से सार्वजानिक दस्तावेज़ को
मंगाना |
अगर आयोग को लगता है कि लोक प्राधिकारी ने जानबूझ कर गलत सूचना दी है या सूचना को छुपाया है तो उस लोकप्राधिकारी पर 250 रूपये प्रतिदिन के हिसाब से अर्थ दण्ड लगा सकता है जो अधिकत्तम 25 हजार रूपये तक हो सकता है |
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