रौद्र रस- रौद्र रस का स्थायी
भाव क्रोध है |अपना शत्रु या दुष्ट व्यक्ति समाजद्रोही,खलनायक आदि इसके आलंबन
विभाव होते है ,इनके आचरण एवं कार्य उद्दीपन है | जो तुम्हारे अनुसासनि पावौ|कंदुक
इव ब्रह्मांड उठावौं ||
काचों
घट जिमि डारों फोरी|सकौ मेरु मूलक जिमि तोरी |
सुनुहं रामाजेहि सिव धनु तोरा
|सहसबाहु सम रिपु मोरा ||
सो
बिलगाऊ बिहाई समाजा| न त मारे जइहैं सब राजा ||
उस काल मारे क्रोध के तनु
कापने उनका लगा |
मनो हवा के जोर से सोता हुआ
सागर जगा |
मुख बाल रवि सम लाल होकर
ज्वाला सा बोधित हुआ
प्रलयार्थ उनके मिस वहां क्या
काल ही क्रोधित हुआ
दुर्धर्ष जलते से हुए उत्ताप के उत्कर्ष से
कहने लगे तब वे अरविन्दम वचन
अमर्ष से |
सुर नर असुर गंधर्व आदि कोई भी
कहीं
कल
शाम तक मुझसे जयद्रथ को बचा सकते नहीं
जो राउर अनुशान पाऊँ |
कंदुक इव ब्रह्मांड उठाऊँ||
काचें घट जिमि डारिऊँ फोरी |
सकौ मेरू मुले इव तोरी ||
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