जब नायक और नायिका में एक आश्रय तथा दूसरा आलम्बन हो अथवा प्राकृतिक उपादान , कोई कृति अथवा किसी का गायन-वादन आलंबन हो और दर्शक, पाठक या श्रोता आश्रय हो और वे विभाव, सम्बन्धित अनुभाव और संचारीभाव से परिपुष्ट हों , वहाँ रति नामक स्थायीभाव सक्रिय हो जाता है, रति के सक्रिय होने से श्रृगार रस की उत्पत्ति होती है।
शृंगार रस के दो भेद होते हैं -
(क) संयोग श्रृगार (ख) वियोग श्रृगार
क) संयोग श्रृगार - जहाँ आलंबन और आश्रय के बीच परस्पर मेल-मिलाप और प्रेमपूर्ण वातावरण हो , वहाँ संयोग श्रृगार होता है |
शृंगार रस के दो भेद होते हैं -
(क) संयोग श्रृगार (ख) वियोग श्रृगार
क) संयोग श्रृगार - जहाँ आलंबन और आश्रय के बीच परस्पर मेल-मिलाप और प्रेमपूर्ण वातावरण हो , वहाँ संयोग श्रृगार होता है |
स्थायी भाव
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रति
संचारी भाव - लज्जा , जिज्ञासा ,उत्सुकता आदि ।
आलंबन - नायक , नायिका , गायन - वादन , कृति अथवा प्राकृतिक उपादान ।
आश्रय - नायक , नायिका , श्रोता या दर्शक ।
उद्दीपन - व्याप्त सौन्दर्य आदि ।
अनुभाव - नायक , नायिका , श्रोता या दर्शक का मुग्ध होना , पुलकित होना आदि।
संचारी भाव - लज्जा , जिज्ञासा ,उत्सुकता आदि ।
आलंबन - नायक , नायिका , गायन - वादन , कृति अथवा प्राकृतिक उपादान ।
आश्रय - नायक , नायिका , श्रोता या दर्शक ।
उद्दीपन - व्याप्त सौन्दर्य आदि ।
अनुभाव - नायक , नायिका , श्रोता या दर्शक का मुग्ध होना , पुलकित होना आदि।
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