मंगलवार, जुलाई 22, 2025

 

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गुरुवार, जून 26, 2025

NCERT Solutions: पाठ 10 - एक कहानी यह भी, क्षितिज II, हिंदी, कक्षा - 10

 


प्रश्न-1.लेखिका के व्यक्तित्व पर किन-किन व्यक्तियों का किस रूप में प्रभाव पड़ा?


लेखिका के व्यक्तित्व पर मुख्य रूप से दो व्यक्तियों का गहरा प्रभाव पड़ा:


पिता का प्रभाव

लेखिका के पिता का उन पर मिला-जुला प्रभाव रहा. एक ओर, उनके पिता की कुछ बातों और व्यवहार के कारण लेखिका में हीन भावना और आत्मविश्वास की कमी आ गई थी. वहीं दूसरी ओर, उन्हीं के प्रभाव से लेखिका के मन में देश प्रेम की भावना का बीज भी अंकुरित हुआ.


शिक्षिका शीला अग्रवाल का प्रभाव

शिक्षिका शीला अग्रवाल ने लेखिका के व्यक्तित्व को नई दिशा दी. उनकी जोशीली बातों ने लेखिका के खोए हुए आत्मविश्वास को फिर से जगाया. साथ ही, उन्होंने देश प्रेम की जिस भावना को पिता ने जन्म दिया था, उसे सही माहौल और प्रेरणा दी. इसी के परिणामस्वरूप, लेखिका ने स्वतंत्रता आंदोलन में खुलकर भाग लेना शुरू कर दिया.


प्रश्न 2: इस आत्मकथ्य में लेखिका के पिता ने रसोई को ‘भटियारखाना’ कहकर क्यों संबोधित किया है?

लेखिका के पिता रसोई को 'भटियारखाना' कहकर संबोधित करते थे क्योंकि उनका मानना था कि रसोई के कामों में उलझकर लड़कियाँ अपनी क्षमता और प्रतिभा को पूरी तरह नष्ट कर देती हैं. वे केवल खाना बनाने और खाने तक ही सीमित होकर रह जाती हैं, और अपनी वास्तविक प्रतिभा का सदुपयोग नहीं कर पातीं.



उनके अनुसार, रसोई एक ऐसी जगह है जहाँ लड़कियों की प्रतिभा को भट्टी में झोंक दिया जाता है, जिससे वह जलकर राख हो जाती है. इसी सोच के कारण वे रसोई को नकारात्मक रूप से 'भटियारखाना' कहते थे.

प्रश्न 3: वह कौन-सी घटना थी जिसके बारे में सुनने पर लेखिका को न अपनी आँखों पर विश्वास हो पाया और न अपने कानों पर?

लेखिका को तब अपनी आँखों और कानों पर विश्वास नहीं हुआ जब उनके कॉलेज से प्रिंसिपल का पत्र आया. इस पत्र में लिखा था कि लेखिका के पिता आकर मिलें, क्योंकि उनकी गतिविधियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की जा सकती है.

यह पत्र पढ़कर पिताजी बहुत गुस्से में कॉलेज गए, जिससे लेखिका काफी डर गईं. हालाँकि, जब पिताजी प्रिंसिपल से मिले और उन्हें लेखिका के 'असली अपराध' (जो शायद स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी सक्रिय भागीदारी थी) का पता चला, तो उनके व्यवहार में अप्रत्याशित बदलाव आया. पिताजी को अपनी बेटी से कोई शिकायत नहीं रही.

पिताजी के इस अचानक बदले हुए व्यवहार को देखकर ही लेखिका को न तो अपनी आँखों पर और न ही अपने कानों पर विश्वास हुआ.

प्रश्न 4: लेखिका की अपने पिता से वैचारिक टकराहट को अपने शब्दों में लिखिए।

लेखिका की अपने पिता के साथ कई मुद्दों पर वैचारिक टकराहट होती थी, जो उनके विचारों के मूलभूत अंतर को दर्शाती है:


शिक्षा और स्वतंत्रता का दायरा

लेखिका के पिता स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी नहीं थे, लेकिन वे चाहते थे कि स्त्रियाँ शिक्षा प्राप्त करके भी घर की चारदीवारी तक ही सीमित रहें. वहीं, लेखिका एक खुले विचारों वाली महिला थीं और इस सीमा को स्वीकार करने को तैयार नहीं थीं.


विवाह और आकांक्षाएँ

पिता लेखिका की जल्दी शादी करने के पक्ष में थे, जबकि लेखिका अपनी जीवन की आकांक्षाओं को पूरा करना चाहती थीं और विवाह को प्राथमिकता नहीं दे रही थीं.


स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी

लेखिका का स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लेना और सार्वजनिक रूप से भाषण देना उनके पिता को बिलकुल पसंद नहीं था. यह उनके 'घर की चारदीवारी' वाले विचार के बिलकुल विपरीत था.


स्त्री के प्रति व्यवहार

पिता का लेखिका की माँ के प्रति अच्छा व्यवहार नहीं था. लेखिका इसे अनुचित मानती थीं और स्त्री के प्रति ऐसे व्यवहार की कड़ी निंदक थीं, जो उनके पिता के विचारों से मेल नहीं खाता था.


रंग-रूप को लेकर भेदभाव

बचपन में लेखिका के काले रंग-रूप के कारण उनके पिता का मन उनके प्रति उदासीन रहा करता था. यह भेदभाव लेखिका को गहराई तक प्रभावित करता था और इस बात को लेकर भी उनकी अपने पिता से वैचारिक भिन्नता थी.


ये सभी बिंदु दर्शाते हैं कि पिता और पुत्री के बीच आधुनिकता, स्वतंत्रता, और स्त्री की भूमिका को लेकर गहरी वैचारिक भिन्नताएँ थीं, जिसके कारण उनमें अक्सर टकराव होता था

प्रश्न 5: इस आत्मकथ्य के आधार पर स्वाधीनता आंदोलन के परिदृश्य का चित्रण करते हुए उसमें मन्नू जी की भूमिका को रेखांकित कीजिए।

इस आत्मकथ्य के आधार पर, सन् 1946-47 के दौरान पूरे देश में 'भारत छोड़ो आंदोलन' अपने चरम पर था. हर जगह हड़तालें, प्रभात-फेरियाँ, जुलूस और ज़ोरदार नारेबाज़ी का माहौल था.

इस माहौल में, लेखिका मन्नू भंडारी के घर में उनके पिता और उनके साथियों के बीच होने वाली राजनीतिक गोष्ठियों और गतिविधियों ने उन्हें शुरू से ही जागरूक कर दिया था. उनकी प्राध्यापिका शीला अग्रवाल ने उन्हें इस आंदोलन में सक्रिय रूप से जोड़ दिया.

जब देश में नियम-कानून और मर्यादाएँ टूट रही थीं, तब लेखिका ने अपने पिता की नाराज़गी की परवाह न करते हुए पूरे उत्साह के साथ आंदोलन में हिस्सा लिया. उनकी संगठन-क्षमता, जोश और विरोध करने का तरीका देखने लायक था. वे बिना किसी झिझक के चौराहों पर भाषण देतीं, नारेबाज़ी करतीं और हड़तालों में शामिल होतीं.

इस प्रकार, मन्नू भंडारी ने स्वाधीनता आंदोलन में अपनी महत्वपूर्ण और सक्रिय भूमिका निभाई, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वे केवल दर्शक नहीं बल्कि इस बड़े बदलाव का एक अभिन्न हिस्सा थीं.

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रचना और अभिव्यक्ति 

प्रश्न 6: लेखिका ने बचपन में अपने भाइयों के साथ गिल्ली डंडा तथा पतंग उड़ाने जैसे खेल भी खेले किंतु लड़की होने के कारण उनका दायरा घर की चारदीवारी तक सीमितथा। क्या आज भी लड़कियों के लिए स्थितियाँ ऐसी ही हैं या बदल गई हैं, अपने परिवेश के आधार पर लिखिए

लेखिका के बचपन में उन्हें खेलने और पढ़ने की सीमित आजादी थी, जो पिता द्वारा निर्धारित गाँव की सीमा तक ही थी. घर की चारदीवारी से बाहर उनका दायरा नहीं था.


आज परिस्थितियाँ काफी बदल गई हैं. लड़कियाँ अब एक शहर से दूसरे शहर शिक्षा ग्रहण करने और खेलने जाती हैं. भारतीय महिलाएँ विदेशों तक, यहाँ तक कि अंतरिक्ष तक जाकर देश का नाम रोशन कर रही हैं. वे विभिन्न क्षेत्रों में अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन कर रही हैं. हालांकि, इसके साथ ही यह दूसरा पहलू भी है कि हमारे समाज में आज भी कुछ लोग स्त्री स्वतंत्रता के पूर्ण पक्षधर नहीं हैं, जिससे लड़कियों को पूरी तरह से आगे बढ़ने में चुनौतियाँ आती हैं.

श्न 7: मनुष्य के जीवन में आस-पड़ोस का बहुत महत्व होता है। परंतु महानगरों में रहने वाले लोग प्राय: ‘पड़ोस कल्चर’ से वंचित रह जाते हैं। इस बारे में अपने विचार लिखिए।

आजकल, खासकर महानगरों में, पड़ोस कल्चर लगभग खत्म होता जा रहा है. पहले आस-पड़ोस का बहुत महत्व होता था, जहाँ लोग एक-दूसरे के सुख-दुख में शामिल होते थे. पर अब मनुष्य के संबंध सीमित होते जा रहे हैं और वह आत्म-केंद्रित हो गया है. लोगों को अपने सगे-संबंधियों के बारे में भी ज़्यादा जानकारी नहीं होती, तो पड़ोसियों से जुड़ना तो और भी मुश्किल हो गया है.

इसका मुख्य कारण समय का अभाव है. आधुनिक जीवनशैली में लोग इतने व्यस्त हो गए हैं कि उनके पास अपने पड़ोसियों से मिलने, बात करने या उनके साथ समय बिताने का वक्त ही नहीं है. काम और व्यक्तिगत जीवन की जिम्मेदारियों के बीच, पड़ोसियों के लिए जगह कम ही बचती है. इससे समाज में अकेलापन बढ़ रहा है और सामुदायिक भावना कमजोर पड़ रही है. यह एक चिंताजनक बदलाव है जो सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित कर रहा है.

श्न 8: इस आत्मकथ्य में मुहावरों का प्रयोग करके लेखिका ने रचना को रोचक बनाया है। रेखांकित मुहावरों को ध्यान में रखकर कुछ और वाक्य बनाएँ – 

(क) इस बीच पिता जी के एक निहायत दकियानूसी मित्र ने घर आकर अच्छी तरह पिता जी की लू उतारी।

 (ख) वे तो आग लगाकर चले गए और पिता जी सारे दिन भभकते रहे। 

(ग) बस अब यही रह गया है कि लोग घर आकर थू–थू करके चले जाएँ।

 (घ) पत्र पढ़ते ही पिता जी आग–बबूला हो गए।

(क) लू उतारी – होमवर्क न करने से शिक्षक ने अच्छी तरह से छात्र की लू उतारी।

      लू उतारी" मुहावरे का अर्थ है: किसी को बुरी तरह से डाँटना, फटकारना, या दंडित करना।

  • उदाहरण 1: जब बेटे ने बिना बताए दोस्तों के साथ पिकनिक का प्लान बना लिया, तो पिता ने घर आते ही उसकी लू उतारी और उसे अगले दिन कहीं न जाने दिया।

  • उदाहरण 2: मैच हारने के बाद कोच ने पूरी टीम की लू उतारी, जिससे खिलाड़ियों को अपनी गलतियों का अहसास हुआ।

  • उदाहरण 3: चोरी पकड़ी जाने पर दुकानदार ने लड़के की ऐसी लू उतारी कि उसने दोबारा कभी ऐसी गलती न करने की कसम खाई।


  • "आग लगाना" मुहावरे का अर्थ है: झगड़ा लगाना, लड़ाई करवाना, या किसी स्थिति को और बिगाड़ना (भड़काना).

    उदाहरण:

    मोहन को रमेश और सुरेश के बीच गलतफहमी पैदा करने में मज़ा आता है, वह हमेशा उन दोनों के बीच आग लगाने का काम करता रहता है.

    थू-थू करना मुहावरे का अर्थ है: निंदा करना, बुराई करना, या आलोचना करना, जिससे किसी की बदनामी हो या उसे शर्मिंदगी महसूस हो.

    • उदाहरण 1: भ्रष्टाचार के आरोप लगने पर मंत्री जी की पूरे शहर में थू-थू होने लगी।

    • उदाहरण 2: जब उसने परीक्षा में नकल करते हुए पकड़ा गया, तो सारे स्कूल में उसकी थू-थू हुई।

    • उदाहरण 3: अपनी बात से मुकर जाने के कारण सब लोग उसकी बेईमानी  पर थू-थू करने लगे।                                                                                                                                                                                     आग-बबूला होना मुहावरे का अर्थ है: बहुत अधिक क्रोधित होना, अत्यंत गुस्से में आ जाना.

      उदाहरण:

      जब उसे पता चला कि उसके दोस्त ने उसका राज़ खोल दिया है, तो वह आग-बबूला हो गया.

      देर रात तक पार्टी करने के बाद घर लौटे बेटे को देखकर माँ आग-बबूला हो उठीं.

      पुलिस ने जब चोर को पकड़ने में लापरवाही दिखाई, तो अधिकारी उन पर आग-बबूला हो गए.

    गुरुवार, सितंबर 12, 2024

    कैसे करें कहानी का नाट्यरूपंरण


    कहानी और नाटक में समानता (प्रतिदर्श प्रश्न पत्र 2024-25)

  • कथानक और घटनाक्रम: दोनों ही में एक केंद्रीय कहानी होती है जो विभिन्न घटनाओं से जुड़ी होती है। ये घटनाएं एक क्रम में होती हैं और कहानी को आगे बढ़ाती हैं।
  • पात्र और उनके रिश्ते: दोनों में पात्र होते हैं जिनके अपने-अपने व्यक्तित्व, लक्ष्य और इरादे होते हैं। इन पात्रों के बीच के रिश्ते कहानी और नाटक को आगे बढ़ाते हैं।
  • संघर्ष: दोनों में पात्रों को किसी न किसी तरह के संघर्ष का सामना करना पड़ता है। यह संघर्ष कहानी या नाटक का मुख्य बिंदु हो सकता है।
  • भावनाएं: दोनों में पात्रों की विभिन्न भावनाएं जैसे प्यार, नफरत, खुशी, दुख आदि को व्यक्त किया जाता है। ये भावनाएं पाठक या दर्शक को कहानी या नाटक से जोड़ती हैं।
  • संदेश: दोनों में कोई न कोई संदेश या विचार छिपा होता है जिसे लेखक पाठक या दर्शक तक पहुंचाना चाहता है। यह संदेश सामाजिक, राजनीतिक, या व्यक्तिगत हो सकता है।
  • शिखर (चर्मोत्कर्ष): दोनों में एक शिखर होता है जहां कहानी या नाटक अपने उच्चतम बिंदु पर पहुंचता है। यह वह बिंदु होता है जहां संघर्ष का समाधान होता है या पात्रों के जीवन में एक बड़ा बदलाव आता है।
  •  __________________________________________________________________________________


    कहानी और नाटक में अंतर -- 2023,

    प्रस्तुति-: कहानियाँ पढ़ी जाती हैं, नाटक मंचित होते हैं।

    2. अभिव्यक्ति-: कहानियाँ वर्णनात्मक होती हैं, नाटक संवाद और अभिनय पर निर्भर करते हैं।

    3. पात्र विकास-: कहानियों में पात्रों के आंतरिक विचार विस्तार से बताए जाते हैं, नाटक में यह मुख्य रूप से संवादों के माध्यम से होता है।

    4. दर्शक/पाठक-: कहानियाँ पाठकों को कल्पना करने का आमंत्रण देती हैं, नाटक दर्शकों के सामने लाइव प्रदर्शन प्रस्तुत करते हैं।

    5.दृश्य प्रस्तुतिकरण-: नाटक में दृश्य प्रभाव, मंच सज्जा, और लाइटिंग महत्वपूर्ण होते हैं; कहानियाँ इन पर निर्भर नहीं करतीं।

    __________________________________________________________________________________________

    कहानी और नाटक में मुख्य अंतर:

    • पढ़ना या देखना: कहानी पढ़ी जाती है, जबकि नाटक मंच पर देखा जाता है।
    • कल्पना: कहानी में पाठक अपनी कल्पना से दृश्य बनाते हैं, जबकि नाटक में दृश्य पहले से तैयार होते हैं।
    • पात्र: कहानी में पात्रों के मन के भावों को विस्तार से बताया जाता है, जबकि नाटक में पात्रों के भाव उनके संवादों और अभिनय से समझ में आते हैं।

    • समय: कहानी में समय धीरे-धीरे बीतता है, जबकि नाटक में समय तेजी से बीतता है                                    ___________________________________________________________________
    •  कहानीकार द्वारा  कहानी के प्रसंगों या पात्रों के मानसिक द्वंदों के विवरण के दृश्यों कि नाटकीय प्रस्तुति में काफ़ी समस्या  आती है |' कथन के सन्दर्भ में  नाट्य रुपान्तरण कि चुनौतियों  का उल्लेख करें --          कहानी के नाट्य  रुपान्तरण  में आने वाली चुनौतियां :

    • संक्षिप्तीकरण: कहानी को नाटक में बदलते समय सबसे बड़ी चुनौती होती है। कहानी में कई विवरण, उपकथाएं और पात्रों को काटना पड़ता है। यह निर्णय लेना बहुत मुश्किल होता है कि कौन सी जानकारी रखनी है और कौन सी हटानी है।
    • स्थान, समय और सीमाएं: नाटक में स्थान और समय को दृश्यों के माध्यम से दिखाना होता है। कहानी में वर्णित कई स्थानों को एक ही मंच पर दर्शाना मुश्किल हो सकता है। समय के संदर्भ में, नाटक में समय का प्रवाह अधिक तेज होता है।
    • भाषा और व्याकरण: कहानी में लेखक अपनी भावनाओं को विस्तार से व्यक्त कर सकता है, लेकिन नाटक में संवादों को अधिक संक्षिप्त और प्रभावशाली होना चाहिए।
    • दृश्य संगठन: नाटक में दृश्य संगठन बहुत महत्वपूर्ण होता है। एक अच्छा दृश्य दर्शकों को कहानी में खींच सकता है।
    • नाटकीय प्रभाव: नाटक में भावनाओं को केवल शब्दों से नहीं, बल्कि अभिनय, संगीत और दृश्यों के माध्यम से भी व्यक्त किया जाता है।

    अतिरिक्त चुनौतियाँ:

    • चरित्र विकास: कहानी में पात्रों का विकास धीरे-धीरे होता है, जबकि नाटक में पात्रों को जल्दी से दर्शकों से परिचित कराना होता है।
    • कथानक: कहानी में कथानक अधिक जटिल हो सकता है, जबकि नाटक में कथानक सरल और सीधा होना चाहिए।
    • शैली: कहानी और नाटक की शैली अलग-अलग होती है। कहानी को नाटक में बदलते समय, कहानी की शैली को नाटक की शैली के अनुरूप बनाना होता है।
    • दर्शक: कहानी को कोई भी अकेले पढ़ सकता है, लेकिन नाटक को दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया जाता है। इसलिए, नाटक को दर्शकों के लिए अधिक आकर्षक बनाना होता है।                                                    ____________________________________________________________________________
    • कहानी के नाट्य रूपांतरण में संवाद के महत्व पर  टिप्पणी करें -CBSE प्रतिदर्श प्रश्न पत्र 2023 , 

    •                                   नाटक में संवादों की अहम भूमिका होती है। वे पात्रों को जीवंत बनाते हैं, कहानी को आगे बढ़ाते हैं और दर्शकों को कहानी में खींचते हैं।
      • संक्षिप्त और स्पष्ट: संवाद सीधे और संक्षिप्त होने चाहिए ताकि दर्शक उन्हें आसानी से समझ सकें।
      • पात्रानुकूल: हर पात्र के संवाद उसके व्यक्तित्व और पृष्ठभूमि के अनुरूप होने चाहिए।
      • प्रसंगानुकूल: संवाद कहानी के उस हिस्से के अनुरूप होना चाहिए जिसमें वे बोले जा रहे हैं।
      • बोलचाल की भाषा: जटिल शब्दों के बजाय सरल और आम बोलचाल की भाषा का उपयोग करना चाहिए।
      • कथानक को गति देना: संवादों से कहानी को आगे बढ़ाने में मदद मिलती है।
      • चरित्र चित्रण: संवादों के माध्यम से पात्रों के व्यक्तित्व को गहराई से दिखाया जा सकता है।
      • दृश्य के अनुकूल: संवादों को दृश्य के अनुरूप ढालना चाहिए, यानी वे दृश्य में हो रही घटनाओं को स्पष्ट करें।
      • सामाजिक और आर्थिक स्तर: संवादों से पात्रों का सामाजिक और आर्थिक स्तर पता चलना चाहिए।

      संक्षेप में: नाटक में संवाद कहानी की जान होते हैं। वे पात्रों को जीवंत बनाते हैं, कहानी को आगे बढ़ाते हैं और दर्शकों को कहानी में शामिल करते हैं। इसलिए, संवादों को सावधानीपूर्वक लिखना बहुत जरूरी है।

    सोमवार, सितंबर 09, 2024

    पाठ 5 विशेष लेखन - स्वरुप और प्रकार

     

    बीट रिपोर्टिंग  

    ·  किसी खास क्षेत्र या विषय (बीट) से जुड़ी सामान्य खबरें।

    ·  संवाददाता को उस क्षेत्र की बुनियादी जानकारी होनी चाहिए।

    ·  दैनिक समाचारों पर केंद्रित।

    बीट रिपोर्टिंग एक पत्रकार को किसी विशेष क्षेत्र (जैसे राजनीति, खेल) की नियमित खबरें लिखने के लिए सौंपा जाता है। यह एक विशिष्ट क्षेत्र पर केंद्रित होता है और आमतौर पर दैनिक समाचारों पर केंद्रित होता है।

    विशेषीकृत रिपोर्टिंग-

    ·  किसी खास क्षेत्र या विषय का गहरा विश्लेषण।

    ·  घटनाओं, मुद्दों और समस्याओं का बारीकी से अध्ययन।

    ·  पाठकों के लिए विषय का अर्थ स्पष्ट करना।

    ·  रिपोर्टिंग के अलावा फीचर, टिप्पणी, साक्षात्कार आदि भी शामिल।

    ·  गहन ज्ञान और विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है।

    ·  पेशेवर पत्रकारों के साथ-साथ विषय विशेषज्ञ भी कर सकते हैं।

    विशेषीकृत रिपोर्टिंग एक गहराई से विश्लेषणात्मक लेखन है जो किसी विशेष विषय या क्षेत्र पर केंद्रित होता है। इसमें घटनाओं, मुद्दों और समस्याओं का बारीकी से अध्ययन शामिल है। यह सिर्फ तथ्य बताने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह विषय के अर्थ को समझाने और पाठकों को सूचित करने का प्रयास करता है।

     

    मुख्य अंतर:

    • गहराई: बीट रिपोर्टिंग सतही होती है, जबकि विशेषीकृत रिपोर्टिंग गहन होती है।
    • ज्ञान: बीट रिपोर्टिंग के लिए बुनियादी ज्ञान पर्याप्त है, जबकि विशेषीकृत रिपोर्टिंग के लिए गहन ज्ञान और विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है।
    • दायरा: बीट रिपोर्टिंग दैनिक समाचारों तक सीमित होती है, जबकि विशेषीकृत रिपोर्टिंग का दायरा व्यापक होता है।
    • लक्ष्य: बीट रिपोर्टिंग का लक्ष्य सूचना देना है, जबकि विशेषीकृत रिपोर्टिंग का लक्ष्य समझ विकसित करना है।

    उदाहरण:

    • बीट रिपोर्टिंग: एक खेल पत्रकार किसी मैच का लाइव कमेंट्री करता है।
    • विशेषीकृत रिपोर्टिंग: एक खेल विश्लेषक किसी खेल की तकनीक और रणनीतियों का गहरा विश्लेषण करता है।

    मुख्य अंतर: विशेषीकृत रिपोर्टिंग बीट रिपोर्टिंग से अधिक गहन, विस्तृत और ज्ञान आधारित होती है। बीट रिपोर्टर को उस क्षेत्र की बुनियादी समझ होनी चाहिए, जबकि विशेषीकृत रिपोर्टर को उस विषय पर गहन ज्ञान और विशेषज्ञता होनी चाहिए।

     

    डेस्क किसे कहते है –

    किसी  विशेष  विषय के विशेषज्ञों  के लिए  आवंटित स्थान डेस्क है |  जहाँ उस विशेष के सभी विशेषज्ञ एक साथ  बैठकर उस विषय पर पत्रकारिता के लिए सामग्री तैयार करते है |       

                 पत्रकारिता में, "डेस्क" का मतलब है अलग-अलग विषयों के लिए बने अलग-अलग विभाग, जैसे कि शहर के समाचारों के लिए "सिटी डेस्क", खेल के लिए "स्पोर्ट्स डेस्क", और इसी तरह। हर डेस्क पर पत्रकारों की एक टीम होती है जो उस विषय से जुड़ी खबरें इकट्ठा करते हैं, लिखते हैं, और संपादित करते हैं।

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       प्रश्न 1.  पत्रकारिता जगत में बीट से आप क्या समझते है ? बीट रिपोर्टिंग के लिए एक पत्रकार को क्या तैयारी करनी पड़ती है ? (2023 ,

    पत्रकारिता की भाषा में 'बीटजानकारी व दिलचस्पी के अनुसार कार्य विभाजन को कहते हैं। विभिन्न विषयों से जुड़े समाचारों के लिए संवाददाताओं के बीच काम का विभाजन आम तौर पर उनकी दिलचस्पी और ज्ञान को ध्यान में रख कर किया जाता है। मीडिया की भाषा में इसे ही बीट कहा जाता है  |

      बीट रिपोर्टिंग के लिएपत्रकार को विषय से संबंधित अधिक से अधिक जानकारी जुटाने के लिए उचित स्रोतों का पता लगाना पड़ता है

     

    प्रश्न.2   समाचार पत्रों में विशेष लेखन से आप क्या समझते है ? उदाहरण सहित उत्तर  दें |2023 प्रतिदर्श  प्रश्न पत्र ,

    प्रश्न -3 बीट रिपोर्टिंग और विशेषीकृत रिपोर्टिंग के अंतर को  स्पष्ट करें | २०२२

    प्रश्न -4  विशेष लेखन का आशय समझाए

       उत्तर- अखबारों के लिए समाचारों के अलावा खेल, अर्थ-व्यापार, सिनेमा या मनोरंजन आदि विभिन्न क्षेत्रों और विषयों संबंधित घटनाएँ, समस्याएँ आदि से संबंधित लेखन विशेष लेखन कहलाता है|

                     पत्रकारिता में, विशेष लेखन  सामान्य समाचारों से अलग, किसी विशिष्ट विषय पर गहन और विस्तृत लेखन से है। यह लेखन शैली विश्लेषण, व्याख्या, और गहन जानकारी प्रदान करती है, जो पाठकों को विषय की गहरी समझ प्रदान करने में मदद करती है।

    प्रश्न 5  -समाचार पत्रों में विशेष लेखन की  भूमिका स्पष्ट कीजिए   

    Answer: विशेष लेखन से एक ओर समाचार-पत्र में विविधता आती है तो दूसरी ओर उनका कलेवर व्यापक होता है। वास्तव में पाठक अपनी व्यापक रुचियों के कारण साहित्य, विज्ञान, खेल, सिनेमा आदि विविध क्षेत्रों से जुड़ी खबरें पढ़ना चाहता है, इसलिए समाचार-पत्रों में विशेष लेखन के माध्यम से निरंतर और विशेष जानकारी देना आवश्यक हो जाता है।

    प्रश्न 6  - डेस्क और बीट किसे कहते है ? इनका संबंध किनसे है ?(202१-22) ,

        उत्तर - दोनों का  विशेष लेखन से  संबंध  है  

    प्रश्न 8- विशेष लेखन में विशेषज्ञता किस प्रकार हासिल की जाती है ?

    उत्तर – (१)  आजकल पत्रकारिता में  “ जैक ऑफ़  ऑल ट्रेंड्स , बट मास्टर ऑफ़ नन ( सभी विषय  की जानकार  लेकिन खास विशेषज्ञता)  नहीं के स्थान “ मास्टर ऑफ वन “ पर जोर है |

    (2) 12 वीं और  स्नातक स्तर कि जानकारी हो या पढाई कि हो |

    (3 )   संबंधित विषय  की ज्यादा से ज्यादा पुस्तक पढ़े

    ( 4) उस विषय के  शब्दकोश और इनसाइक्लोपीडिया आप के पास अवश्य  हो |

              

    प्रश्न 9 -विशेष लेखन में डेस्क को समझाइये ? 

    प्रश्न 10 - विशेष लेखन का क्या आशय है ? इसकी भाषा शैली कैसी होनी  चाहिए और क्यों ( दिल्ली सेट १ 2022 )

                      

    बुधवार, अगस्त 28, 2024

    पहलवान की ढोलक ( प्रश्नोत्तरी )

     प्रश्न १ -  पहलवान की ढोलक कहानी में  लुट्टन के जीवन में क्या क्या परिवर्तन हुआ था ?

     कहानी में लुट्टन के जीवन में अनेक परिवर्तन आए -

    1. माता-पिता का बचपन में देहांत होना।
    2. सास द्वारा उसका पालन-पोषण किया जाना और सास पर हुए अत्याचारों का बदला लेने के लिए
    पहलवान बनना।
    3. बिना गुरु के कुश्ती सीखना। ढोलक को अपना गुरु समझना।
    4. पत्नी की मृत्यु का दुःख सहना और दो छोटे बच्चों का भार संभालना।
    5. जीवन के पंद्रह वर्ष राजा की छत्रछाया में बिताना परंतु राजा के निधन के बाद उनके पुत्र द्वारा
    राजमहल से निकाला जाना।
    6. गाँव के बच्चों को पहलवानी सिखाना।
    7. अपने बच्चों की मृत्यु के असहनीय दुःख को सहना।
    8. महामारी के समय अपनी ढोलक द्वारा लोगों में उत्साह का संचार करना।

    प्रश्न 2- गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों के देहांत के बावजूद लुट्टन पहलवान का ढोल क्यों बजाता रहा?

    'ढोल' लुट्टन को प्रेरणा स्रोत लगता है। यही कारण है कि लुट्टन अपने बेटों को भी पहलवानी सिखाते समय ढोल बजाता है ताकि उसी की भांति वे भी ढोल से प्रेरणा लें। जब उसके गाँव में महामारी फैलती है, तो लोगों की दयनीय स्थिति उसे झकझोर देती है। वह ऐसे समय में ढोल बजाता है, जब मौत की अँधेरी छाया लोगों को भयभीत करके रखती है। रात का समय ऐसा होता है, जब गाँव में अशांति, भय, निराशा और मृत्यु का शोक पसरा रहता है। ऐसे में लुट्टन लोगों के जीवन में प्रेरणा भरता है। अपने बेटों की मृत्यु के समय तथा उनकी मृत्यु के बाद भी गाँव में ढोल बजाता है। उसकी ढोल की आवाज़ लोगों में जीवन का संचार करती है। उन्हें सहानुभूति का अनुभव होता है।

    प्रश्न 3- लुट्टन पहलवान का ढोल क्यों बजाता रहा?

    'ढोल' लुट्टन को प्रेरणा स्रोत लगता है। ढोल की आवाज़ उसके जीवन में उत्त्साह   का संचार करती है।  

     जब लुट्टन    चाँद सिंह  से कुस्ती लड़ने जाता ढोल कि एक एक थाप ने  उसका मार्गदर्शन किया जिससे  लूटन  चाँद  सिंह को परास्त किया |

    प्रश्न 4- चर्चा करें- कलाओं का अस्तित्व व्यवस्था का मोहताज़ नहीं है।

    कलाएं किसी व्यवस्था या संरचना पर निर्भर नहीं होतीं, वे तो मानव भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति हैं। ये दुःख, सुख, उत्साह या किसी भी अनुभूति को बिना किसी बनावट के प्रकट करती हैं। कला का इतिहास उतना ही पुराना है जितना मानव स्वयं, जब हम सभ्य भी नहीं थे तब भी कला हमारे साथ थी।

    आज हम कला को किसी व्यवस्था या ढाँचे में बाँधने की कोशिश करते हैं, लेकिन असल में कला तो बस सच्चे भाव और लगन से फलती-फूलती है। जहाँ सच्ची अभिव्यक्ति की इच्छा होती है, कला वहीं अपने आप जन्म ले लेती है।

    कला की यह स्वतंत्रता ही उसे अद्वितीय और शाश्वत बनाती है।

    प्रश्न 5 - प्रस्तुत कहानी के आधार पर गाँव में व्याप्त महामारी की भयानक दशा का वर्णन कीजिए।

    गाँव में मलेरिया और हैजा की भयानक महामारी ने कहर बरपा रखा था। हर दिन दो-तीन लोगों की मौत हो रही थी, जिससे गांव में एक अजीब सन्नाटा पसर गया था। दिन में तो रोने-पीटने और चीख-पुकार की आवाजें गूंजती थीं, लेकिन रात होते ही एक डरावना सन्नाटा छा जाता था। लोग अपनी झोपड़ियों में डरे और सहमे हुए दुबके रहते थे। हालात इतने बदतर थे कि माँएं अपने मरते हुए बेटे को आखिरी बार 'बेटा' कहकर पुकारने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाती थीं।



    प्रश्न 6 - पहलवान की ढोलक पाठ के आधार पर लुट्टन सिंह का चरित्र चित्रण कीजिए​

    लुट्टन, "पहलवान की ढोलक" कहानी का मुख्य पात्र, एक ऐसा व्यक्तित्व है जो विपरीत परिस्थितियों में भी अपने साहस और दृढ़ता से अडिग रहता है।

    • जीवट और साहस: बचपन में ही माता-पिता का साया सिर से उठ जाने के बावजूद, लुट्टन ने हार नहीं मानी। वह एक कुशल पहलवान बना और विपरीत परिस्थितियों का डटकर सामना किया। महामारी के दौरान भी उसने हिम्मत नहीं हारी और ढोलक बजाकर लोगों में आशा की किरण जगाई रखी।

    • संवेदनशील और भावुक: लुट्टन एक मजबूत इरादों वाला व्यक्ति होने के साथ-साथ एक संवेदनशील इंसान भी था। अपने बेटों की मृत्यु ने उसे गहरा आघात पहुँचाया, लेकिन उसने अपने दुःख को ढोल की थाप में ढालकर लोगों की सेवा की।

    • कला के प्रति समर्पण: लुट्टन को ढोल बजाने का जुनून था। यह उसके लिए सिर्फ एक कला नहीं, बल्कि जीवन का एक अभिन्न अंग था। उसने अपनी कला के माध्यम से लोगों को जोड़ा और उन्हें प्रेरित किया।

    • दुर्भाग्य का दंश: लुट्टन का जीवन दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं से भरा रहा। बचपन में अनाथ होना, बेटों की मृत्यु और राजा की मृत्यु के बाद उसकी बदहाली, ये सभी घटनाएं उसके जीवन में एक के बाद एक आईं।

    कुल मिलाकर, लुट्टन एक ऐसा चरित्र है जो अपनी चुनौतियों के बावजूद अपने साहस, संवेदनशीलता और कला के प्रति समर्पण के कारण पाठकों के दिलों में एक अमिट छाप छोड़ जाता है। उसका जीवन इस बात का प्रमाण है कि विपरीत परिस्थितियों में भी इंसान अपने जज्बे और कला के सहारे जीने की राह ढूंढ सकता है।

    प्रश्न 7 - 'पहलवान की ढोलक' कहानी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए |

    यह कहानी व्यवस्थाओं के बदलने से होने वाली समस्याओं को उजागर करती है। समय के साथ, पुरानी लोक कलाएँ और कलाकार अपनी प्रासंगिकता खो देते हैं। राजा से राजकुमार तक का परिवर्तन सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि पूरी व्यवस्था के उलट जाने का प्रतीक है। यह 'भारत' से 'इंडिया' बनने जैसा है, जहाँ लुट्टन जैसे लोक कलाकारों को अपनी कला से गुज़ारा करना मुश्किल हो जाता है। कहानी हमें सोचने पर मजबूर करती है कि कैसे हम अपनी लोक कलाओं और कलाकारों को बचा सकते हैं और उन्हें समाज में सम्मान दिला सकते हैं। यह मानवता और जीवन के सौंदर्य को बनाए रखने के लिए ज़रूरी है।


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