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सोमवार, सितंबर 18, 2023
अपठित भाग 2 गद्यांश
बंगाल की शस्य- श्यामला धरती का सौंदर्य अविस्मरणीय है । इसके मनोहर और उन्मुक्त सौंदर्य को प्रतिभाशाली रचनाकार अपने गीतों, निबंधों और कविताओं में बांधने की कोशिश करते रहते हैं, लेकिन इसके मायावी और लोकोत्तर आकर्षण का रंच मात्र ही रुपायित करने में सफल हो पाए हैं। अविभाजित बंगाल का सौंदर्य किसी भी संवेदनशील मस्तिष्क के भीतर हलचल पैदा कर सकता है । चांदी सी चमकती मीलों लंबी नहरों और नदियों के बीच पन्नों की तरह चमकते हरे-भरे खेतों के चित्र संवेदनशील मन को अपूर्व आनंद से भर देते हैं । हरे-भरे खेतों में पके दानों की लहलहाती सुनहरी फसल, हवा में फुसफुसाते लंबे ताड़ के वृक्ष और साल की पत्तियों की बहती हुई मंद-मंद हवा, कंचनजंघा के उत्तुंग शिखर, सुंदरवन के घने जंगल, दीघा के सुंदर रेतीले समुद्र तट और उत्तर बंगाल के हरे-भरे चाय के बागान आंखों में रचे-बसे रहते हैं । प्राकृतिक छटाओं से भरी-पूरी यह धरती युगों से महान लेखकों, कवियों और कलाकारों को प्रेरित करती रही है । इस अनोखे वरदान के केवल वही पात्र हैं, जिन्हें धरती पर पैदा होने का सौभाग्य मिला है अथवा वे हैं जो अविभाजित बंगाल में रह चुके हैं।
सामान्य ज्ञान पर प्रश्नोत्तरी Quiz
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अपठित भाग 1
हिंदी के बारे में या तो उसके विरोध के बारे में जब भी कोई हलचल होती है, तो राजनीति का मुखौटा ओढ़े रहने वाले भाषा व्यवसायी बेनकाब होने लगते हैं। उनकी बेचैनी समझ में नहीं आती। संविधान में स्पष्ट प्रावधानों के बाद भी यह विश्वास का माहौल बनता क्यों हैं? यहां हम केवल एक ही प्रावधान को याद करें। संविधान के अनुच्छेद 351 में हिंदी भाषा के विकास के लिए निर्देश देते हुए स्पष्ट कहा गया है। 'संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाएं, उसका विकास करें, जिससे वह भारत की सामाजिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिंदुस्तानी और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहां आवश्यक या वांछनीय हो वहां उसके शब्द भंडार के लिए मुख्यत: संस्कृत से और गौणत: तथा अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करें।'
यही सब देखकर हिंदी के विषय में अक्सर यह लगने लगता है कि जैसे संविधान के संकल्पों का निष्कर्ष कहीं खो गया है और हम निर्माताओं के आशय से कहीं दूर भटक गए हैं। सहज ही मन में यह प्रश्न उठते हैं कि हमने संविधान के सपने को साकार करने के लिए क्या किया? क्यों नहीं हमारे कार्यक्रम प्रभावी हुए? क्यों और कैसे अंग्रेजी भाषा की मानसिकता हम पर और हमारी युवा एवं किशोर पीढ़ी पर इतनी हावी हो चुकी है कि इस मिट्टी से जन्मी हमारी अपनी भाषाओं की अस्मिता और भविष्य संकट में प्रतीत होता है? शिक्षा में, व्यापार और व्यवहार में, संसदीय, शासकीय एवं न्यायिक प्रक्रियाओं में हिंदी और प्रादेशिक भाषाओं को वर्चस्व क्यों नहीं मिल पा रहा?
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गुरुवार, जुलाई 15, 2021
मंगलवार, जून 15, 2021
रविवार, मई 23, 2021
रविवार, नवंबर 22, 2020
मंगलवार, सितंबर 15, 2020
शुक्रवार, जुलाई 10, 2020
समास ( अव्ययीभाव , तत्पुरुष समास )
समास
का शाब्दिक अर्थ होता है- संक्षिप्त
समास
दो या दो से अधिक शब्दों के मेल से नए शब्द बनाने की एक प्रक्रिया है |
इस
विधि से बने शब्दों को समास कहते है जब समस्त पदों को वापस पृथक-पृथक किया जाता है
उसे समास विग्रह कहते है |
उदाहरण
के लिए-
माता और पिता पद में दो पद है- gS&
1 माता 2 पिता
समास
होने पर बनेगा- माता-पिता
यदि
माता-पिता का विग्रह करना हो तो पुन: हम लिखेगे- माता और पिता
•अव्ययीभाव समास
• तत्पुरुष समास
•कर्मधारय समास
•द्विगु समास
.द्वंद्व समास
•बहुव्रीहि समास
अव्ययी भाव समास
•जिस
समास का पहला शब्द अव्यय हो वह प्रधान हो,उसे अव्ययी भाव समास कहते है|
•जैसे-
प्रतिवर्ष- वर्ष-वर्ष
•यथाशक्ति-शक्ति
के अनुसार
•यथाविधि-विधि
के अनुसार
•तत्पुरुष
समास-
इस समास
में अंतिम पद प्रधान होता है|
उदाहरण-
कारक- चिन्हों के अनुसार इसके अग्रलिखित छह भेद होते है|
सुखप्राप्त-सुख
को प्राप्त करनेवाला |
•माखनचोर-माखन
को चुरानेवाला
•मुंहतोड़-
मुँह को तोड़ने वाला •
बुधवार, मई 06, 2020
उत्प्रेक्षा अलंकार
§जहाँ
उपमेय और उपमान की समानता के कारण उपमेय में उपमान की सम्भावना या कल्पना की
जाए,वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है |
§वाचक-
मानो,मानहू,मनहु,मन,जानो,जानहु,जनु,निश्चय ,मेरे जान,इव
§
उस काल मानो क्रोध से तन काँपने उनका लगा |
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा |
जान
पड़ता नेत्र देख बड़े-बड़े |
हीरकों में गोल नीलम हैं जड़े ||
हीरकों में गोल नीलम हैं जड़े ||
पद्यरागों
से अधर मानों बने |मोतियों से दांत निर्मित
है घने ||
नित्य
ही नहाता क्षीर सिन्धु में कलाधर है ,
सुंदरी,नवानन
की समता की इच्छा से
चमचमाता
चंचल नयन,बिच घुन्घुट-पट झीन |
मनहूँ
सुरसरिता विमल जल उछरत जुग मीन ||
सोहत
ओढ़े पीत पट,स्याम सलोने गात |
मनौ
नीलमनि सैल पर,आतप परयौ प्रभात ||
रूपक अलंकार
§जहाँ
गुण की अत्यंत समानता दर्शाने के लिए उपमेय और उपमान को एक ही बताया जाता है तो
उसे रूपक अलंकार कहाँ जाता है |
§उपमा
की तरह रूपक में उपमेय तथा उपमान दोनों अलग अलग कहे जाते हैं,पर कवि दोनों को
अलग-अलग कहकर भी अभेद या एकता बताता है |
§चरण
कमल बंदौ हरिराई |
§जाकी
कृपा पंगु गिरि लंघै,अंधे को सब कछु दरसाई
§चेतना
लहर न उठेगी
जीवन
समुद्र थिर न होगा
संध्या
हो सर्ग प्रलय की
विच्छेद
मिल्न फिर होगा
उदित
उदय-गिरि मंच पर रघुवर बाल पतंग |
विकसे
संत-सरोज सब,हरषे लोचने भृंग ||
बीती
विभावरी जाग री !
अम्बर पनघट
में डुबो रही
तारा
घट उषा नागरी |
मन
का मनका फेर
पायो
जी मैंने राम-रतन धन पायो |
समय सिन्धु चंचल है भारी |
§एक
राम घनश्याम हित चातक तुलसीदास |
§आए
महंत बसंत
मंगलवार, मई 05, 2020
उपमा अलंकार
§समान
धर्म,स्वभाव,शोभा,गुण आदि के आधार पर जहाँ एक वस्तु की तुलना दूसरी वस्तु से की
जाती है | वहाँ उपमा अलंकार होता है |
§जहाँ
भिन्नता रहते हुए भी उपमेय की उपमान के साथ
समानता का कथन हो, वहाँ उपमा अलंकार होता है |
§उपमा
के अंग –
§उपमेय-
जिस वस्तु या व्यक्ति की समानता की जाती है,उसे उपमेय कहते है |
§उपमान
– जिस प्रसिद्ध वस्तु या व्यक्ति से उपमेय
की समानता की जाती है ,उसे उपमान कहते है |
§समान
धर्म– उपमेय और उपमान में जो गुण समान पाया जाता है ,या जिस सामान्य गुण की समानता
की जाती है , उसे समान धर्म कह्ते है |
§
वाचक शब्द– जिन शब्दों से समानता का
बोध हो| जिमि,इव,ज्यों,जैसे,सम ,सरिस आदि
पीपर पात सरिस मन डोला |
§नीलकमल
से सुंदर नयन |
§हरिपद
कोमल कमल से |
§मुख
बाल-रवि-सम लाल होकर
ज्वाला-सा-बोधित हुआ |
मंहगाई
बढ़ रही निरंतर द्रुपदसुता के चीर सी |
बेकारी
बढ़ रही चीरती अंतर्मन को तीर सी |
बरसा
रहा है रवि अनल
भूतल
तवा-सा जल रहा |
वह
नव-नलिनी से नयन वाला कहाँ है |
हाय
फूल-सी कोमल बच्ची
हुई
राख की थी ढेरी ||
श्लेष अलंकार
श्लेष
का अर्थ है चिपकना |
अत: जहाँ एक शब्द के एक से अधिक अर्थ
निकलें,वहाँ श्लेष अलंकार होता है |
चरण धरत चिंता करत,चितवत चारहूँ ओर |
सुबरन को खोजत फिरत,कवि,व्यभिचारी
चोर |
जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति
सोय |
बारे उजियारो करै, बढ़े अंधेरो होय
||
§चिरजीवौ
जोरी जुरे, क्यों न सनेह गंभीर |
को घटि या वृषभानुजा,वे हलधर के वीर |
को घटि या वृषभानुजा,वे हलधर के वीर |
§मधुबन
की छाती को देखो |
§सूखी
कितनी इसकी कलियाँ |
§मेरी
भव-बाधा हरौ राधा नागरि सोय |
जा
तन की झाई परै स्यामु हरित दुति होय ||
यमक
जब एक ही शब्द की आवृत्ति दो या दो से अधिक बार हो परन्तु उनके अर्थ अलग
हो तो वहां यमक अलंकार होता है |
यमक के प्रयोग से कविता में
चमत्कार और सुन्दरता आ जाती है |
एक शब्द फिर फिर जहाँ परै अनेकन बार
|
अर्थ और ही और हो सो यमकालंकार ||
§कनक
कनक तें सौ गुनी मादकता अधिकाय अधिकाय |
या खाये बौराय जग वा पाये बौराय||
तरणी के
संग तरल तरंग में
तरणी डूबी थी हमारी ताल में
तीन
बेर खाती थी वो तीन बेर खाती है |
काली
घटा का घमण्ड घटा |
माला
फेरत जुग भया,गया न मनका फेर |
कर का मनका डारि के,मन का मनका फेर |
|कहै
कवि बेनी बेनी ब्याल की चुराई लीनी |
जेते
तुम तारे तेते नभ में न तारे हैं |
सोमवार, मई 04, 2020
अनुप्रास अलंकार
जब किसी पद में वर्णों की आवृति बार-बार होती है तो वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है ||
व्यजंन की समता मिले,अनुप्रास है सोय |
तरनि तनूजा तट तमाल तरूवर बहु छाए |
सो सुख सुजस सुलभ मोहिं स्वामी
मृद मंद मंद-मंथर-लघु- तरणी-हंसिनी-सी सुन्दर,
तिर रही खोल पाली के पर |
पुलक प्रकट करती है धरती
हरित तृणों की नोकों से
मानो झीम रहे हैं तरू भी
मंद पवन के झोंकों से
चारू चंद्र की चंचल किरणें खेल रही है जल-थल में |
निपट निरंकुस निठुर निसंकू |
जेहि ससि कीन्ह सरुज सकलंकू
कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सु नि |
कहत लखन सन राम ह्रदय गुनि ||
अलंकार
अलंकार का
शाब्दिक अर्थ है आभूषण गहना
जिस प्रकार से मनुष्य आभूषण या अच्छे कपडे पहन कर सुन्दर लगता है | उसी प्रकार से काव्य में अलंकार के प्रयोग से
काव्य की शोभा बढ़ती है |
अलंकरोति इति अलकार: शोभा बढ़ाने वाले
पदार्थ को अलंकार कहते है |
आचार्य केशव अलंकार को काव्य का अनिवार्य गुण बताया है |केशव कहते है
´ जदपि सुजाति सुलच्छनी,सुबरन सरस सुवृत || भूषण बिनु न बिराजई,कविता बनिता मित ||
अर्थात सभी गुणों सेयुक्त होने पर भी कविता ,स्त्री और मित्र बिना आभूषण के शोभा नहीं पाते है |
अलंकार तीन प्रकार के होते है शब्दालंकार और अर्थालंकार उभया अलंकार
शब्दालंकार शब्द के आश्रित अलंकार को शब्दालंकार कहते है |जब काव्य में शब्दों के कारण चमत्कार आ जाता है तो वहाँ शब्दालंकार होता है |
शब्दालंकार के अंतर्गत आने वाले अलंकार— अनुप्रास,यमक ,श्लेष,वक्रोक्ति पुनरूक्ति पुनरूक्तवदाभास, विप्सा
अर्थालंकार—जबी काव्य में अर्थगत चमत्कार की प्रधानता होती है तब अर्थालंकार होता है |इस अलंकर अगर शब्द के पर्यायवाची को रख दे तब भी अलंकार सौन्दर्य खंडित नहीं होता है
|
उपमा ,उत्प्रेक्षा, रूपक ,प्रतीक, उदहारण, निदर्शना,दीपक, अतिशयोक्ति,अलौकिक, भ्रान्तिमान,संदेह,उल्लेख, स्मरण
जो अलंकार समान रूप से शब्दालंकार और अर्थालंकार पर आश्रित हो |संकर और संसृष्टि
गुरुवार, अप्रैल 23, 2020
स्त्री प्रत्यय
•स्त्री प्रत्यय- जिन प्रत्ययों को
जोड़ने से पुलिंग शब्दों स्त्री लिंग शब्द
में परिवर्तन हो जाता है |उसे स्त्री प्रत्यय कहते है |
•आ-
अज-अजा/प्रिय-प्रिया/तनय-तनया/चटक-चटका/कृष्ण-कृष्णा/छात्र-छात्रा
•आनी- इंद्र-इन्द्राणी/भाव-भवानी/रूद्र-रूद्राणी/क्षत्री-क्षत्रियाणी/खतरी-खतारनी/जेठ-जेठानी/सेठ-सेठानी
इका-अध्यापक-अध्यापिका/बालक-बालिका/नायक-नायिका/नाटक-नाटिका/सेवक-सेविका
इनी-कामी-कामिनी/हस्ती-हस्तिनी
/ यक्ष-यक्षिणी/सरोज- सरोजिनी/शिखा-शिखिनी
•ई-बुरा-बुराई/कुमार-कुमारी/पितामह-पितामही/देव-देवी/पुत्र-पुत्री
•वती-
(वान के स्थान पर वती) पुत्रवान-पुत्रवती/धनवान-धनवती/गुणवान्-गुणवती/प्रताप-
प्रतापवती/विद्या-विद्यावती
•त्री-
अभिनेता- अभिनेत्री/कर्ता-कर्त्री/धाताधात्री
नी-
कुमुद-कुमदनी/पति-पत्नी मोर-मोरनी/सिंह-सिंहनी
आइन–
पण्डित- पंडिताइन/ठाकुर-ठकुराइन चैबे-चौबाइन/नाई-नाइन लाला-ललाइन/पंडा-पंडाइन
इन
–नाती-नातिन/भिखारी-भिखारिन/मालकिन-मालकिन
इया-कुत्ता-कुतिया /चूहा-चुहिया/बन्दर-बंदरिया
रविवार, अप्रैल 19, 2020
कर्तुवाचक कृदंत–प्रत्यय
कर्तुवाचक
कृदंत– जिस शब्द अंश से कर्ता का बोध हों उसे कर्तुवाचक कृदंत है |
अक=
अंक-अंकक/ग्रह-ग्राहक/गा-गायक/मृ-मारक
अक्कड़=कूद-कुदक्कड/घुम-घुमक्कड़/भुल-भुलक्कड़
अन=नंद-नंदन/मोह-मोहन/दम-दमन
ता=ज्ञा-ज्ञाता/धा-धाता/दा-दाता/त्रा-त्राता/नी-नेता
इया=गढ़िया/डाक-डाकिया/धुन-धुनिया/नचनिया
एरा=कमेरा/लिखेरा/पटेरा/पथेरा/लुटेरा/लखेरा
ऐता=डाका-डकैत/गतकैत/लडैत
ओड़ा/ओड़=भगोड़ा/चटोरा/बटोरा/हँसोड़ा
औता/औती=कसौटी/चुनैती/कसौटी/चुकैति
वाला=करनेवाला/कहनेवाला/लुटनेवाला/बोलनेवाला
विद/वेत्ता=इतिहासविद/नितिविद/प्राच्यवेत्ता/भाषाविद
आक-तैराक/उडाक
आकू-लड़ाकू/पढ़ाकू/
इयल-अड़ियल/दढ़ियल/सड़ियल
ऊ-खाऊ/काटू
/लागु/बिकाऊ/मारू/चालू
ऐया-बचैया/भरैया
भाववाचक कृदंत -प्रत्यय
प्रत्यय
उस शब्द के अंश को कहते है जो किसी धातु के पीछे लग कर कोई नया
शब्द बनता है|जैसे पाठक शब्द में क के स्थान पर इका प्रत्यय लगाने पर नया शब्द
पाठिका शब्द बन जाता है |प्रत्यय दो शब्दों से मिलकर बना है प्रति(साथ
में)+अय(चलने वाला)
प्रत्यय उस शब्द के अंश को कहते है जो किसी धातु के पीछे लग कर कोई नया शब्द बनता है|जैसे पाठक शब्द में क के स्थान पर इका प्रत्यय लगाने पर नया शब्द पाठिका शब्द बन जाता है |प्रत्यय दो शब्दों से मिलकर बना है प्रति(साथ में)+अय(चलने वाला)
•संस्कृत के प्रत्यय –
प्रत्यय उस शब्द के अंश को कहते है जो किसी धातु के पीछे लग कर कोई नया शब्द बनता है|जैसे पाठक शब्द में क के स्थान पर इका प्रत्यय लगाने पर नया शब्द पाठिका शब्द बन जाता है |प्रत्यय दो शब्दों से मिलकर बना है प्रति(साथ में)+अय(चलने वाला)
•संस्कृत के प्रत्यय –
कृदंत
प्रत्यय के भेद
भाववाचक
कृदंत –क्रिया का भाव बताने वाले शब्द को भाववाचक कृदंत कहते है|
अ-
कम-काम,बुध-बोध/भुज-भोज/भू-भाव/लिप्-लेप
अन- अश-अनशन/ग्रह-ग्रहण/चि-चयन/तुष-तोषण
आ-पूज-पूजा/क्षम-क्षमा/दीक्ष-दीक्षा/दिश-दिशा/उष-उषा
अना-धृ-धारण/गण-गणन/यत-यातना/वंद-वंदना
न
–भज-भग्न/यत्-यत्न/ली-लीन/प्रश्-प्रश्न/
नि-धून-धुनि/धाव्-धावानि/जा-जानि
या-
कृ-क्रिया/छा-छाया /
ति-आकृत-आकृति/जात-जाति/पुर्त-पूर्ति/नत-नति
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