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शनिवार, मई 29, 2021

भारतेंदु हरिश्चंद्र

 

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति के मूल 
 बिन निज भाषा-ज्ञान के मिटत न हिय को सूल |
                   अंगेजी पढ़ी के जदपि,सब गुन होत प्रवीन
                   पै निज भषा- ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन

      इस पद को सुन कर आप जान गयें होगे की आज मै जिस लेखक, कवि और पत्रकार कि बात कर  रहा हूँ उनका नाम है भारतेंदु हरिश्चंद्र  | भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का जन्म १८५० ई.उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में हुआ था |इनके पिता बाबु गोपाल चन्द्र स्वयं में एक महान नाटककार और साहित्य प्रेमी थे | 

(1) भारतेंदु बाबु ने सन १८७० कविता वर्धनी सभा की स्थापना की इसके माध्यम से कवियों को प्रोत्साहित किया
(2) 1873 पेन रीडिंग क्लब की स्थापना की गयी | इस क्लब में लेख का पाठ होता था जिसकों बाद में हरिश्चंद्र मैगज़ीन एवं हरिश्चंदिका में छपते थे |
(3)भारतेंदु बाबू वैष्णव सम्प्रदाय से दीक्षित थे इस कारण धार्मिक एवं ईश्वर सम्बन्धित विचार के प्रचार हेतु तदीय समाज कि स्थापना की | 

 (2) हरिश्चन्द्र मैगजीन(1873ई.)- 
(3) हरिश्चन्द्र चन्द्रिका(1873ई.) 

वस्तुतः हरिश्चन्द्र मैगजीन ही बाद में हरिश्चन्द्रचन्द्रिका हो गयी | 
 (4)स्त्री शिक्षा हेतु बालसुबोधनी का प्रकाशन किया संवत् 1931| 

नाटक- 


 संवत् 1930 में भारतेंदु बाबू ने अपना पहला नाटक “वैदिकी हिंसा हिंसा न भवती”नामक प्रहसन लिखा |

    भारतेंदु बाबू ने अपनी नाटक नामक पुस्तक में लिखा है | इसके पहले दो ही नाटक लिखा गया था- 
(1) महाराज विश्वनाथ सिंह का “आनंद रघुनंदन”
(2) बाबू गोपाल चन्द्र का नहुष नाटक 

 दोनों नाटकों  कि भाषा ब्रज है

(1) वैदिक हिंसा हिंसा न भवती- इसमें धर्म और उपासना नाम से समाज में प्रचलित अनेक अनंचारों का जघन्य रूप दिखाते है | 
 (2)चन्द्रावली- प्रेम का आदर्श है 
 (3) विषस्य विषमौषधम – देशी रजवाड़ों की कुचक्रपूर्ण परिस्थिति दिखाने के लिए रचा गया |
 (4) भारतदुदर्शा- देश कि स्थिति को मनोरंजक ढंग से
 (5) नीलदेवी- पंजाब के एक हिन्दू राजा पर मुसलमानों कि चढ़ाई का एतिहासिक वृत्त लेकर लिखा गया |
 (6) अधेरनगरी- इस नाटक में अंग्रेजी राज को अंधेर नगरी कहा गया है 
 (7) प्रेमयोगिनी- वर्तमान पाखंडमय धार्मिक और समाजिक जीवन के मध्य अपनी परिस्थिति का चित्रण किया है | 
(8) सतीप्रताप(अधुरा)

अन्य महत्वपूर्ण तथ्य-
 1  कश्मीर कुसुम और बादशाह दर्पण लिखकर इतिहास लेखन के का मार्ग दिखाया | 

2  भारतेंदु मंडल के लेखकों के नाम- उपाध्याय पंडित बदरी नारायण चौधरी ,पंडित प्रतापनारायण मिश्र, बाबू तोताराम,ठाकुर जगमोहन सिंह,लाला श्री निवास दास, पंडित केशवराम भट्ट,पंडित अम्बिका दत्त व्यास, पंडित राधाचरण गोस्वामी | 

शनिवार, जुलाई 11, 2020

कारक (कर्ता कारक,कर्म कारक ,करण कारक)

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उसका संबन्ध वाक्य के दूसरे शब्द के साथ जाना जाए,उसे कारक कहते है | कारक के भेद 

कर्ता कारक-कार्य करनेवाले- ने चिन्ह

राम (कर्ता  )ने (कारक चिन्ह) खाना खाया


कर्म कारक-क्रिया का प्रभाव जिस पर पड़े- को
इसको  पता करने के लिए क्रिया के पहले किसको या क्या लगाने से उत्तर प्राप्त होता है 
  राम ने खाना  खाया
राम ने क्या खाया- उत्तर खाना( खाना यहाँ कर्म कारक है परन्तु को विभक्ति का लोप हो गया है )

शिकारी शेर को देखता है| प्रश्न शिकारी किसको देखता है |उत्तर- शेर /को कारक चिन्ह है |

शिकारी(कर्ता) शेर(कर्म कारक) को(चिन्ह) देखता है(क्रिया)
करण कारक-कर्ता जिसकी सहायता से कार्य करता है|- परसर्ग चिन्ह- से,द्वारा
करण का अर्थ होता है साधन या सहायक
करण कारक ज्ञात करने के लिए क्रिया से पहले किससे लगाने से उत्तर मिलता है |
वह लेखनी से लिखता है|
वह किससे लिखता है? उत्तर- लेखनी 
वह(कर्ता कारक )लेखनी(करण करक) से(परसर्ग चिन्ह  ) लिखता है( क्रिया)|

         


कर्मधारय समास ,बहुव्रीहि समास,द्विगु समास

कर्मधारय समास -- 
इसके दोनों पद प्रधान होते है| यह पद उपमान-उपमेय,विशेषण-विशेष्य,विशेषण-विशेषण

महाकवि- महान है जो कवि,

महादेव- महान है जो देव

अधमरा-आधा है जो मरा

चंद्रमुख- चंद्रमा के समान मुंख

लौहपुरुष- लोहे के  समान पुरूष 

बहुव्रीहि समास--इस समास में अन्य पद प्रधान होता है |दोनों पदों के योग से किसी अन्य पद का बोध होता है|

लम्बोदर- लम्बा है जिसका उदर( गणेश जी )
जलज- जल में जन्म लेने वाला ( कमल )
पीताम्बर- पीत है अम्बर जिसका( श्रीकृष्ण)

द्विगु समास-
पहला पद संख्या वाचक होता है और अंतिम पद संज्ञा होता है |
त्रिफला-तीन फलों का समाहार
त्रिकोण- तीन कोण
पंचपाल- पांच पालों का समाहार
चतुर्युग- चार युगों का समाहार
दोपहर- दो पहरों का समाहार

तत्पुरुष समास के भेद

कारक (परसर्ग) तो आप लोगो ने पढ़ा होगा इनकी संख्या कुल आठ होती है| इन्हीं में से पहला कारक कर्ता कारक और अंतिम कारक संबोधन कारक है जिनके आधार पर तत्पुरुष में भेद नहीं होता है | इसके अतिरिक्त   बचे छह कारक के आधार पर तत्पुरुष के भेद होते है|

कर्म तत्पुरुष- को (द्वितीया पुरूष)

सुखप्राप्त-सुख को प्राप्त करनेवाला |    

माखनचोर-माखन को चुरानेवाला
मुंहतोड़- मुँह को तोड़ने वाला
करण तत्पुरुष- से
नेत्रहीन- नेत्र से हीन
रसभरा-रस से भरा
सम्प्रदान तत्पुरुष- के लिए
रसोईघर- रसोई के लिए घर
शरणागत-शरण के लिए आगत
अपादान तत्पुरुष- से
पदच्युत – पद से अलग
धनहीन- धन से हीन
संबंध तत्पुरुष- का,की,के
राजमहल- राजा का महल
देश सुधार- देश का सुधार  

अधिकरण तत्पुरुष- में,पै,पर
पुरूषोत्तम- पुरुषों में उत्तम
कविश्रेष्ठ- कवियों में श्रेष्ठ
आपबीती- आप पर बीती 

मंगलवार, मई 26, 2020

नमक ( रज़िया सज्जाद जहीर )


1 सिख बीवी के प्रति सफिया के आकर्षण का क्या कारण था?
उत्तर संकेत -  सिख बीबी साफिया की माँ की तरह दिखती थी |उसी की तरह पहनावा और नैन नख्न्स थे |इसी समानता के कारण उनके प्रति आकर्षित थी |
2  सफिया के भाई ने नमक की पुड़िया ले जाने से क्यों मना कर दिया

या सफिया के भाई ने सफिया को क्या चेतावनी दी?
उत्तर संकेत -  यह गैर कानूनी था और कस्टम में पकड़े जाने का डर था
3  सफिया और उसके भाई के विचारों में क्या अंतर था? नमक पाठ के आधार पर बताइए ।
या कस्टम वालों के संबंध में  सफिया और उसके भाई के क्या विचार  थे ?
उत्तर संकेत - साफिया का भाई व्यावहारिक था जबकि साफिया भावुक थी/ साफिया के भाई के अनुसार कस्टम वाले कानून के अनुसार कार्य करेंगे जबकि साफिया के अनुसार में इंसानियत के अनुसार कार्य करेगे |
4 . नमक की पुड़िया ले जाने के संबंध में सफिया के मन में क्या द्वंद्व था?
पाकिस्तान कानून के अनुसार नमक भारत ले जाना गैर क़ानूनी था, इस कारण पकड़ें जाने का डर था| परन्तु  लाहौरी नमक ले आने वादा उसने सिख बीबी से किया था इस कारण न ले जाना वादाखिलाफी होती |चोरी से ले जाना नहीं चाहती थी क्योंकि  मुहब्बत का तोहफ़ा चोरी से ले जाना एक तरह से अपराध था |    

5  सिख बीबी  ने यह क्यों कहा कि उनका वतन तो लाहौर है ?
उत्तर संकेत -सिख बीबी की जन्म भूमि लाहौर थी|वहाँ उन्होंने जीवन के महत्वपूर्ण वर्ष बिताया था |
सफिया का सामान जब कस्टम जांच के लिए जाने लगा तो  सफ़िया की क्या प्रतिक्रिया हुई ?
उत्तर संकेत -जब सफिया का सामान कस्टम जाँच के लिए जाने लगा तो उसे एक झिरझिरी सी आई ,मुहब्बत का तोहफा चोरी से ले जाना अच्चा नहीं लगा  और उसने एकदम निर्णय किया कि वह नमक को चोरी से नहीं ले जाएगी।उसने कीनू की टोकरी से नमक की पुड़िया निकाली और हैं हैंडबैग में रखकर कस्टम अधिकारी के पास ले गई।

  7  दोनों कस्टम अधिकारीयों का व्यवहार साफिया के प्रति कैसा था ? उससे उन्हें सहानुभूति क्यों थी |
उत्तर संकेत -दोनों  कस्टम अधिकारीयों ने उनके साथ सद्भावनापूर्ण व्यवहार किया और कानून के अनुसार गलत होते हुए भी मानवता और इंसानियत के नाते नमक ले जाने में मदत करते है |इस प्रकार के व्यव्हार से यह साबित हो जाता है कानून और नियमों से उपर मानवता होती है  

अटारी में साफिया को समझ में आया ही नहीं कि कहा से लाहौर ख़त्म हुआ और कहा से अमृतसर आरम्भ हो गया |ऐसा क्यों होता है ?
  उत्तर संकेत -दोनोँ की एक सीमा थी दोनों का रहन-सहन भाषा एक सी थी और तो और गाली भी एक जैसी थी 

9   सफिया कस्टम के जँगले से निकलकर दूसरे प्लेटफार्म पर आ गई और वे वहीं खड़े रहे- इस वाक्य में हुए वे शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है?
10  . नमक ले जाने यह बारे में सफिया के मन में उठे द्वंद्वों के आधार पर  उसकी चारित्रिक विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
11  नमक कहानी किस बात का प्रतीक है ?इस कहानी में वतन शब्द का भाव किस प्रकार दोनों तरफ के लोगों को भावुक करता है ?
12  सफिया यदि छिपाकर नमक ले जाने का प्रयत्न करती तो क्या होता है? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
13    नमक पाठ हो पढ़ते हुए आपके मन में  क्या- क्या प्रश्न उठते हैं?
14  .'मानचित्र पर एक लकीर खींच देने भर से जमीन और जनता बँट जाती है' उचित तर्कों एवं उदाहरणों से इसकी पुष्टि करें।
15 जब सखिया अमृतसर पुल पर चढ़ रही थी तो कस्टम अधिकारी निचली सीढ़ी के पास सिर झुकाए क्यों खड़े थे ?
16  लाहौर अभी तक उनका वतन है और देहली मेरा या मेरा वतन ढ़ाका है- जैसे उद्गार किस सामाजिक यथार्थ का संकेत करते हैं ?






मंगलवार, मई 12, 2020

हिन्दी साहित्य का नामकरण 1( दसवीं से चौदहवीं शताब्दी तक के समय का नामकरण )



नामकरण  
नाम देने वाले विद्वान का नाम

टिप्पणी

चारणकाल 643से1200  
ग्रियसन
नाम का कोई ठोस आधार नहीं
प्रारम्भिक काल
643से1387
मिश्रबंधु
साहित्यिक प्रवृत्ति का धोतक नही |यह सामान्य संज्ञा है जो हिन्दी भाषा के प्रारम्भ को बताता है |
वीरगाथा काल
1050से1375संवत
आ.रामचन्द्र शुक्ल
आश्रयदाता राजा के वीरतापूर्ण कार्यों का चारण कवियों के द्वारा वर्णन करना | इन रचनाओं को रासो काव्य कहते है |
सिद्धसामंत काल
राहुल सांस्कृत्यायन
इस युग में सिंध और सामंत का युग था
बीजवपन काल
महावीरप्रसाद द्विवेदी
यह नाम तर्कसंगत नहीं हैक्योंकि इस समय साहित्य अपने चरम विकास का समय था |
वीरकाल
विश्वनाथप्रसाद मिश्र
यह रामचंद्र शुक्ल द्वारा दियें नाम का रुपान्तरण है
आदिकाल
हजारी प्रसाद द्विवेदी
आदिकाल प्रारम्भ का न होकर परम्परा के विकास का सूचक है|आ.हजारी प्रसाद ने नवीन ताजगी और अपूर्व
तेजस्विता विशेषता है |
संधिकाल एवं चारण काल
डॉ.रामकुमार वर्मा
कोई साहित्यिक प्रवृति नहीं है |


रविवार, मई 10, 2020

हिन्दी साहित्य के इतिहास के लेखन का प्रयास


भक्तमाल,चौरासी वैष्णव की वार्ता,दो सौ बावन वैष्णव की वार्ता ( इन सभी ग्रंथो में कवियों के  जीवन परिचय का उल्लेख किया गया परन्तु इतिहास परक दृष्टिकोण नही रहा है |)

हिन्दी साहित्य के इतिहास को  लिखने का पहला प्रयास करने का श्रेय  फ्रेंच विद्वान ग्रार्सा डी तासीको दिया जाता है |इनके  ग्रन्थ का नाम इसवार  द लासितरेत्युर रहुई ए हिन्दुस्तानी |इस ग्रंथ में अंग्रेंजी के वर्णों के अनुसार उर्दू और हिन्दी के कवियों का वर्णन किया गया है |परन्तु काल विभाजन नहीं किया गया |



शिव सिंह सेगर—शिव सिंह सरोज (1 हजार कवियों के जीवन चरित्र और उनकी रचनाओं का वर्णन किया गया है )



जार्ज ग्रियसन-दि माडर्न वर्नाक्यूलर लिटरेचर आँफ हिन्दुस्तानी (पहली बार काल विभाजन करने का प्रयास किया गया | इन्होने हिन्दी साहित्य को कुल 11 भागो में बाटा है- (1)चारण काल(2)पंद्रहवी शती का धार्मिक पुनर्जागरण काल (3)जायसी की कविता(4)ब्रज का कृष्णा-सम्प्रदाय(5)मुग़ल दरबार(6)तुलसीदास(7)रीति काव्य(8)तुलसीदास के परवर्ती (9 )अट्ठारहवीं शताब्दी(10)कंपनी के शासन के अधीन भारत(11)महारानी विक्टोरिया के शासन में हिन्दुस्थान



मिश्र बन्धु( गणेश बिहारी,माननीय श्याम बिहारी मिश्र,रायबहादुर शुकदेवबिहारी मिश्र,1913)- सफल काल विभाजन-
इनका विभाजन इस प्रकार  है-
आरंभिक काल/पूर्वारम्भिक काल (600-1343 वि)
                 उत्तराम्भिक काल (1344-1444वि.)
माध्यमिक काल/पूर्व  माध्यमिक काल (1445-1560 )
              प्रोढ़ माध्यमिक काल(1561-1580  )
अलंकृत काल/पूर्वालंकृत काल (1681-1790)
          उत्तरालंकृत काल(1791-1889)
परिवर्तन काल  (1890-1925 वि.)
वर्तमान काल (1926 वि. से अब तक )

रामचन्द्र शुक्ल—हिन्दी साहित्य का इतिहास ( 1929)- इन्होने सर्वमान्य काल विभाजन किया,जो आज भी थोड़े बहुत परिवर्तन के सभी इतिहासकार द्वारा मान्यता प्राप्त है |


आदिकाल (वीरगाथा काल)-संवत (1050-1375)
पूर्व मध्यकाल (भक्तिकाल)- संवत्(1375-
उत्तर मध्यकाल(रीतिकाल)संवत् 1700-से 1900
आधुनिक काल(गद्य काल )संवत् 1900 से अब तक
बाबू श्याम सुन्दर दास—आदि काल (वीरगाथा का युग 1000 से  1400संवत् तक )
पूर्व मध्य काल-भक्ति का युग (संवत् 1400 से 1700 संवत् तक )
उत्तर मध्य काल-रीति ग्रंथो का युग,संवत् 1700 से 1900 तक
आधुनिक युग (नवीन विकास का युग ,संवत् 1900 अब तक

गणपति चंद्र गुप्ता- हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास |इनका विभाजन इस प्रकार से है |

प्रारंभिक काल (1184-1350 ई )
पूर्व मध्य काल (1350-1600 ई )
उत्तर मध्य काल (1600-1857ई)
आधुनिक काल (1857 ई )
डॉ.नगेन्द्र--- हिन्दी साहित्य का वृहद् इतिहास
आदिकाल -7वीं शती के मध्य से 14वीं शती के मध्य तक  
भक्तिकाल-14वीं शती के मध्य से 17वीं शती के मध्य तक  
रीतिकाल 17 वीं शती के मध्य से 19वीं शती के मध्य तक
आधुनिक काल 19वीं शती के मध्य से अब तक

गुरुवार, मई 07, 2020

तार सप्तक के कवि-


तार सप्तक(1943)—मुक्तिबोध,भारत भूषण अग्रवाल,अज्ञेय,गिरजाकुमार माथुर,प्रभाकर माचवे,भारत भूषण अग्रवाल,नेमीचन्द्र जैन,रामविलास शर्मा

दूसरा सप्तक – रघुवीर सहाय, धर्मवीर भारती,भवानी प्रसाद मिश्रा,नरेश मेहता, शमशेर बहादुर, शकुन्तला माथुर,हरिनारायण व्यास|

तीसरा सप्तक- केदारनाथ सिंह,  कीर्ति चौधरी,प्रयाग नारायण त्रिपाठी,कुंवरनारायण, विजयदेवनारायण साही,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,मदनवात्सायन

चौथा सप्तक- राजेन्द्र किशोर,नन्दकिशोर आचार्य,श्रीराम वर्मा,सुमनराजे,नन्दकिशोर आचार्य,स्वदेश भारती,अवधेश कुमार,रामकुमार कुम्भज