सोमवार, नवंबर 10, 2025

उषा (शमशेर बहादुर सिंह)

प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे

भोर का नभ

राख से लीपा हुआ चौका

( अभी गीला पड़ा है )

बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से

कि जैसे धुल गई हो

स्‍लेट पर या लाल खड़िया चाक

मल दी हो किसी ने

नील जल में या किसी की

गौर झिलमिल देह

जैसे हिल रही हो

और.............

जादू टूटता है इस उषा का अब

सूर्योदय हो रहा है।

उपरोक्त काव्य-खण्ड को पढ़ कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखें –

1.  1 कविता में कवि ने प्रकृति की किन गतियों को शब्‍दों में बांधने का प्रयास किया है ?

2. 2   भोर के नभ को राख से लीपा हुआ चौका क्‍यों कहा है ?

3.   कविता में सूर्योदय के किस रूप को दर्शाया गया है ?

   4- स्‍लेट पर लाल............किसी ने पंक्ति का अर्थ स्‍पष्ट कीजिए  ?


प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे

भोर का नभ

राख से लीपा हुआ चौका

(अभी गीला पड़ा है)

बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से

कि जैसे धुल गई हो

स्‍लेट पर या लाल खड़िया चाक

मल दी हो किसी ने

 

     उपरोक्त काव्य-खण्ड को पढ़ कर काव्य सौन्दर्य पर आधारित निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखें –

1. 1  काव्याँश में बिंबों और उपमानों की स्थिति स्पष्ट कीजिए ।

2.  2 काव्याँश की भाषा-शैली पर टिप्पणी कीजिए।

3.  3  काव्य खंड के अलंकार सौन्दर्य पर प्रकाश डालें?


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