(यह कविता उस दौर में लिखी गयी थी जब मैं स्नातक में था | )
है कली कली के होठों पर
,तेरी खूबसूरती का फ़साना |
मेरी जिन्दगी
का सब कुछ, तेरी सिर्फ़ मुस्कान में ||
ये खुली खुली जुल्फे, सावन कि घटा जैसी|
ये झुकी झुकी निगाहें, सितम गिराये बिजली जैसी ||
तेरे थिरकते कदमों मे बसंती
बहार का खजाना|
है कली कली के होठों पर
,तेरी खूबसूरती का फ़साना ||
तेरा मस्ती -शरारत. भरी नजरें जैसे जामे साकी
के|
मेरा दिल रो रहा है तू जा मेरी जिन्दगी से संभल के||
तेरे गम में रो लूँगा क्योंकि खुशी बर्दाश्त. नही करता जमाना |
है कली कली के होठों पर
,तेरी खूबसूरती का फ़साना ||
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