सोमवार, फ़रवरी 22, 2016

शृंगार रस के भेद

जब नायक और नायिका में एक आश्रय तथा दूसरा आलम्बन हो अथवा प्राकृतिक उपादान , कोई कृति अथवा किसी का गायन-वादन आलंबन हो और दर्शक, पाठक या श्रोता आश्रय हो और वे विभाव, सम्बन्धित अनुभाव और संचारीभाव से परिपुष्ट हों , वहाँ रति नामक स्थायीभाव सक्रिय हो जाता है, रति के सक्रिय होने से श्रृगार  रस की उत्पत्ति होती है 
 
शृंगार रस के दो भेद होते हैं -
(
) संयोग
श्रृगार   () वियोग श्रृगार
) संयोग श्रृगार  - जहाँ आलंबन और आश्रय के बीच परस्पर मेल-मिलाप और प्रेमपूर्ण वातावरण हो , वहाँ संयोग श्रृगार  होता है |

स्थायी भाव - रति
संचारी भाव - लज्जा , जिज्ञासा ,उत्सुकता आदि
आलंबन -    नायकनायिका , गायन - वादन ,   कृति  अथवा  प्राकृतिक  उपादान
आश्रय -     नायक , नायिका , श्रोता या दर्शक
उद्दीपन -    व्याप्त सौन्दर्य आदि

अनुभाव -   नायक , नायिका , श्रोता या दर्शक का   मुग्ध होना , पुलकित होना आदि

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