शनिवार, अप्रैल 18, 2020

श्रृंगार रस


श्रृंगार रस –प्रेम पूर्वक वर्णन श्रृंगार रस के अंतर्गत आता है | श्रृंगार का स्थायी भाव रति होता है |इसके दो भेद है संयोग श्रृंगार और वियोग श्रृंगार | इसे रस राज कहते हैं |

संयोग श्रृंगार रस – जब नायक और नायिका का मिलन  होता है अर्थात् जब प्रेमी और प्रेमिका का साथ  हो |
1.   बतरस लालच लाल की ,मुरली धरी लुकाय |
सौंह करैं भौहँनि हंसे, दैन कहैं नटी जाय |

2.   देखन मिस मृग- बिहंग तरू, फिरति बहोरि-बहोरि |
निरिख-निरिख रघुवीर-छवि ,बढ़ी प्रीति न थोरि||

3.   नहीं पराग नहिं मधुर मधु,नहिं विकास इहि काल |
अली कली ही सों बिध्यों, आगें कौन हवाल ||

4.    राम के रूप निहारति जानकी कंकन के नग की परछाहीं । 
याती सबै सुधि भूलि गई, कर टेकि रही पल टारत नाहीं ।

   5 कहत नटत रीझत खिझत, मिलत खिलत लजियात

     भरे भौन में करत है, नैननु ही सौ बात

वियोग श्रृंगार -- जब नायक और नायिका का दूर  होते  है अर्थात् जब प्रेमी और प्रेमिका का साथ न   हो |
1.   अति मलीन वृषभानु-कुमारी
अध मुख रहित ,उरघ नहिं चितवति ,ज्यों गथ हारे थकित जुआरी |

2   छुटे चिकुर ,बदन कुम्हिलानों
त्यों नलिनी हिमकर की मारी ||

3.    उधो, मन न भए दस बीस।
एक हुतो सो गयौ स्याम संग, को अवराधै ईस॥

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