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बुधवार, जुलाई 29, 2020

संघर्ष आप की नीव है


सफलता और असफलता मानव के जीवन के महत्वपूर्ण अंग है | हम असफल केवल इस कारण से होते है क्योंकि जो लक्ष्य प्राप्त करना चाहते है उसके लिए हम तैयार नहीं होते है| चाहे वह तैयारी में कमी हमने जान बूझ कर की हो या अनजाने  में | क्योंकि ईश्वर बहुत ही पारखी होता है वह समय और व्यक्ति को देख कर ही उसे कोई दायित्व सौपता है | जब तक आप कच्चे है ईश्वर आप को परखता है जैसे ही आप मजबूत होगे वह आपकों वः दायित्व सौप देता है |हमारी  कहानी भी कुछ इसी  विषय पर केन्द्रित है |

एक नगर था उस में एक धनी व्यापारी था परन्तु समय के साथ उसका पूरा व्यापर डूब गया |जिस कारण वह हताश और निराश हो गया | एक दिन परेशान होकर वह जंगलमें गया और बहुत देरतक अकेले बैठा रहा। कुछ सोचकर भगवान को सम्बोधित करते हुए बोला-भगवन् ! मैं हार चुका हूँ, मुझे कोई एक वजह बताइये कि मैं क्यों हताश न होऊँ, मेरा सब कुछ खत्म हो चुका है। कृपया मेरी मदद करें। 

भगवान उस  व्यापारी की  बात सुन कर हँसे  और उन्होंने उसे जवाब दिया।  तुम थोड़े से संघर्ष से घबड़ा गयें मुझे देखो मैं ईश्वर होकर भी कितना धैर्य रखता हूँ |

व्यापारी हँसा और  बोलता है - क्यों मजाक कर रहें है आप  ईश्वर है आप के लिए कौन सा संघर्ष है |आप किस बात का धैर्य रखते है |

    ईश्वर बोलते है देखो इस जंगल को यहाँ के सभी पौधे मेरी रचना है  । जब मैंने घास और बाँस के बीज को लगाया तो मैंने इन दोनोंकी ही बहुत अच्छेसे देखभाल की। इनको बराबर पानी दिया, बराबर रोशनी दी" घास बहुत जल्दी बड़ी होने लगी और इसने धरतीको हरा-भरा कर दिया, लेकिन बाँसका बीज बड़ा नहीं हुआ। पर मैंने बाँसके लिये अपनी हिम्मत नहीं हारी। 

       दूसरे साल तक   घास बहुत ही  घनी हो गयी। उसपर झाड़ियाँ भी आने लगीं, लेकिन बाँस के बीज में कोई वृद्धि नहीं हुई, मैंने  फिर भी बाँस के बीज के लिये हिम्मत नहीं हारी तीसरे साल भी बाँस के बीज में कोई वृद्धि नहीं हुई, लेकिन मित्र मैंने फिर भी हिम्मत नहीं हारी। चौथे साल भी बाँस के बीज में कोई वृद्धि नहीं हुई, लेकिन मैं फिर भी लगा रहा" पाँच साल बाद, उस बाँस के बीज से एक छोटा सा पौधा अंकुरित हुआ घासकी तुलनामें यह बहुत छोटा था और कमजोर था, लेकिन केवल छः महीने बाद यह छोटा-सा पौधा १०० फीट लम्बा हो गया। मैंने इस बाँसकी जड़को विकसित करनेके लिये पाँच  सालका समय लगायाइन पाँच सालोंमें इसकी जड़  इतनी मजबूत हो गयी कि १०० फिट से ऊँचे बाँसको सम्भाल सके। 

    जब भी आपको जीवनमें संघर्ष करना पड़े तो समझिये कि आपकी जड़ मजबूत हो रही है। आपका संघर्ष आपको मजबूत बना रहा है, जिससे कि आप आने वाले कलको सबसे बेहतरीन बना सकों । मैंने बाँसके सन्दर्भमें हार नहीं मानी। मैं तुम्हारे विषयमें भी हार नहीं मानूँगा । किसी दूसरेसे अपनी तुलना मत करो। घास और बाँस दोनोंके बड़े होने का समय अलग अलग है, दोनों का उद्देश्य अलग-अलग है। एक दिन  तुम्हारा भी समय आयेगा। तुम भी एक दिन बाँसके पेड़की तरह आसमान छुओगे। मैंने हिम्मत नहीं हारी, तुम भी मत हारो। अपनी जिन्दगी में संघर्ष से मत घबराओ, यही संघर्ष हमारी सफलता की जड़ोंको मजबूत करेगा। हमेशा अपने छोटे-छोटे प्रयासोंको जारी रखें, सफलता एक-न-एक दिन अवश्य मिलेगी।

गुरुवार, मई 14, 2020

कथा महाराज भरतरी की


महर्षि वेद व्यास कहते है कि धर्म युक्त आचरण से   हमें अर्थ,काम और मोक्ष को प्राप्त करना चहिये |क्योंकि अगर आप का आचरण धर्म से युक्त नहीं है तो  अधर्म से कमाया गया अर्थ और प्राप्त काम पतन का कारण है |अगर काम में धर्म नहीं है तो विनाशकारी होता है  आज जो परिवार टूट रहे है उसका कारण केवल यह  है कि हम धर्म युक्त आचरण से दूर हो गये है |
यां चिन्तयामि सततं मायि सा विरक्ता,
साप्यन्य मिच्छ्ति जनं म जानोअन्यमक्त||
अस्म्स्कृते च परीतुष्यति काचिदन्या,
धिक्ताम् च तं च मदनम् च इमाम च माम् च ||
 मैं जिसका चिंतन करता हूँ वह मुझ से विरक्त होकर किसी दुसरे(पुरूष) की इच्छा करती है. और वह पुरूष किसी दूसरी स्त्री पर आसक्त है और वह स्त्री हम से प्रसन्न है |इसलिए तीनों को धिक्कार है और मुझे धिक्कार है जो इस सांसारिक झंझट में पड़ा हूँ |कामदेव को तो और भी धिक्कार है जो सब को नचा रहा है |
  इन पक्तियों के रचनाकार महाराज भरतरी की जीवन कथा  को पढ़ना और समझना चाहियें | महाराज भरतरी उज्जैन के महाराज और विक्रमादित्य के बड़े भाई थे|इनकी तीन रनिया थी जिसमे सबसे छोटी रानी का नाम पिंगला था जिससे महाराज को अत्यधिक स्नेह था, जबकि रानी को नगर कोतवाल से स्नेह था |
एक दिन महाराज के दरबार में एक सन्यासी आते है और एक  चमत्कारी फल देकर चले जाते है । राजा ने फल लेकर सोचा कि फल खाकर जीवन भर जवानी और सुंदरता बनी रहेगी पर उनकी प्रिय रानीबूढी हो जाएगी तो अच्छा नहीं होगा  । यह सोचकर राजा ने पिंगला को वह फल दे दिया।

जब राजा ने वह चमत्कारी फल रानी को दिया तो रानी ने सोचा कि यह फल यदि कोतवाल खाएगा तो वह लंबे समय तक उसकी मनोकामना  की पूर्ति कर सकेगा। रानी ने यह सोचकर चमत्कारी फल कोतवाल को दे दिया।
 कोतवाल  महोदय एक नगर गणिका  से प्रेम करते थे इस कारण उसने चमत्कारी फल उसे दे दिया। जिससे नगर गणिका  सदैव जवान और सुंदर बनी रहे। नगर गणिका का स्नेह राजा से था उसने वह फल राजा को दिया |फल देखते ही राजा को झटका लगा और उसी समय राज्य का त्याग कर दिया |जंगल में जाकर एक गुफा में तपस्या की और भरतरी शतक की रचना की | भरतरी शतक के तीन खंड है निति शतक,श्रृंगार शतक और वौराग्य शतक |


मंगलवार, मई 12, 2020

प्रेम रस मे डूबी बालिका और भक्त वत्सल भगवान की कथा

भगवान और भक्त का संबंध अटूट होता है ।‌वह जाति धर्म से परे है ।‌जाति और धर्म तो संसार के लोगो के द्वारा बनाया गया है । भगवान तो केवल भक्तों के बस में रहते है । सच्चे मन से उसे पुकारो तो । 
उड़ीसा में बैंगन बेचनेवाले की एक बालिका थी | दुनियाकी दृष्टिसे उसमें कोई अच्छाई नहीं थी | न धन था, न रूप | किन्तु दुनिया की दृष्टिसे नगण्य उस बालिका को संत जयदेव गोस्वामी जी का पद 
गीत गोविंदम बहुत ही भाता था | वह दिन-रात उसको गुनगुनाती रहती थी और भगवानके प्रेम में डूबती-उतराती रहती थी | 
वह घर का सारा काम करती, पिता-माता की सेवा करती और दिनभर जयदेव जी का पद गुनगुनाया करती और भगवान की यादमें मस्त रहती | 
पूर्णिमाकी रात थी, 
*पिताजी ने प्यारी बच्ची को जगाया और आज्ञा दी कि बेटी ! अभी चाँदनी टिकी है, इच प्रकाश में बैंगन तोड़ लो जिससे प्रातः मैं बेच आऊँ ।
वह गुनगुनाती हुई सोयी थी और गुनगुनाती हुई जाग गयी | जागने पर इस गुनगनाने में उसे बहुत रस मिल रहा था |
वह गुनगुनाती हुई बैंगन तोड़ने लगी, कभी इधर जाती, कभी उधर; क्योंकि चुन-चुनकर बैंगन तोड़ना था |उस समय एक ओर तो उसके रोम-रोमसे अनुराग झर रहा था और दूसरी ओर कण्ठसे गीतगोविन्द के सरस गीत प्रस्फुटित हो रहे थे |
प्रेमरूप भगवान् इसके पीछे कभी इधर आते, कभी उधर जाते | इस चक्कर में उनका पीताम्बर बैंगन के काँटों में उलझकर चिथड़ा हो रहा था, किन्तु इसका ज्ञान न तो बाला को हो रहा था और न उसके पीछे-पीछे दौड़नेवाले प्रेमी भगवान को ही |
विश्वको इस रहस्य का पता तब चला जब सबेरे भगवान् जगन्नाथ जी का पट खुला और उस देशके राजा पट खुलते ही भगवानकी झाँकी का दर्शन करने गये | उन्हें यह देखकर बहुत दुःख हुआ कि पुजारी ने नये पीताम्बर को भगवानको नहीं पहनाया था, जिसे वे शामको दे गये थे | वे समझ गये कि नया पीताम्बर पुजारीने रख लिया है और पुराना पीताम्बर भगवान को पहना दिया है |उन्होंने इस विषयमें पुजारी से पूछा | 
बेचारा पुजारी इस दृश्य को देखकर अवाक था | उसने तो भगवानको राजाका दिया नया पीताम्बर ही पहनाया था, किन्तु राजाको पुजारी की नीयत पर संदेह हुआ और उन्होंने उसे जेलमें डाल दिया |

निर्दोष पुजारी जेलमें भगवानके नामपर फूट-फूटकर रोने लगा |इसी बीचमें राजा कुछ विश्राम करने लगा और उसे नींद आ गयी | स्वप्नमें उसे भगवान जगन्नाथ जी के दर्शन हुए और सुनायी पड़ा कि पुजारी निर्दोष है, उसे सम्मान के साथ छोड़ दो | रह गयी बात नये पीताम्बरकी तो इस तथ्यको बैंगन के खेतमें जाकर स्वयं देख लो, पीताम्बर के फटे अंश बैंगन के काँटों में उलझे मिलेंगे |
 मैं तो प्रेमके अधीन हूँ, अपने प्रेमीजनों के पीछे-पीछे चक्कर लगाया करता हूँ | बैंगन तोड़नेवाली बालाके अनुरागभरे गीतों को सुनने के लिये मैं उसके पीछे-पीछे दौड़ा हूँ और इसीमें मेरा पीताम्बर काँटोंमें उलझकर फट गया |
जगन्नाथ-मन्दिरकी देख-रेख, भोग-आरती आदि सभी तरह व्यवस्था करने वाले राजा के जीवन में इस अद्भुत घटनाने रस भर दिया और भगवान के अनुराग में वे भी मस्त रहने लगे | बैंगन तोड़नेवाली एक बाला के पीछे-पीछे भगवान् उसके प्रेममें घूमते रहे |यह कहानी फूसकी आगकी तरह फैल गयी | जगत के स्वार्थी लोगों की भीड़ उसके पास आने लगी | कोई पुत्र माँगता तो कोई धन | 
इस तरह भगवान के प्रेममें बाधा पड़ते देख राजा ने जगन्नाथ मन्दिर में नित्य मंगला आरती के समय गीत गोविंद गाने के लिए उस बालिका को मंदिर में संरक्षण दिया और उसकी सुरक्षा-व्यवस्था की | तब से नित्य मंगला आरती में गीत गोविंद का गान श्री जगन्नाथ मन्दिर में होता आ रहा है।

मंगलवार, फ़रवरी 25, 2020

सहन शीलता एक महान गुण है


    सहनशीलता एक महान गुण है ,हमें किसी के ऊपर क्रोध नहीं करना चाहिए| हमें सदैव दूसरों की गलतियों ( अत्याचार को नहीं ) को शांति से सहन कर लेना चाहिए |क्योंकि  क्रोध आप के मानसिक विकास को अवरुद्ध कर देता है एक मिनट के क्रोध को शांत होने में कम से कम दो घंटे लगते है |तब तक आप बेचैन रहते है |कई बार आप क्रोध में अनेक पाप कर बैठते है,इसी कारण क्रोध को पाप का मूल कहां गया है|   क्रोध से सदैव बचाना चाहिए | जो व्यक्ति महान होता है ,वह सदैव इससे दूर रहता है | सहनशीलता किस स्तर की हो इसको हमें सर आइजक न्यूटन से सिखाना चाहिए|
  सर आइजक न्यूटन जो एक महान वैज्ञानिक थे उन्होंने एक कुत्ता पाल रखा था, जिसका नाम डायमण्ड था | एक बार न्यूटन लैब में काम कर रहे थे,उसी समय किसी ने बाहर से उन्हें बुलाया और वह जलती हुई मोमबत्ती मेज पर छोड़कर बाहर चले गयें |उस समय डायमण्ड भी उसी मेज के निचे बैठा था न्यूटन के बाहर निकलते ही वह भी कूद कर बहार निकला और मोमबत्ती मेज पर गिर गयी | मेज पर रखे कागज जल गये जो न्यूटन की वर्षो की मेहनत का परिणाम था | परन्तु न्यूटन ने उस कुत्ते पर जरा भी क्रोध नहीं किया  सिर्फ इतना ही उनके मुहं से निकला डायमण्ड तू क्या जाने तू ने कितना नुकसान किया है | साधारण व्यक्ति होता तो क्रोध करता ,पर न्यूटन शांत रहा |

    

गुरुवार, नवंबर 07, 2019

पलायन हल नहीं है


परीक्षा परिणाम का समय आते ही माता पिता के दिलों की धड़कन बढ़ जाती है । क्योकि  असफल या कम नम्बर पाने वाले बहुत से छात्र आत्म हत्या कर लेते। ऐसे अभागे छात्र जीवन को सही से समझ नहीं पाते है, स्वयं तो मरते ही है साथ मे अपने माता पिता को जन्म भर तड़्पने के लिये छोड देते है।ऐसे कायर लोग अपने समाज के साथ साथ उस परमसत्ता के भी अपराधी होते है। जिसने बडे़ अरमानों के साथ किसी विशेष प्रयोजन से इस धरती पर उन्हें भेजा है। ऐसे लोग जान ले इस संसार जिस प्रकार से दिन के बाद रात -रात के बाद दिन होता है उसी प्रकार सफलता और असफलता का क्रम चलता रहता है। व्यकि अगर जीवन कि छोटी-छोटी असफलता से घबरा कर नकारात्मक विचारों में खो जाये तो उसके जीवन में अवसाद, हताशा और कुंठाघर कर जाती है। उसके लिये जीवन एक बोझ हो जाता है। ऐसे व्‍यक्ति के चारों ओर का माहौल अन्धकार पूर्ण हो जाता उसे कुछ सूझता नही है। जिस कारण वह घबराकर आत्महत्या कर लेता है। पर व्यक्ति अगर इस असफलता को नकारात्मक दृष्टि से न देखे और अपनी असफलता को खोज कर पुनः प्रयास करे तो यह असफलता भी उसके लिये वरदान हो जायेगी। बार बार असफल होने पर भी अपने कर्म को करते रहने वाला व्यक्ति एक दिन महानता कि उचाई को अवश्य छूता है।
संस्कृत के महान व्याकरणाचार्य पाणिनि पाठ को ठीक ढ़ग से याद नहीं कर पाते थे तो एक दिन उनके गुरू ने उनका हाथ देख कर कहा कि तुम्हारे हाथ में तो विद्या रेखा है ही नहीं, तुम यहां पर व्यर्थ में अपना समय न नष्ट करो जायो, कोई काम सीख लो और रोजगार करो। पाणिनि गुरू की आज्ञा से घर को चल दिया, रास्ते में कूएं पर पानी पी रहा था तभी उसकी निगाह रहट पर पड़ी जो पत्थर का होने के बाद भी कोमल सन की रस्सी से बार बार घिसने के कारण निशान पड़ गया था। पाणिनि सोचने लगे जब बार बार घिसने से पत्थर पर कोमल रस्सी से निशान पड़ गया है तो मैं विषय को बार बार दोहरा कर क्यों नहीं याद कर सकता। यह सोच कर पाणनि आश्रम लौट आया और उसी पाणिनि ने आगे चलकर संस्कृत व्याकरण का आधार ग्रन्थ अष्टाध्यायि की रचना कि अतः जीवन निराशा का नाम नहीं है।
व्यक्ति को अपने कर्मों पर भरोसा करना चाहिये हाथ की लकीरों पर नहीं। जिस प्रकार से प्रकृति में सावन और पतझड़ का क्रम लगा रहता है उसी प्रकार जीवन सफलता असफलता का क्रम लगा रहता है। अतः व्यक्ति को आशा नहीं त्यागनी चाहिये क्योंकि आशा जीवन का आधार है। लोग अपनी असफलता के लिये स्वयं को दोषी न मान कर पडोसियों तथा समाज पर उसे डालेगे बात नहीं बनी तो ईश्वर पर डाल दिया। जिसने हमें दो हाथ पैर दिया सोचने के लिये मस्तिक दिया है। उस पर भी बात न बनी तो भाग्य नामक भूत की कल्पना कर उस पर डाल दिया। स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि भाग्य नामक वस्तु कहां पर रहती है? हम जो कुछ बोते है वही वही काटते है। हमरी सफलता असफलता के लिये हमारे अलावा कोई दोषी नहीं है क्योंकि हम स्वयं उस परमसत्ता के अंश है जो अनन्त और असीम है। इस किसी अन्य सत्ता मे इतना सामर्थ कहाँ कि हमारे लिये सफलता या असफलता की कामना कर सके। अगर मेहनत करने पर भी हमें सफलता न मिले तो इसका अर्थ है हम मन में कही न कहीं भय या निराशा अवश्य थी। किसी ने ठीक ही कहा है-
सबै भूमि गोपाल कि या मे अट्क कहाँ।
जाके मन मे अटक है,सोई अट्क रहाँ।
हम जो कुछ सोचते है जो कार्य करते है वही कुछ समय बाद सूक्ष्म रूप धारण कर लेता है; मानो बीज रूप है और वही इस शरीर में अव्यक्त रूप में रहता रहता है। वही कुछ समय बाद फल भी देता है। मनुष्य का सारा जीवन इसी प्रकार गढता है। वह अपना अदृष्ट स्वयं ही बनाता है। मनुष्य किसी भी नियम से बद्ध नहीं है। वह अपने नियम में तथा अपने जाल मे स्वयं ही बधा है।–स्वामी विवेकानन्द

बाबर ने कहा था कि ग्रहों की चाल आपकी जमामर्दी और नामर्दी की मोहताज है। हम जमा मर्द है तो ग्रह हमारे अनुकूल हम नामर्द है तो ग्रह हमार प्रतिकूल। महान ज्योतिषाचार्य गर्ग और पराशर ने कहा है कि भाग्य कोई स्‍वतंत्र सत्ता नहीं है वरन वह कर्म के आधीन कार्य करता है। आचार्य भट्टॊसल के अनुसार कर्म ही आपकी सफलता का राज है। इनके अनुसार सफलता के लिये तीन आवश्यक तत्व है।-१. एकाग्रता २.निरन्तरता ३. कुशलता। इन तीनों मे से किसी की भी कमी हमे असफल कर सकती है। अतः हमें एकाग्रता, निरन्तरता के साथ कुशलता बनाये रखना चाहिये और कर्म के पथ पर आगे बढना चहिये। निराशा रूप शैतान को आशा और मेहनत रूपी तलवार से काट कर खडे हो कर बोलो – राम काज किन्हे बिन मोही कहाँ विश्राम।

बुधवार, अक्टूबर 30, 2019

जीवन के सार कबीर के दोहे

मांगन मरण समान है ,मत कोई माँगों भीख ।
मांगन से मरना भला , यह सतगुरु की सीख।।

हीरा तहाँ न खोलिए , जहाँ कुंजड  हाट।
बाँधों अपनी पोटरी, लागहु अपनी बाट।

तनपवित्र सेवा किये, धन पवित्र दिये दान ।
मन पवित्र हरि भजन से , इस विधि हो कल्याण।

तीर्थ गये से एक फल , संत मिलें फल चार ।
सत्य गुरु मिलें अनेक फल , कहे कबीर बिचार। 

कबिरा नन्हें हो रहो जैसी नन्ही दूब।
सभी घास जल जायेंगे , दूब ख़ूब की ख़ूब ।

लीक पुरानी ना तज़े , कायर कुटिल कपूत 
लीक पुरानी ना रहे , शायर सिंह सपूत।

खुल खेलो संसार में बाँधी न सक्के कोय।
जाक़ों राखें साइयाँ मारि न सक्के कोय।

मंगलवार, सितंबर 15, 2015

शिक्षक को पत्र (अब्राहम लिंकन )




सम्माननीय सर...
मैं जानता हूँ कि इस दुनिया में सारे लोग अच्छे और सच्चे नहीं हैं। यह बात मेरे बेटे को भी सीखनी होगी। पर मैं चाहता हूँ कि आप उसे यह बताएँ कि हर बुरे आदमी के पास भी अच्छा हृदय होता है। हर स्वार्थी नेता के अंदर अच्छा लीडर बनने की क्षमता होती है। मैं चाहता हूँ कि आप उसे सिखाएँ कि हर दुश्मन के अंदर एक दोस्त बनने की संभावना भी होती है। ये बातें सीखने में उसे समय लगेगा, मैं जानता हूँ। पर आप उसे सिखाइए कि मेहनत से कमाया गया एक रुपया, सड़क पर मिलने वाले पाँच रुपए के नोट से ज्यादा कीमती होता है।
आप उसे बताइएगा कि दूसरों से जलन की भावना अपने मन में ना लाए। साथ ही यह भी कि खुलकर हँसते हुए भी शालीनता बरतना कितना जरूरी है। मुझे उम्मीद है कि आप उसे बता पाएँगे कि दूसरों को धमकाना और डराना कोई अच्‍छी बात नहीं है। यह काम करने से उसे दूर रहना चाहिए।
आप उसे किताबें पढ़ने के लिए तो कहिएगा ही, पर साथ ही उसे आकाश में उड़ते पक्षियों को, धूप में हरे-भरे मैदानों में खिले-फूलों पर मँडराती तितलियों को निहारने की याद भी दिलाते रहिएगा। मैं समझता हूँ कि ये बातें उसके लिए ज्यादा काम की हैं।
मैं मानता हूँ कि स्कूल के दिनों में ही उसे यह बात भी सीखनी होगी कि नकल करके पास होने से फेल होना अच्‍छा है। किसी बात पर चाहे दूसरे उसे गलत कहें, पर अपनी सच्ची बात पर कायम रहने का हुनर उसमें होना चाहिए। दयालु लोगों के साथ नम्रता से पेश आना और बुरे लोगों के साथ सख्ती से पेश आना चाहिए। दूसरों की सारी बातें सुनने के बाद उसमें से काम की चीजों का चुनाव उसे इन्हीं दिनों में सीखना होगा।
आप उसे बताना मत भूलिएगा कि उदासी को किस तरह प्रसन्नता में बदला जा सकता है। और उसे यह भी बताइएगा कि जब कभी रोने का मन करे तो रोने में शर्म बिल्कुल ना करे। मेरा सोचना है कि उसे खुद पर विश्वास होना चाहिए और दूसरों पर भी। तभी तो वह एक अच्छा इंसान बन पाएगा।
ये बातें बड़ी हैं और लंबी भी। पर आप इनमें से जितना भी उसे बता पाएँ उतना उसके लिए अच्छा होगा। फिर अभी मेरा बेटा बहुत छोटा है और बहुत प्यारा भी।
आपका
अब्राहम लिंकन