हास्य
रस - इस रस में हास्य की प्रधानता होती है
|नाटक के पात्र की विचित्र वेशभूषा,हावभाव ,या आकृति के कारण जब पाठक के मन में
हसी ऊपन्न होतो हास्य रस कहलाता है |
विन्ध्य
के वासी उदासी तपोव्रत धारी महा बिनु नारी दुखारे |
गौतम
तीय तरी तुलसी सो कथा सुनि में मुनि वृन्द सुखारे |
है
है शिला सब चंद मुररी पंखी पद मंजुल-कंज तिहारे|
किन्ही भली रघुनायक जूं कंरून जूं कंरून करी कानन कौ पग धारे |
इस कविता में विन्ध्य वासी
तप करने वाले बिना पत्नी के बहुत उदास है पर जैसे ही सुनते है श्री राम जी जंगल में आये है वह खुश हो जाते है क्योंकि उन्होंने सुना था कि
श्री रामचन्द्र के चरण का स्पर्श पाकर गौतम ऋषि की स्त्री जो श्राप से पत्थर बन
गयी थी पुनः नारी रूप में आ गयी और इस जंगल में तो हजारों पत्थर है अगर सब स्त्री
बन गयी तो तपस्वियों की बल्ले बल्ले |
नाना
वाहन नाना वेषा।
बिहसे सिव समाज निज देखा।।
कोउ मुख-हीन बिपुल मुख काहू।
बिन पद-कर कोउ बहु पद-बाहु।।
बिहसे सिव समाज निज देखा।।
कोउ मुख-हीन बिपुल मुख काहू।
बिन पद-कर कोउ बहु पद-बाहु।।
ओ गॉड! विनय सुन मेरी ,
होऊ मच महिमा तेरी!
ह्वेंन द्रोपदी पुकारी ,
अब लेट न करो बनवारी |
ऐट वन्स इनलार्ज हुई सारी,
दुशासन एक्सेप्ट हुई सारी
मतहिं पितहिं उरिन भये नीके।
गुरु ऋण रहा सोच बड़ जी के।।
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