Bhayanak Ras/भयानक रस
इस में भयोत्पादक विषयों का
वर्णन होता है |इसका स्थाई भाव भय है |किसी भयानक दृश्य को देखने के कारण उपन्न भय जब अपनी परिपक्वावस्था को प्राप्त करता
है यो उसे भयानक रस कहते है |
एक ओर अजगरहिं लखि,एक ओर मृगराय|
विकल बटोही बीच ही,परयो मूरछा
खाय ||
बालधी विसाल,विकराल,ज्वाला-जाल
मानौ ,लंक लीलिबों को काल रसना पसारी है |
कैंधों
व्योम बिध्यिका भरे हैं भूरि धूमकेतु,वीर रस वीर तरवारि सी उधारी |
समस्त सर्पों संग श्याम ज्यों
कढ़े
कलिन्द की नन्दिनी की सुअंक से
खड़े किनारे जितने मनुष्य थे
सभी महाशंकित भीत हो उठे ||हुए कईमूर्च्छित
घोर त्रास से
कई भगे मेदिनि में गिरे कई |
हुई
यशोदा अति ही प्रकम्पिता ब्रजेश भी व्यस्त समस्त हो गये||
चली आ रही फेन उगलती,फन फैलाए व्यालों सी
अखिल यौवन के रंग उभार हड्डियों
के हिलाते कंकाल
कचो
के चिकने काले ,व्याल,केचुल कांस,सिबार
Bhayanak Ras/भयानक रस
लपट कराल जवाल-जाल-माल दहूँ
दिसि ,
धूम अकुलाने,पहिचानै कौन काहि
रे ||
पानी को ललात,बिललात,जरे गात,
परे पाइमालतू भ्रात,तू निबाहि
रे||
प्रिया तू पराहि नाथ नाथ तू
पराहि बाप.बाप तू पराहि पूत पूत पराहि रे
तुलसी बिलोकि गोल ब्याकुल
बिहालक है
लेहि दससीस अब बीस चख चाहि रे
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