शनिवार, मई 02, 2020

अद्भुत रस


आश्चर्य जनक चकित कर देने दृश्यों के कारण वर्णन उपन्न विस्मय-भाव की परिपक्वावस्था को अद्भुत रस कहते है |

हरि ने भीषण हुंकार किया
 अपना स्वरुप विस्तार किया |डगमग-डगमग दिग्गज डोले
भगवान कुपित हो कर बोले 
जंजीर बढ़ा कर साध मुझे
हाँ हाँ दुर्योधन !बांध मुझे
यह देख गगन मुझ में लय है
यह देख पवन मुझे में लय है
मुझे में विलीन झंकार सकल
मुझे में लय है संसार सकल


देख यशोदा शिशु के मुख में, सकल विश्व की माया |
क्षणभर को वह बनी अचेतन, हिल न सकी कोमल काया ||


हो पूर्ण जब तक पार्थ प्रति प्रभु का कथन ऊपर कहा ||
तब तक महा अद्भुत हुआ यह एक कौतुक सा,अहा |मार्त्तंड अस्ताचल निकट घनमुक्त






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