जब किसी पद में वर्णों की आवृति बार-बार होती है तो वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है ||
व्यजंन की समता मिले,अनुप्रास है सोय |
तरनि तनूजा तट तमाल तरूवर बहु छाए |
सो सुख सुजस सुलभ मोहिं स्वामी
मृद मंद मंद-मंथर-लघु- तरणी-हंसिनी-सी सुन्दर,
तिर रही खोल पाली के पर |
पुलक प्रकट करती है धरती
हरित तृणों की नोकों से
मानो झीम रहे हैं तरू भी
मंद पवन के झोंकों से
चारू चंद्र की चंचल किरणें खेल रही है जल-थल में |
निपट निरंकुस निठुर निसंकू |
जेहि ससि कीन्ह सरुज सकलंकू
कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सु नि |
कहत लखन सन राम ह्रदय गुनि ||
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