:- ” प्रश्न1-- यह साठ लाख लोगों की तरफ़ से बोलने वाली एक आवाज़ है। एक ऐसी आवाज़, जो किसी संत या कवि की नहीं, बल्कि एक साधारण-सी लड़की की है।”इल्या इहरनबुर्ग की इस टिप्पणी के संदर्भ में ऐन फ्रैंक की डायरी के पठित अंशों पर विचार करें।
उत्तर--- ऐन की डायरी अगर एक ऐतिहासिक दौर का जीवंत दस्तावेज है, तो साथ ही ऐन के सुख-दुःख और भावनात्मक उथल-पुथल का भी क्योंकि इस डायरी में ऐन ने दुसरे विश्व युद्ध के दौरान के यहूदी परिवारों की कल्पना तीत शारीरिक एवं मानसिक यतना का सजीव चित्रण करने के साथ ही उस समय के राजनैतिक परिस्थितियों का भी जीवंत वर्णन किया है। इसमें उसने उस युद्ध की भयानक विभीषिका का भी वर्णन किया है |
हिटलर यहूदियों से घृणा करता था वह उनको
प्रताणित करने के तरह-तरह के भेदभाव पूर्ण ओर अपमानजनक नियम-कायदों बनाता था और उन्हें मानने के लिए यहूदियों बाध्य किया जाने जाता था । हिटलर की खुफिया पुलिस छापे मारकर यहूदियों को अज्ञातवास से ढूँढ़
निकालती और यातनागृह में भेज देती, जहाँ जाने के बाद उन लोगों के साथ जानवरों की तरह
व्यवहार किया जाता था । इसी कारण इल्या इहरनबुर्ग की यह टिप्पणी कि “ यह साठ लाख लोगों की तरफ से
बोलने वाली एक आवाज है। एक ऐसी आवाज जो किसी संत या कवि की नहीं, बल्कि एक साधारण-सी लड़की की है।`` सत्य है।
प्रश्न2-- काश, कोई तो होता जो मेरी भावनाओं को गंभीरता से समझ पाता। अफ़सोस, ऐसा व्यक्ति मुझे अब तक नहीं मिला…।” क्या आपको लगता है कि ऐन के इस कथन में उसके डायरी लेखन का कारण छिपा है?
उत्तर--- - ऐन
जब गयी थी तब उसकी अवस्था मात्र तेरह साल थी |अज्ञातवास में व्यक्त नहीं ऐन का कोई हम उम्र दोस्त नहीं था इस कारण वह
अपने भावों को किसी से व्यक्त नहीं कर पा रही थी | वहां सभी उससे बड़े थे जो अपने दृष्टिकोण से
उसे समझते थे परन्तु उसके भावों को समझने
वाला कोई न था| ऐन बड़ों की बातें सुनकर वह उब जाती थी । इस कारण अज्ञातवास की नीरस एवं विषम परिस्थितियों में अपने भावों
को व्यक्त करने हेतु डायरी लेखन को अपना सहारा
बनाती है |ऐन लिखती है –
‘मेरे दिमाग में हर समय इच्छाएँ, विचार, आरोप तथा डाँट-फटकार ही चक्कर
खाते रहते हैं। मैं सचमुच उतनी घमंडी नहीं हूँ जितना लोग मुझे समझते हैं। मैं किसी
और की तुलना में अपनी कई कमजोरियों और खामियों को बेहतर तरीके से जानती हूँ।
’अन्य स्थान पर वह
कहती है – ‘लोग
मुझे अभी भी इतना नाक घुसेड़ू और अपने आपको तीसमारखाँ समझने वाली क्यों मानते हैं?’
इस प्रकार वह छोटी सी बालिका
अपने किशोर मन की भावनाएँ डायरी के माध्यम
से प्रकट करती है।’
प्रश्न ३ -- ‘प्रकृति-प्रदत्त प्रजनन-शक्ति के उपयोग का अधिकार बच्चे पैदा करें या न करें अथवा कितने बच्चे पैदा करें- इस की स्वतंत्रता स्त्री से छीन कर हमारी विश्व-व्यवस्था ने न सिर्फ़ स्त्री को व्यक्तित्व-विकास के अनेक अवसरों से वंचित किया है बल्कि जनांधिक्य की समस्या भी पैदा की है‘।
ऐन की डायरी के 13 जून, 1944 के अंश में व्यक्त विचारों के संदर्भ में इस कथन का औचित्य ढूँढे़ं।
उत्तर--- ऐन के अनुसार औरतों को सम्मान मिलना चाहिए वह उसकी
हक़दार है । परन्तु पुरुषों ने औरतों पर
शुरू से ही इस आधार पर शासन करना शुरू किया कि वे उनकी तुलना में शारीरिक रूप से
ज्यादा सक्षम हैं पुरुष ही कमाकर लाता है उनके बच्चे पालता पोसता है और इसलिए जो
मन में आए, करता
है, लेकिन
हाल ही में स्थिति बदली है। सौभाग्य से शिक्षा, काम तथा प्रगति ने औरतों की
आँखें खोली हैं।
औरत मानव जाति को कायम रखने के लिए जिस दुःख तकलीफ से गुजरती है और संघर्ष करती है। वह जितना संघर्ष
करती है, उतना
तो सिपाही भी नहीं करते।
ऐन के अनुसार प्रकृति ने स्त्री को यह प्रजनन शक्ति दी
है तो इसके उपयोग का अधिकार भी केवल स्त्री को ही मिलना चाहिये न कि परिवार के सदस्यों या समाज
को, तभी जनसंख्या पर नियन्त्रण हो पाएगा | पर इस का यह कतई मतलब नहीं है कि औरतों
को बच्चे जनना बंद कर देना चाहिए, इसके विपरीत प्रकृति चाहती है कि वे ऐसा करें और समाज
औरतों के योगदान को सराहे।
1 टिप्पणी:
Bhot acha
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