बुधवार, अगस्त 28, 2024

पहलवान की ढोलक ( प्रश्नोत्तरी )

 प्रश्न १ -  पहलवान की ढोलक कहानी में  लुट्टन के जीवन में क्या क्या परिवर्तन हुआ था ?

 कहानी में लुट्टन के जीवन में अनेक परिवर्तन आए -

1. माता-पिता का बचपन में देहांत होना।
2. सास द्वारा उसका पालन-पोषण किया जाना और सास पर हुए अत्याचारों का बदला लेने के लिए
पहलवान बनना।
3. बिना गुरु के कुश्ती सीखना। ढोलक को अपना गुरु समझना।
4. पत्नी की मृत्यु का दुःख सहना और दो छोटे बच्चों का भार संभालना।
5. जीवन के पंद्रह वर्ष राजा की छत्रछाया में बिताना परंतु राजा के निधन के बाद उनके पुत्र द्वारा
राजमहल से निकाला जाना।
6. गाँव के बच्चों को पहलवानी सिखाना।
7. अपने बच्चों की मृत्यु के असहनीय दुःख को सहना।
8. महामारी के समय अपनी ढोलक द्वारा लोगों में उत्साह का संचार करना।

प्रश्न 2- गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों के देहांत के बावजूद लुट्टन पहलवान का ढोल क्यों बजाता रहा?

'ढोल' लुट्टन को प्रेरणा स्रोत लगता है। यही कारण है कि लुट्टन अपने बेटों को भी पहलवानी सिखाते समय ढोल बजाता है ताकि उसी की भांति वे भी ढोल से प्रेरणा लें। जब उसके गाँव में महामारी फैलती है, तो लोगों की दयनीय स्थिति उसे झकझोर देती है। वह ऐसे समय में ढोल बजाता है, जब मौत की अँधेरी छाया लोगों को भयभीत करके रखती है। रात का समय ऐसा होता है, जब गाँव में अशांति, भय, निराशा और मृत्यु का शोक पसरा रहता है। ऐसे में लुट्टन लोगों के जीवन में प्रेरणा भरता है। अपने बेटों की मृत्यु के समय तथा उनकी मृत्यु के बाद भी गाँव में ढोल बजाता है। उसकी ढोल की आवाज़ लोगों में जीवन का संचार करती है। उन्हें सहानुभूति का अनुभव होता है।

प्रश्न 3- लुट्टन पहलवान का ढोल क्यों बजाता रहा?

'ढोल' लुट्टन को प्रेरणा स्रोत लगता है। ढोल की आवाज़ उसके जीवन में उत्त्साह   का संचार करती है।  

 जब लुट्टन    चाँद सिंह  से कुस्ती लड़ने जाता ढोल कि एक एक थाप ने  उसका मार्गदर्शन किया जिससे  लूटन  चाँद  सिंह को परास्त किया |

प्रश्न 4- चर्चा करें- कलाओं का अस्तित्व व्यवस्था का मोहताज़ नहीं है।

कलाएं किसी व्यवस्था या संरचना पर निर्भर नहीं होतीं, वे तो मानव भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति हैं। ये दुःख, सुख, उत्साह या किसी भी अनुभूति को बिना किसी बनावट के प्रकट करती हैं। कला का इतिहास उतना ही पुराना है जितना मानव स्वयं, जब हम सभ्य भी नहीं थे तब भी कला हमारे साथ थी।

आज हम कला को किसी व्यवस्था या ढाँचे में बाँधने की कोशिश करते हैं, लेकिन असल में कला तो बस सच्चे भाव और लगन से फलती-फूलती है। जहाँ सच्ची अभिव्यक्ति की इच्छा होती है, कला वहीं अपने आप जन्म ले लेती है।

कला की यह स्वतंत्रता ही उसे अद्वितीय और शाश्वत बनाती है।

प्रश्न 5 - प्रस्तुत कहानी के आधार पर गाँव में व्याप्त महामारी की भयानक दशा का वर्णन कीजिए।

गाँव में मलेरिया और हैजा की भयानक महामारी ने कहर बरपा रखा था। हर दिन दो-तीन लोगों की मौत हो रही थी, जिससे गांव में एक अजीब सन्नाटा पसर गया था। दिन में तो रोने-पीटने और चीख-पुकार की आवाजें गूंजती थीं, लेकिन रात होते ही एक डरावना सन्नाटा छा जाता था। लोग अपनी झोपड़ियों में डरे और सहमे हुए दुबके रहते थे। हालात इतने बदतर थे कि माँएं अपने मरते हुए बेटे को आखिरी बार 'बेटा' कहकर पुकारने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाती थीं।



प्रश्न 6 - पहलवान की ढोलक पाठ के आधार पर लुट्टन सिंह का चरित्र चित्रण कीजिए​

लुट्टन, "पहलवान की ढोलक" कहानी का मुख्य पात्र, एक ऐसा व्यक्तित्व है जो विपरीत परिस्थितियों में भी अपने साहस और दृढ़ता से अडिग रहता है।

  • जीवट और साहस: बचपन में ही माता-पिता का साया सिर से उठ जाने के बावजूद, लुट्टन ने हार नहीं मानी। वह एक कुशल पहलवान बना और विपरीत परिस्थितियों का डटकर सामना किया। महामारी के दौरान भी उसने हिम्मत नहीं हारी और ढोलक बजाकर लोगों में आशा की किरण जगाई रखी।

  • संवेदनशील और भावुक: लुट्टन एक मजबूत इरादों वाला व्यक्ति होने के साथ-साथ एक संवेदनशील इंसान भी था। अपने बेटों की मृत्यु ने उसे गहरा आघात पहुँचाया, लेकिन उसने अपने दुःख को ढोल की थाप में ढालकर लोगों की सेवा की।

  • कला के प्रति समर्पण: लुट्टन को ढोल बजाने का जुनून था। यह उसके लिए सिर्फ एक कला नहीं, बल्कि जीवन का एक अभिन्न अंग था। उसने अपनी कला के माध्यम से लोगों को जोड़ा और उन्हें प्रेरित किया।

  • दुर्भाग्य का दंश: लुट्टन का जीवन दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं से भरा रहा। बचपन में अनाथ होना, बेटों की मृत्यु और राजा की मृत्यु के बाद उसकी बदहाली, ये सभी घटनाएं उसके जीवन में एक के बाद एक आईं।

कुल मिलाकर, लुट्टन एक ऐसा चरित्र है जो अपनी चुनौतियों के बावजूद अपने साहस, संवेदनशीलता और कला के प्रति समर्पण के कारण पाठकों के दिलों में एक अमिट छाप छोड़ जाता है। उसका जीवन इस बात का प्रमाण है कि विपरीत परिस्थितियों में भी इंसान अपने जज्बे और कला के सहारे जीने की राह ढूंढ सकता है।

प्रश्न 7 - 'पहलवान की ढोलक' कहानी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए |

यह कहानी व्यवस्थाओं के बदलने से होने वाली समस्याओं को उजागर करती है। समय के साथ, पुरानी लोक कलाएँ और कलाकार अपनी प्रासंगिकता खो देते हैं। राजा से राजकुमार तक का परिवर्तन सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि पूरी व्यवस्था के उलट जाने का प्रतीक है। यह 'भारत' से 'इंडिया' बनने जैसा है, जहाँ लुट्टन जैसे लोक कलाकारों को अपनी कला से गुज़ारा करना मुश्किल हो जाता है। कहानी हमें सोचने पर मजबूर करती है कि कैसे हम अपनी लोक कलाओं और कलाकारों को बचा सकते हैं और उन्हें समाज में सम्मान दिला सकते हैं। यह मानवता और जीवन के सौंदर्य को बनाए रखने के लिए ज़रूरी है।


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