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रविवार, अगस्त 02, 2020

हम कहाँ ?...

अल्फाज़ो की दुनिया मे,
बेज़ुबान हम कहाँ!
रगो की चाहत तो रखु,
पर फिर भी रागिन हम कहाँ! 
खुशी खोजे हर नहीं,
पर नसे जो हो,
वही मिला!
जीवन के हर मोड़ पर,
चाहतो का अजीब एक मेला लगता है,
मंजिल के पीछे भागे हर कोई,
पर ये मंजिल किसे मिली,
उन लोगों ने हम कहाँ!
तो फिर उठा लू,
दिन भी बनाते हैं,
पर जब के रगीन कागज पर हम कहाँ! 

https://youtu.be/zZm45kznglY

गुरुवार, मार्च 29, 2018

इस मक्कारी से भरे जहा में

इस मक्कारी से भरे जहां   में
मुझे मक्कार बन‌कर जीना आता  नहीं है
वो कला मुझे आती नहीं , जिसमें  झूठ को सच सबित कर सके
केवल अपने लिए जीना  आता नहीं 
शायद मैं इसीलिए  कतार मे सबसे पीछे हूं कि
मुझे होशियारी नही आती
लोग मुझे समझे ना समझे ,
मगर दोस्तों  दगाबाजी  मुझे आती नहीं ।
अपने लिए नहीं बस जीता हूँ केवल‌ दोस्तों के लिए ।
वरना जीने की तमन्ना दिल‌ में रह नहीं गयी हैं।