गुरु द्रोण ने मिट्टी का पक्षी बनाकर दीवार पर रखा और शिष्यों से सवाल पूछते कि क्या दिख रहा है कि उससे पहले ही उनके कुर्ते में रखा मोबाइल टोन टिंगटिंग कर बजा। खोलकर देखा तो whatsapp मेसेज आया कि कल वीसी है।
उन्होंने कड़वी सी शक्ल बनाकर गुस्से में बोला- एक तो ये साल भर इतनी वीसिया करवा देते है। आदमी क्लास ले या प्रशिक्षण और vc लेकर फिरता रहा। जितना ज्ञान अंदर ठूस रखा है उसको तो बाहर निकालने का मौका मिलता नहीं। द्रोण बोले- अरे युधिष्ठिर, ये मिट्टी का खिलौना फोड़ डाल। भाड़ में जाओ तुम सब, मैं तुमको पढाऊँ या अपनी नौकरी बचाऊँ। मैं गुरुकुल की ऑनलाइन उपस्थिति भरने जा रहा हूँ।
उधर हस्तिनापुर में शकुनि सारी प्लानिंग कर रहा था। सत्ता हमेशा अफसरों से चलती है। राजा की आंखें नाक कान अफसर ही होते हैं। अफसर शकुनि नई नई चीजें लाता और अंधे धृतराष्ट्र को बहलाकर लागू करता।
अब नई चीज लाया था कि गुरु द्रोण के गुरुकुल की गुणवत्ता परीक्षा लेते है। धृतराष्ट्र को क्या पता क्या हो रहा है। हामी भर दी। vc हो गयी। whatsapp पर आ गया कि युधिष्ठिर अर्जुन अर्जुन आदि की गुणवत्ता परीक्षा होगी। पेपर साइट से डाउनलोड होंगे। पासवर्ड आएगा।
शकुनि को विदुर जी बोले- साइट पहले ही स्लो है।
गुणवत्ता परीक्षा का कोई औचित्य नहीं है और
गुरु द्रोण परेशान होंगे।
शकुनि यही तो चाहता था। वो सोच कर बैठा है कि गुरु द्रोण के गुरुकुल को तबाह करना है। ताकि दुर्योधन दुशासन प्राइवेट गुरुकुल में जाये। सीधे बन्द नहीं कर सकते। इसलिए नई नई चीजें लाओ ताकि गुरु द्रोण बस झमेले में फंसे रहे और पढ़ा न पाए।
अगले दिन गुरु द्रोण ने अपने शिक्षकों को बोल दिया कि गुणवत्ता परीक्षा की तैयारी शुरू करो। एक आचार्य बोले - गुरुवर बोर्ड परीक्षा की तैयारी करवानी है मुझे। द्रोण गुस्से में आये- अबे क्रोनोलॉजी समझ। पहले गुणवत्ता होगी फिर बोर्ड होगी। आज की चिंता कर। सारे शिक्षक जुट गए।
2, 4 हमेशा की तरह फलाना ढिमका प्रशिक्षण लेने गए थे। बचे-खुचो ने परीक्षा के लिए रजिस्टर रंगे।
पेपर डाउनलोड का टाइम आ गया। पर पासवर्ड नहीं आया। गुरु द्रोण यहाँ वहां फोन घुमाते रहे। whataapp पर msg इधर उधर फैलने लगे। शकुनि ने पासवर्ड भेजा ही नही। उसको तो तपाना था आचार्यो को। जब छुट्टी का टाइम पास आया तो पासवर्ड आया। पर साइट ठप्प। सब आचार्य हक्के बक्के। जैसे तैसे पेपर डाउनलोड हुआ तो उसकी कॉपी करने की मुसीबत। गुरु द्रोण के अधीन बाकी गुरुकुलों को मिलाकर 1000 छात्र।
हजारों कॉपी कब हो? काम शुरू हुआ। एक प्रिंटर की स्याही खत्म हो गयी। सफेद पन्नों की 2 रिम बीत गयी और फिर भी काम चौथाई बाकी। छुट्टी का टाइम हो गया। कुछ ही पेपर कॉपी हुए थे।
अब कृपचार्य कृतवर्मा और द्रोण लड़े कि कौन करवाये पेपरों की कॉपी। सब कहें कि मैं नहीं करवाने जाऊँगा। शकुनि आराम से राजदरबार में मजे लेता हुआ कि क्या फंसाया है आचार्य लोगों को।
गुरु द्रोण की टीम को रात के 1 बज गया पेपर कराते कराते। गुरु द्रोण मोटरसाईकल पर घर लौटे तो रात को कुत्ते और पीछे पड़ गए। हाथ में 2000 पन्नों का बंडल। पत्नी भी खुर्राटे मारती हुई। बड़ी मुश्किल से दरवाजा खोला।
शकुनि ने आदेश निकलवाया कि अगले दिन ही नम्बर चढ़ाने है। गुरु द्रोण के गुरुकुल में सारे आचार्य कॉपी जांचने जुट गए। भीम और दुर्योधन आपस में मल्ल युद्ध करने लगे। सँभाले कौन?
कॉपी जांच कर साइट खोली तो साइट ठप्प। रेंग रेंग कर चलती हुई। नम्बर फीडिंग करने का मॉड्यूल खोला तो देखा गया युधिष्ठिर दुर्योधन दुशासन भीम के नाम आगे पीछे। न कौरव वाइज न पांडव वाइज न रोल नम्बर वाइज। शकुनि ने भी द्रोण को तपाने का पूरा इतंजाम किया था। नम्बर चढ़ाने वालों के पसीना आ गया। सब हाय तौबा करते हुए कि साइट नहीं चल रहीं कोई इधर फोन घुमाए कोई उधर पर सब परेशान। जब नम्बर भरने लगे और मुसीबत, नम्बर चढ़ते ही क्लिक करते ही लोडिंग का ऑप्शन भी लागू था, जैसे ही क्लिक करो, नीला नीला लोडिंग वाला गोल गोल चकरा। गुरु द्रोण के लिए ये ऐसा चक्रव्यूह था जिसका तोड़ उनके पास भी नहीं था।
सूचना मिलने तक रात में भी गुरु द्रोण की और उनके गुरुकल के लोग नम्बर फीड करने में बिजी थे। विदुर सोच रहा था कि जब रात को भी नम्बर भरने का ऑप्शन चालू था तो दुपहर तक का समय क्यों दिया था। अफसर शकुनि सोच रहा था कि कल क्या नई चीज लाऊं कि गुरु द्रोण का बीपी बढ़े। आधुनिक काल मे गुरु द्रोण के लिए नौकरी कठिन है।
गुरुजन पर भारी अफसरशाही है
शिक्षक की हालत बड़ी बेचारी है
बस तंग करने को नित नए आदेश
बस शिक्षा नहीं, बाकी चीजें सारी है
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